अलाउद्दीन खिलजी, मुजफ्फरशाह, अहमदशाह, औरंगजेब से लेकर नादिरशाह जैसे मुस्लिम आक्रांताओं ने भी कई बार इस मंदिर को लूटा और तोड़ा। इस तरह, सोमनाथ मंदिर बार-बार बना, बार-बार तोड़ा गया।
महमूद गजनवी ने 1024 ई. में सोमनाथ मंदिर और इसके 56 खंभों में जड़े सोना-चांदी, हीरे-मोती तथा बहुमूल्य रत्नों को लूटा और मंदिर को नष्ट-भ्रष्ट कर आसपास आग लगा दी थी। अलाउद्दीन खिलजी, मुजफ्फरशाह, अहमदशाह, औरंगजेब से लेकर नादिरशाह जैसे मुस्लिम आक्रांताओं ने भी कई बार इस मंदिर को लूटा और तोड़ा। इस तरह, सोमनाथ मंदिर बार-बार बना, बार-बार तोड़ा गया।
स्वतंत्रता के बाद तत्कालीन केंद्रीय मंत्री एन.वी. गाडगिल ने मंदिर के पुनर्निर्माण को लेकर सरदार वल्लभभाई पटेल से चर्चा की। इसके बाद सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की घोषणा की। गांधीजी का सुझाव था कि सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण अवश्य होना चाहिए, किन्तु जनता के पैसे से। इसमें सरकार का पैसा नहीं लगना चाहिए, लेकिन सरकार को इसमें पूरा सहयोग देना चाहिए। इसके बाद सरदार पटेल ने 9 अगस्त, 1948 को मंदिर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव रखा।
‘‘सोमनाथ मंदिर के धूमधाम भरे उद्घाटन सामारोह से आपका जुड़ना मुझे कतई पसंद नहीं है। मेरे विचार से सोमनाथ में बड़े पैमाने पर भवन निर्माण के लिए यह समय उपयुक्त नहीं है। यह काम धीरे-धीरे हो सकता था, बाद में इसमें तेजी लाई जा सकती थी, लेकिन यह किया जा चुका है। मैं सोचता हूं कि आप इस समारोह की अध्यक्षता न करते तो अच्छा होता।’’
गांधीजी की इच्छा पर 23 जनवरी, 1949 को सरदार पटेल और एन.वी. गाडगिल की उपस्थिति में आठ सदस्यीय न्यासी मंडल का गठन हुआ। तब तक जवाहरलाल नेहरू चुप रहे। 18 अक्तूबर, 1949 को सरदार पटेल ने न्यासी मंडल के 8 सदस्यों के नामों की घोषणा की। 1949 के अंत तक सोमनाथ कोष में 25 लाख रुपये एकत्र हो गए थे। वास्तुकार प्रभाशंकर सोमपुरा ने मंदिर की रूपरेखा तैयार की थी।
8 मई, 1950 को चांदी के नंदी की स्थापना करके सोमनाथ मंदिर का पुनर्शिलान्यास किया गया। इसी बीच, 15 दिसंबर, 1950 को सरदार पटेल का निधन हो गया। नेहरू के विरोध के बावजूद पांच माह में मंदिर की नींव तैयार कर उस पर चबूतरा और गर्भगृह का निर्माण पूरा कर लिया गया। 11 मई, 1951 को गर्भगृह में शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को करना था। लेकिन नेहरू ने पत्र लिख कर डॉ. राजेंद्र प्रसाद को रोकने की कोशिश की।
नेहरू ने लिखा था, ‘‘सोमनाथ मंदिर के धूमधाम भरे उद्घाटन सामारोह से आपका जुड़ना मुझे कतई पसंद नहीं है। मेरे विचार से सोमनाथ में बड़े पैमाने पर भवन निर्माण के लिए यह समय उपयुक्त नहीं है। यह काम धीरे-धीरे हो सकता था, बाद में इसमें तेजी लाई जा सकती थी, लेकिन यह किया जा चुका है। मैं सोचता हूं कि आप इस समारोह की अध्यक्षता न करते तो अच्छा होता।’’ लेकिन नेहरू के विरोध के बावजूद डॉ. राजेंद्र प्रसाद समारोह में शामिल हुए। पुनरुद्धार के बाद इसके भव्य स्वरुप को एक बार फिर से निखारा गया। दिसंबर 1995 में राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
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