उत्तर प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में मुरादाबाद दंगे की रिपोर्ट पटल पर रखी गई। वर्ष 1980 के अगस्त माह में मुरादाबाद जनपद के ईदगाह में दंगा हुआ था। ईद के दिन ही यह दंगा शुरू हुआ था। इस दंगे में करीब 83 लोग मारे गए थे और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। रिपोर्ट के अनुसार मुस्लिम लीग के दो नेताओं ने यह दंगा कराया था।
करीब 43 साल बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने मुरादाबाद दंगे की रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखा है। दंगे के बाद जस्टिस सक्सेना आयोग का गठन किया गया था। सक्सेना आयोग ने विस्तार से जांच करके वर्ष 1983 के नवम्बर माह में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। मगर उसके बाद इस रिपोर्ट को दबा दिया गया था। दंगों की जांच के लिए बनी समिति ने 1983 में तत्कालीन सरकार को रिपोर्ट सौंप थी। कई बार इसे कैबिनेट की मंजूरी के लिए रखा गया था। 14 बार कोई न कोई कारण बताकर फाइल रोकी गई।
जांच रिपोर्ट में बताया गया कि 1986, 1987, 1989, 1990, 1992, 1994, 1995, 2000, 2002, 2004, 2005 को कैबिनेट के समक्ष रखी गई, लेकिन मुख्यमंत्रियों ने रिपोर्ट को लंबित रखने का निर्णय लिया।
बताया जा रहा है कि जस्टिस सक्सेना आयोग की रिपोर्ट में इस दंगे के लिये डॉक्टर शमीम अहमद का नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग और डॉक्टर हामिद हुसैन उर्फ डॉक्टर अज्जी के नेतृत्व वाले खाकसारों, समर्थकों और भाड़े के व्यक्तियों ने दंगा करा और कराया था। इस रिपोर्ट में यह भी है कि सांप्रदायिक हिंसा के लिए इस दंगे की साजिश रची गई थी। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा है कि “यह रिपोर्ट छिपाई गई और इसे पेश किए जाने की जरूरत थी। इससे नागरिकों को मुरादाबाद दंगों की सच्चाई जानने में मदद मिलेगी। हर किसी को इस रिपोर्ट का स्वागत करना चाहिए, क्योंकि इससे पता चल जाएगा कि दंगा कौन करता है, कौन इसका समर्थन करता है और कौन इसके खिलाफ लड़ता है।”
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