विपक्षी दलों की सरकारों को अकारण बर्खास्त कर देने की कांग्रेस की आदत पर पूर्ण विराम लगा एस. आर. बोम्मई से। इस फैसले ने राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने के राष्ट्रपति के अधिकार को बहुत सीमित कर दिया।
आज भी जब कभी किसी राज्य सरकार को बर्खास्त करने की चर्चा होती है, तो लोग एस.आर.बोम्मई बनाम भारत संघ के मामले की दुहाई देने लगते हैं। उल्लेखनीय है कि 21 अप्रैल, 1989 को कर्नाटक की एस.आर. बोम्मई सरकार को बहुमत खो देने के आधार पर बर्खास्त कर वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। अपनी सरकार की बर्खास्तगी से बोम्मई बहुत नाराज हुए और वे सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गए।
सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति को अपार शक्ति प्रदान करता है, लेकिन इस शक्ति का उपयोग संयमपूर्वक और बहुत सावधानी से किया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि राज्य सरकार को बर्खास्त करने की राष्ट्रपति की शक्ति पूर्ण नहीं है।
राष्ट्रपति को अपनी शक्ति का उपयोग (राष्ट्रपति शासन लागू करने) संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित होने के बाद ही करना चाहिए। न्यायालय ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति केवल विधानसभा से संबंधित संविधान के प्रावधानों को निलंबित करके विधानसभा को निलंबित कर सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 356 में डॉ. बी.आर. आंबेडकर द्वारा की गई टिप्पणियों का ध्यान दिलाया। न्यायालय ने अनुच्छेद 356 के उपयोग के संबंध में सरकारिया आयोग के प्रस्तावों का भी उल्लेख किया।
जो विधायक बोम्मई के साथ थे, उन्होंने उनके पक्ष में एक प्रस्ताव पारित कर तत्कालीन राज्यपाल पी. वेंकटसुबैया को सौंपा। इसके बावजूद राज्यपाल ने बोम्मई को बहुमत सिद्ध करने का अवसर नहीं दिया। यही नहीं, राज्यपाल ने बोम्मई सरकार को बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा कर दी।
बता दें कि सरकारिया आयोग ने सुझाव दिया था कि अनुच्छेद 356 (1) को लागू करने से पहले कुछ बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए हर विकल्प का उपयोग किया जाना चाहिए और राज्य मानक की समस्या को हल करने के सभी प्रयासों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। लंबी बहस के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने 11 मार्च, 1994 को एक ऐसा निर्णय दिया, जिससे एक विरोधी केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों की मनमानी बर्खास्तगी को विराम लगा।
एस.आर. बोम्मई 13 अगस्त, 1988 से 21 अप्रैल, 1989 तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे। इसी बीच उनकी पार्टी जनता दल में विद्रोह हो गया और कई विधायकों ने पार्टी छोड़ दी थी। कई विधायक दूसरे दलों में शामिल हो गए थे। जो विधायक बोम्मई के साथ थे, उन्होंने उनके पक्ष में एक प्रस्ताव पारित कर तत्कालीन राज्यपाल पी. वेंकटसुबैया को सौंपा। इसके बावजूद राज्यपाल ने बोम्मई को बहुमत सिद्ध करने का अवसर नहीं दिया। यही नहीं, राज्यपाल ने बोम्मई सरकार को बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा कर दी।
राज्यपाल की अनुशंसा के विरुद्ध बोम्मई पहले कर्नाटक उच्च न्यायालय पहुंचे। उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद वे सर्वोच्च न्यायालय की शरण में गए। देर से ही सही, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐसा निर्णय दिया, जिसका उदाहरण आज भी दिया जाता है। इस निर्णय को महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसने अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग करते हुए राज्य सरकारों को बर्खास्त करने के चलन को समाप्त कर दिया है। हां, विशेष परिस्थिति में केंद्र सरकार ऐसा कर सकती है।
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