आखिरकार पाकिस्तान को उस जगजाहिर राज को स्वीकार करना पड़ा जो दुनिया न जाने कबसे जानती आ रही है कि वहां ‘कोई सरकार सेना को नाराज करके नहीं चल सकती, सेना का समर्थन जरूरी है’। यही पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के वक्त हुआ और यही शरीफ के वक्त। और दिलचस्प बात यह कि यह सच्चाई खुद निवर्तमान प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने स्वकारी है वह भी टीवी के पर्दे पर।
शरीफ ने माना कहा कि वह भी बिना सेना के समर्थन के सरकार चला ही नहीं सकते थे। पहले इमरान भी बाजवा के साथ की वजह से ही सरकार चला पा रहे थे। शरीफ ने शराफत से माना कि पाकिस्तान में सरकार में सेना का दखल तो रहता ही है।
यानी इस्लामाबाद से सत्ता चलती तो है, लेकिन रावलपिंडी के इशारे पर जहां सेना का मुख्यालय है। पाकिस्तान के निवर्तमान प्रधानमंत्री शरीफ ने यह सच जियो टीवी को दिए एक साक्षात्कार में कबूला है। उन्होंने खुलकर बताया कि पाकिस्तान में सरकारी कामकाज में सेना का कितना दखल रहता है। इमरान खान संभवत: जनरल बाजवा के सामने बेबस से नजर आते रहे थे।
साक्षात्कार में सबसे महत्वपूर्ण बात यह स्वीकारोक्ति मानी जा रही है कि वहां कोई सरकार सेना की मर्जी के बिना न बन सकती है, न काम कर सकती है। सुनने में आता है कि सरकार की हर नियुक्ति की फाइल पहले पिंडी के हेडक्वार्टर से पारित होकर आती है।
जियो टीवी से बात करते हुए शरीफ ने एक कदम आगे जाते हुए सेना के सरकार में दखल की तारीफ भी कर डाली। इसे पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल मुनीर की प्रशंसा माना जा रहा है। शरीफ ने कहा कि आज पाकिस्तान में सरकार दुनिया के सबसे जानी—मानी ‘हाइब्रिड’ सरकारों में से एक मानी जाती है।
पद से इस्तीफा देने के बाद, खुलकर बोलते हुए शाहबाज ने कहा कि इमरान सरकार चलाने के लिए उस वक्त के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के आसरे रहा करते थे। शाहबाज के अनुसार, ‘इमरान खान को भी तो उनके कुर्सी पर रहते सेना का साथ मिला हुआ था’। शरीफ का यहां तक कहना है कि उस देश में हर क्षेत्र में सरकार को सेना की हरी झंडी की जरूरत पड़ती है।
शरीफ की इस ‘शराफत’ की उनके ही देश में जमकर खिल्ली उड़ाई जा रही है। इस दौरान पता यह भी चला है कि आज शरीफ विपक्ष के नेता के साथ बता करके वहां आगामी आम चुनाव कराए जाने और तब तक के लिए कार्यवाहक प्रधानमंत्री का नाम तय करने वाले हैं।
गत बुधवार को पाकिस्तान की नेशनल असेंबली भंग की जा चुकी है। अब नए चुनाव तक प्रधानमंत्री के पद के लिए उम्मीदवारों की सूची पर शरीफ ने उसके अगले दिन विपक्ष के नेता राजा रियाज से चर्चा की थी। प्रधानमंत्री निवास पर हुई इस बातचीत में, समाचार पत्र ‘डॉन’ के अनुसार, रियाज कहते हैं, कार्यवाहक प्रधानमंत्री का नाम तय करने में वे कोई जल्दबाजी नहीं चाहते। चर्चा है कि आज शाम तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री के नाम का एलान हो सकता है।
कुछ जानकारों का मानना है कि शरीफ चाहते हैं वे पाकिस्तान का झंडा फहराने के लिए 14 अगस्त तक कुर्सी पर बैठे रहें। उसके बाद किसी कार्यवाहक प्रधानमंत्री को शपथ दिलाई जाए। पाकिस्तान का संविधान कहता है कि तात्कालिक इंतजाम होने तक शरीफ कार्यवाहक प्रधानमंत्री के नाते काम कर सकते हैं। शायद नए कार्यवाहक का नाम तय करने में हो रही देर के पीछे एक यह भी वजह हो। शरीफ की पूरी कोशिश है कि कार्यवाहक पीएम उनकी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज से ही हो।
बहरहाल, उस विषय में क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इस साक्षात्कार में सबसे महत्वपूर्ण बात यह स्वीकारोक्ति मानी जा रही है कि वहां कोई सरकार सेना की मर्जी के बिना न बन सकती है, न काम कर सकती है। सुनने में आता है कि सरकार की हर नियुक्ति की फाइल पहले पिंडी के हेडक्वार्टर से पारित होकर आती है।
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