स्मृति शेष : डॉ. बिंदेश्वर पाठक : ‘सुलभ’ बनाया जनजीवन
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स्मृति शेष : डॉ. बिंदेश्वर पाठक : ‘सुलभ’ बनाया जनजीवन

by WEB DESK
Aug 19, 2023, 08:46 am IST
in श्रद्धांजलि
2 अप्रैल, 1943 -15 अगस्त, 2023

2 अप्रैल, 1943 -15 अगस्त, 2023

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सुलभ शौचालय के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक का नई दिल्ली में निधन हो गया। 16 अगस्त को उनका अंतिम संस्कार किया गया। डॉ. पाठक का मूलमंत्र था-‘स्वच्छ समाज और स्वच्छ मानस।’

गत 15 अगस्त को सुलभ शौचालय के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक का नई दिल्ली में निधन हो गया। 16 अगस्त को उनका अंतिम संस्कार किया गया। डॉ. पाठक का मूलमंत्र था-‘स्वच्छ समाज और स्वच्छ मानस।’ इसी विचार के साथ वे 55 वर्ष से राष्ट्र की सेवा में सक्रिय थे। 2 अप्रैल, 1943 को बिहार के वैशाली जिले के रामपुर बघेल ग्राम में जन्मे डॉ. पाठक ने पटना विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में एम.ए., पीएचडी. और डी.लिट्. की उपाधियां प्राप्त की थीं। उन्होंने दो दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखी हैं।

वे 1968 में बिहार गांधी जन्म-शताब्दी समारोह-समिति में एक कार्यकर्ता के नाते जुड़े। उसी समय एक प्रकोष्ठ का गठन हुआ, जिसका कार्य था वाल्मीकि समुदाय को मैला ढोने के अमानवीय कार्य से मुक्त कर उनके खोए सम्मान को लौटाना। 1969 में गांधी जन्म-शताब्दी-समारोह का समापन हो गया। इसके बाद डॉ. पाठक बेतिया शहर की वाल्मीकि बस्ती में उनकी सामाजिक स्थिति का अध्ययन करने गए। वहां की स्थिति देखकर वे मर्माहत हुए। इसके बाद उन्होंने सिर पर मैला ढोने की कुप्रथा का विकल्प तलाशना शुरू किया। उन्हीं दिनों डॉ. पाठक ने दो गड्ढे वाले जलप्रवाही शौचालय का आविष्कार किया। उन्होंने 5 मार्च, 1970 को ‘सुलभ शौचालय संस्थान’ की स्थापना की, जो वर्तमान में ‘सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस आर्गनाइजेशन’ के नाम से विश्वविख्यात है।

डॉ. बिंदेश्वर पाठक जी का दिवंगत होना राष्ट्र के लिए एक अपूरणीय क्षति है। वे एक दूरदर्शी व्यक्ति थे, जिन्होंने सामाजिक उन्नति और समाज के वंचित लोगों को सशक्त बनाने के लिए बड़े पैमाने पर कार्य किया। बिंदेश्वर जी ने स्वच्छ भारत के निर्माण को अपना मिशन बना लिया। उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन को अपना भरपूर समर्थन दिया। अनेक बार हुई उनसे वार्ता के दौरान स्वच्छता के प्रति उनका जुनून हमेशा दिखता रहा। उनका कार्य अनेक लोगों को प्रेरणा देता रहेगा।
-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

देश में स्वच्छता के उद्देश्य के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले श्री बिंदेश्वर पाठक नहीं रहे। 1968 में उन्होंने डिस्पोजल कंपोस्ट शौचालय का आविष्कार किया। सिर पर मैला ढोने की प्रथा की समाप्ति में निर्णायक भूमिका निभाई थी। 1970 में उन्होंने सेवा संस्था ‘सुलभ इंटरनेशनल’ की स्थापना की। पिछले पांच दशक में इस संस्थान ने करोड़ों लोगों को सहज और स्वच्छ शौचालय उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सेवा कार्यों के लिए पद्म सम्मान से सम्मानित श्री बिंदेश्वर पाठक जी को प्रभु अपने श्रीचरणों में स्थान दें और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें, हम ऐसी प्रार्थना करते हैं।
-दत्तात्रेय होसबाले, सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

डॉ. पाठक ने सर्वप्रथम 1974 में बिहार के आरा नगर निगम कार्यालय परिसर में 500 रुपए की लागत से सुलभ शौचालय का निर्माण करवाया। आज देशभर में 10,000 से अधिक सुलभ शौचालय हैं, जिनका उपयोग प्रतिदिन लगभग 2 करोड़ से अधिक लोग करते हैं। वहीं 16,00,000 से अधिक घरेलू शौचालय बनाए गए हैं। वर्तमान में डॉ. पाठक भारत सरकार के स्वच्छ भारत अभियान से जुड़े हुए थे। डॉ. पाठक ने अपने स्वच्छता आंदोलन के साथ-साथ सामाजिक आंदोलन को भी गति दी। उन्होंने वाल्मीकि परिवार के बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए सुलभ पब्लिक स्कूल, युवाओं को रोजगार प्रदान करने के लिए सुलभ आई.टी.आई. वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना की।

उन्होंने राजस्थान के अलवर और टोंक शहरों में सैकड़ों परिवारों को मैला ढोने की कुप्रथा से मुक्ति दिलाकर उन्हें अनेक प्रकार की खाद्य सामग्री बनाने और सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण दिलाया। डॉ. पाठक ने वृंदावन और वाराणसी जैसे शहरों में परित्यक्त विधवा महिलाओं की देख-रेख के लिए भी अनेक प्रकल्प शुरू करवाए। युवा विधवाओं के पुनर्विवाह का आयोजन कर एक बड़े सामाजिक दायित्व का निर्वहन किया। सुलभ इंटरनेशनल ने 1992 में नई दिल्ली में शौचालय एवं शौच-क्रिया-आधारित एक संग्रहालय की स्थापना की, जिसे दुनिया भर के लोग देखने आते हैं।

विश्व के अनेक देशों में उनकी स्वच्छता तकनीक को पसंद किया गया। भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया और 2016 में उन्हें प्रतिष्ठित गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। स्वच्छता के ऐसे सेनानी को भावभीनी श्रद्धाञ्जलि।
— डॉ. अशोक कुमार ज्योति

Topics: ‘सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस आर्गनाइजेशन’सुलभ शौचालय के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर‘स्वच्छ समाज और स्वच्छ मानस।’
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