स्वच्छ भारत अभियान, प्रधानमंत्री आवास योजना, किसान सम्मान निधि, फसल बीमा सहित तमाम योजनाओं और महिला स्वयं सहायता समूह का बड़ा योगदान है। 10वीं पास युवाओं को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के अंतर्गत मोटर मैकेनिक और लड़कियों को कंप्यूटर आदि का प्रशिक्षण मिल रहा है।
झारखंड का एक गांव है-लकरजोरी। यह गोड्डा जिले के पथरगामा प्रखंड की सोनारचक पंचायत में पड़ता है। इस गांव में केवल 25 घर हैं, वह भी कच्चे। इनके पास खेती के नाम पर जमीन का एक टुकड़ा है। कुछ वर्ष पहले तक अधिकांश ग्रामीण दाने-दाने को मोहताज थे। अब केंद्र सरकार की योजनाओं ने गांव की तस्वीर ही बदल दी है।
गांव की खुशहाली में स्वच्छ भारत अभियान, प्रधानमंत्री आवास योजना, किसान सम्मान निधि, फसल बीमा सहित तमाम योजनाओं और महिला स्वयं सहायता समूह का बड़ा योगदान है। 10वीं पास युवाओं को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के अंतर्गत मोटर मैकेनिक और लड़कियों को कंप्यूटर आदि का प्रशिक्षण मिल रहा है।
पट्टे पर खेती करने वाले गोपाल महतो कहते हैं, ‘‘पिछले कुछ वर्षों में गांव में बड़ा बदलाव आया है। अब कोई भूखा नहीं रहता। भारत सरकार द्वारा गरीबों को मुफ्त में अनाज मिल रहा है। खाने पर जो पैसा खर्च होता था, वह बच रहा है।’’
‘‘हर महिला मंडल को भारतीय स्टेट बैंक 15,000 रु. का अनुदान देता है। यह पैसा जरूरतमंद बहनों को मात्र एक रुपये सालाना ब्याज पर दिया जाता है। एक वर्ष बाद बैंक सिर्फ 80 पैसे सालाना ब्याज पर मंडल को 50,000 रु. कर्ज देता है। अगले वर्ष कर्ज की राशि 1,00,000 रु. हो जाती है। जैसे-जैसे मंडल के गठन का वर्ष बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे बैंक की ओर से मिलने वाली ऋण की राशि भी बढ़ती जाती है। महिला मंडल से रोजगार के लिए ग्रामीणों को मामूली ब्याज पर आसानी से कर्ज मिल जाता है।’’
पशुपालक करमचंद महतो कहते हैं, ‘‘सरकारी प्रयासों और योजनाओं ने जीवन को बेहतर बना दिया है। गांव तक पक्की सड़क आ गई है। पहले सिंचाई के लिए हम वर्षा पर निर्भर थे, अब गांव में बिजली आने से सिंचाई आसान हो गई है, जिससे कमाई भी होने लगी है।’’
किसान लालधारी महतो कहते हैं, ‘‘गांव के ज्यादातर लोगों के पास एक बीघा से भी कम जमीन है। इससे एक परिवार का गुजारा नहीं हो सकता। कभी फसल अच्छी हो जाती है, तो कभी बिल्कुल नहीं होती। ऐसे में किसान सम्मान निधि से मिलने वाली मदद से बीज खरीद लेते हैं। इसके बाद कुछ बचता है, तो खेती से संबंधित अन्य वस्तुएं खरीद लेते हैं।’’
गांव में तीन महिला स्वयं सहायता समूह हैं- राधे महिला मंडल, मां दुर्गा महिला मंडल और गायत्री महिला मंडल। राधे महिला मंडल की अध्यक्ष वीणा देवी ने बताया, ‘‘हर महिला मंडल को भारतीय स्टेट बैंक 15,000 रु. का अनुदान देता है। यह पैसा जरूरतमंद बहनों को मात्र एक रुपये सालाना ब्याज पर दिया जाता है। एक वर्ष बाद बैंक सिर्फ 80 पैसे सालाना ब्याज पर मंडल को 50,000 रु. कर्ज देता है। अगले वर्ष कर्ज की राशि 1,00,000 रु. हो जाती है। जैसे-जैसे मंडल के गठन का वर्ष बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे बैंक की ओर से मिलने वाली ऋण की राशि भी बढ़ती जाती है। महिला मंडल से रोजगार के लिए ग्रामीणों को मामूली ब्याज पर आसानी से कर्ज मिल जाता है।’’
पहले गांव में एक-दो लोगों के पास ही साइकिल थी, लेकिन अब गांव में आठ मोटरसाइकिल और दो आटोरिक्शा हैं। गांव के युवा 60,000 रु. जमा कर किस्त पर आटोरिक्शा खरीद कर ठीक-ठाक पैसा कमा रहे हैं। उन्हें कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ रही।
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