दुनियाभर में कंगाल देश के नाते कुख्यात हुए भारत के पड़ोसी इस्लामी देश की सुर बदले से दिख रहे हैं। भूखमरी के कगार पर पहुंची अधिकांश गरीब जनता की पीड़ा दूर करने में नाकाम रहे पाकिस्तान के ‘अरबपति नेताओं’ के बोल अचानक नरम कैसे पड़ गए? प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ अब भारत के साथ बातचीत की इच्छा क्यों जताने लगे?
ये ऐसे सवाल हैं जिनको लेकर भारत—पाकिस्तान मामलों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ खोजबीन में जुट गए हैं। पाकिस्तान के मीडिया में आए एक समाचार के अनुसार, इस्लामाबाद में शरीफ ने ‘विकास’ की चिंता करते हुए, भारत के साथ बात करने की इच्छा जताई हैं। 2019 से दोनों देशों के बीच बंद पड़ी कैसी भी बातचीत के लिए शरीफ की बातों में आखिर शराफत कितनी है?
दरअसल शाहबाज को ‘विकास की चिंता’ हो रही है। उसे ही आगे बढ़ाने के प्रयास के तहत पड़ोसी इस्लामी देश के नेता को अचानक भारत ‘याद’ आया है। वैसे आज विकास और भारत पूरी दुनिया में पर्यायवाची शब्द माने जाते हैं।
जिहादी सोच का पाकिस्तान भारत से तीन युद्ध लड़ चुका है और हर बार मुंह की खाई है, बेइज्जती कराई है। हर बार पिटने के बावजूद, नई शरारतों के साथ वह अपने फौजियों को भारत की सीमा में घुसाकर हम पर युद्ध थोपता रहा है। लेकिन ‘कश्मीर’ के नाम पर उसे सिर्फ दुनियाभर से दुत्कार सुनने को मिली है।
भारत की स्थिति एकदम स्पष्ट रही है। पूरा जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इस पर कोई समझौता हो ही नहीं सकता। बात सिर्फ पाकिस्तान के कब्जाए कश्मीर को साथ मिलाकर भारत को पुन: अखंड बनाने की है।
कल इस्लामाबाद में जब शाहबाज शरीफ ने भारत से बात शुरू करने की इच्छा जताई तो वहां मौजूद अधिकांश लोग कुछ खास उत्साहित नहीं दिखे। क्योंकि पाकिस्तान के नेताओं का यह शगल रहा है कि वार्ता की बात उछालकर दुनिया के सामने खुद को बड़ा सकारात्मक दिखाया जाए लेकिन उन्होंने कभी भारत की उस बात पर गौर करने की हिम्मत नहीं दिखाई कि सीमापार आतंकवाद के रुकने तक कोई वार्ता नहीं की जाएगी।
शरीफ ने कल यह भी कहा कि ‘विकास’ पर आगे बढ़ना है। पाकिस्तान किसी के भी विरुद्ध मन में कुछ नहीं रखता है। सबसे बात करना चाहता है, अपने पड़ोसी देश यानी भारत के साथ भी। शरीफ का कहना था कि भारत से तीन युद्ध लड़कर देख लिए, कोई नतीजा नहीं निकला। युद्ध से आगे बढ़ना मुश्किल है। अब रिश्तों को महत्व देना होगा।
इस संदर्भ में शरीफ के शब्द थे कि ‘पाकिस्तान ने गत 75 साल में भारत के साथ 3 बार युद्ध लड़े। इसकी वजह से देश को मिली तो बस गरीबी, बेरोजगारी, जाहीली, खराब स्वास्थ्य व्यवस्था तथा संसाधनों की कमी।
यह उसी पाकिस्तान के ‘शरीफ’ हैं जो 1947 के बाद से कश्मीर का राग अलापते आ रहे हैं। दुनिया भर के मंचों पर ‘कश्मीर’ का रोना रो चुके हैं। लेकिन इस मुद्दे पर भारत की स्थिति एकदम स्पष्ट रही है। पूरा जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इस पर कोई समझौता हो ही नहीं सकता। बात सिर्फ पाकिस्तान के कब्जाए कश्मीर को साथ मिलाकर भारत को पुन: अखंड बनाने की है।
पाकिस्तान के शरीफ अपने भाषण में यह जोड़ना नहीं भूले कि बातचीत आमने सामने बैठकर गंभीर मुद्दों पर हो। सब जानते हैं कि पाकिस्तान के नेता ‘गंभीर बात’ करते हैं तो यह उनकी जगहंसाई की वजह ही बनती है। दूसरे, शरीफ अभी हवाई किले बनाते हुए भी ‘शर्त’ की बात कर रहे हैं।
भारत एक बार नहीं, अनेक बार स्पष्ट कर चुका है कि बात होगी तो उसके कब्जाए कश्मीर से कब्जा हटाने को लेकर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर हर मंच से यह स्पष्ट कर चुके हैं। और पाकिस्तान जानता है कि आजादी के बाद पहली बार, भारत में जो मोदी सरकार काम कर रही है वह अपनी बातों से नहीं पलटती। उसकी इसी खूबी की वजह से दुनिया भर में उसकी प्रशंसा हो रही है, यहां तक कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान सहित कई अन्य नेता भी भारत की कूटनीति और स्वतंत्र विदेश नीति की तारीफें करते रहे हैं।
यहां यह भी ध्यान देना होगा कि शाहबाज की अमेरिका और भारत के साथ व्यवहार फिर से करना शुरू करने की ‘इच्छा’ चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के दूसरे चरण के आरम्भ के मौके पर पैदा हुई है। भारत इस परियोजना का विरोध करता आ रहा है। इस वजह से पाकिस्तान का आका चीन भी भारत से चिढ़ा हुआ है। इस भाषण में शरीफ ने बड़ी ‘शराफत’ के साथ घुड़की दी कि उनका इस्लामी देश परमाणु शक्ति से सम्पन्न है।
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