बीआरआई के अंतर्गत चीन—पाकिस्तान आर्थिक गलियारे यानी सीईपीसी की दसवीं सालगिरह मनाने के लिए इस्लामाबाद में तीन दिन का बड़े तामझाम वाला कार्यक्रम रखा। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस कार्यक्रम के लिए डिप्टी प्रीमियर हे लीफेंग को भेजा था। कार्यक्रम के आखिरी दिन जिनपिंग का विशेष तौर पर भेजा बधाई संदेश पढ़ा गया। इसमें चीन के राष्ट्रपति ने एक तरह से अपने शागिर्द कंगाल पाकिस्तान को ‘अभयदान’ दिया कि दुनिया में चाहे जो हो जाए वह उसे सहयोग देना जारी रखेगा।
चीन की इस बीआरआई परियोजना से इटली ने पिछले दिनों खुद को बाहर करके एक झटका दिया है। लेकिन शी ने उस झटके को भूलने की कोशिश में शायद पाकिस्तान की पीठ पर नरमाई भरा हाथ फेरा है। चीन जानता है कि पाई पाई को मोहताज बना दिया गया पाकिस्तान उसके इशारे से इतर नहीं जा सकता। इस इलाके में वही है जो पैसे मिलने पर उसे पांव जमाने की जितनी चाहे जमीन दे देगा। अपने बधाई संदेश में जिनपिंग ने साफ कहा है बीजिंग इस्लामाबाद के साथ सदा खड़ा दिखेगा। जिनपिंग के अनुसार, पाकिस्तान में चल रहा सीपीईसी का काम बीआरआई परियोजना की एक अनूठी मिसाल कायम करेगा।
शी ने यह भी कहा कि उनका देश पाकिस्तान के साथ मजबूती से खड़ा रहेगा, हालात चाहे जैसे हों। राष्ट्रपति शी के इस बयान को विशेषज्ञ इटली के दिए तगड़े झटके को बेअसर करने की चीन की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि भारत का विरोध संतुलित करने के लिए पाकिस्तान को साथ मिलाए रखना जरूरी है।
पाकिस्तान में जोश जगाने की गरज से ही जिनपिंग ने अपने संदेश में यह दावा भी किया पाकिस्तान का आर्थिक और सामाजिक विकास हुआ है तो बस सीपीईसी के कारण। दिलचस्प बात है कि यह सुनकर पाकिस्तान के नेता समझ नहीं पा रहे हैं कि शी ने उनकी तारीफ की है या अपनी परियोजना की। क्योंकि इसके मायने ये हुए कि पाकिस्तान के लोगों ने अपने बूते कोई ‘विकास’ नहीं किया है।
पाकिस्तान के नेता चीन के राष्ट्रपति के इस बधाई संदेश को पूरी स्वामिभक्ति के भाव के साथ सुनते रहे और अपनी ‘काबिलियत’ की खुद ही दाद देते रहे। शी जिनपिंग के ‘साथ देता रहेगा’ शब्द उन्हें चीन ‘पेट भरता रहेगा’ जैसे सुनाई दिए होंगे। क्योंकि वे भी जानते हैं कि बीआरआई के अंतगर्त बन रह चीन—पाकिस्तान आर्थिक गलियारा बनते 10 साल पूरे तो हो गए हैं, लेकिन ये पूरा कब होगा, इसे लेकर संशय बना रहा है। कारण यह कि इसका काम कई मौकों पर बाधित हो चुका है। कभी स्थानीय नागरिकों ने इसके विरुद्ध आंदोलन किए हैं तो कभी पाकिस्तान को पैसा न पहुंचने पर काम बंद कर दिया गया। कभी प्राकृतिक आपदाएं आईं तो कभी आतंकी आपदाएं।
सीपीईसी के इस कार्यक्रम में, जैसी उम्मीद थी, परियोजना की धीमी चाल पर चिंता जताई गई और इसे और तेजी से चलाने की बातें की गईं। दरअसल एक तरह से यह पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के कार्यकाल के दौरान ही लगभग ठप पड़ी है। इसलिए भी चीन के राष्ट्रपति का पाकिस्तान को पुचकारा जाना स्वाभाविक ही था।
चीन के राष्ट्रपति का संकेत साफ है कि पाकिस्तान को नजदीक बनाए रखेंगे। बीआरआई को तेजी से बढ़ाने के लिए दोनों योजनाओं में और सुधार करेंगे, आपसी में समन्वय और सहयोग को कसेंगे। सीपीईसी परियोजना एक तरह से राष्ट्रपति शी की नाक का सवाल बन गई है। चीन की आर्थिक तरक्की के लिहाज से इसे बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसीलिए शी संबंधित पक्षों में एक नया जोश भरने की कोशिश में हैं।
पाकिस्तान में जोश जगाने की गरज से ही जिनपिंग ने अपने संदेश में यह दावा भी किया पाकिस्तान का आर्थिक और सामाजिक विकास हुआ है तो बस सीपीईसी के कारण। दिलचस्प बात है कि यह सुनकर पाकिस्तान के नेता समझ नहीं पा रहे हैं कि शी ने उनकी तारीफ की है या अपनी परियोजना की। क्योंकि इसके मायने ये हुए कि पाकिस्तान के लोगों ने अपने बूते कोई ‘विकास’ नहीं किया है। अब चीन के अनुसार, दोनों देश सुरक्षा और विकास को लेकर एक-दूसरे का सहयोग करते रहेंगे, आपसी रणनीतिक रिश्ते को एक नई ऊंचाई पर लेकर जाएंगे।
चीन जानता है कि भारत सीपीईसी का धुर विरोधी है। इसके पीछे भारत के अपने जायज तर्क भी हैं। लेकिन तो भी इस परियोजना को आगे बढ़ाने की घोषणा करके ड्रैगन यह जताना चाहता है कि उसे भारत के मत की इतनी चिंता नहीं है। भारत का तर्क है कि यह परियोजना उस पीओजेके से गुजरती है जो भारत का क्षेत्र है। इसलिए चीन का या पाकिस्तान का उस क्षेत्र को लेकर कुछ करने का कोई हक नहीं बनता। अगर वे ऐसा करते हैं तो यह गैरकानूनी है।
पता चला है कि चीन ने पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर के हिस्से में पीएलए के सैनिकों को तैनात किए हुए है, जो वहां बंकर तथा अन्य सामरिक अड्डे बना रहा है। भारत ने इसे लेकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है। स्कार्दू के हवाईअड्डे पर चीनी वायुसेना के लोग देखे गए हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार, चीन सीपीईसी परियोजना में अभी तक 30 अरब डॉलर लगा चुका है। पता चला है कि ग्वादर में ड्रैगन एक नौसैनिक अड्डा बनाने जा रहा है। इसे भारत के लिए एक बड़ी चुनौती की तरह देखा जा रहा है।
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