आयोग की ताकत क्या होती है, इसका सबसे पहले देश को तब एहसास हुआ जब तत्कालीन चुनाव आयोग के आयुक्त टीएन शेषन ने चुनाव सुधार प्रणाली में अपनी शक्तियों का प्रदर्शन किया और यह सफलता पूर्वक बताया कि काम करने और सुधार की दिशा में आगे बढ़ने की दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो आप तमाम चुनौतियों का सामना आसानी से न सिर्फ कर सकते हैं, बल्कि कई चेहरों पर खुशी लाने का कारण भी बनते हैं।
यह मामला भी कुछ ऐसा ही है, घटना बहुत छोटी सी है, लेकिन अहम इसलिए हो गई क्योंकि यह कई नन्हें बच्चों के चेहरों पर मुस्कान लाने और उन्हें निर्भीक होकर होहोहो, हाहाहा…निश्छल मन से हंसने और चहचहाहट का कारण बन गई। मध्यप्रदेश में होने को कई आयोग कार्य कर रहे हैं। आयोग की तमाम अनुशंसाएं जहां शासन और प्रशासन रद्दी की टोकरी में डाल देते हैं या जवाब में कार्य होना बताकर इतिश्री कर लिया जाता है। ऐसे में यह बहुत कम होता है कि किसी भी आयोग की कार्रवाई सुर्खियां बटोरने का कारण बनती हैं।
दरअसल, राज्य में मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग जिस तरह से इन दिनों काम कर रहा है उसने शासन, प्रशासन समेत आमजन को भी अचंभित कर रखा है। प्रदेश में यह पहला मौका है जब बालकों के हित में काम करने वाले इस आयोग ने यह बता दिया है कि राज्य के सभी बच्चे उसके अपने हैं, जहां भी शिकायत मिलेगी, बाल आयोग उस पर शासन से कार्रवाई कराएगा और जहां आयोग के ध्यान में कमियां पाई जाएंगी, बाल आयोग वहां स्वत: संज्ञान लेकर कार्य करेगा और जब तक समस्याओं का निराकरण नहीं होगा, जवाबदारों से उसके बारे में पूछा जाता रहेगा।
ताजा मामला मध्य प्रदेश के सागर जिले की जैसीनगर तहसील के ग्राम शोभापुर से जुड़ा है। गांव में रोजगार के कोई आधुनिक साधन नहीं, परम्परागत साधन सिर्फ खेती है। जब अधिक बारिश हो जाती है तो खेतों में पानी भर जाता है और खेती चौपट हो जाती है। गर्मियों में सूखे की मार झेलता बुंदेलखण्ड हर साल पानी के लिए तरसता हुआ देखा जाता है। ऐसे में ज्यादातर घरों के पुरुष शहरों में रोजगार करने चले जाते हैं और महिलाएं दिनभर में अपने खाली समय यहां घर-घर बीड़ी तैयार करती हुई देखी जा सकती हैं। प्राय: हर महिला को इससे डेढ़ से दो हजार रुपए तक का मासिक भुगतान मिल जाता है। इस प्रकार जितनी महिला सदस्य उतनी अधिक आमदनी प्राप्त कर इस गांव का हर परिवार अपने विकास के साथ ग्राम और तहसील जैसीनगर के विकास में लगा हुआ है।
शिवराज सरकार ने यहां बच्चों के लिए शासकीय स्कूलों की सुदृढ़ व्यवस्था कर रखी है, जिनमें बच्चे पढ़ते हुए मिल जाते हैं। साथ ही अनुसूचित जाति-जनजाति के बच्चों के लिए छात्रावासों की व्यवस्था भी है, लेकिन ज्यादातर ये छात्रावास आपको खाली मिलेंगे। अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को सागर या भोपाल पढ़ने के लिए भेज देते हैं। सिर्फ यहां वही बच्चे रह जाते हैं जिनके परिवार आर्थिक रूप से कमजोर हैं। इन सभी स्थितियों के बीच जब गांव शोभापुर में शनिवार मध्यप्रदेश बाल संरक्षण आयोग की टीम ईसाई मिशनरी द्वारा जनजाति बालिकाओं के लिए संचालित वंदना बालिका विकास केंद्र एवं बालक छात्रावास को देखने पहुंची तो इस बार नजारा बदला हुआ था।
इन ईसाई छात्रावासों को लेकर राज्य बाल आयोग को शिकायत मिली थी कि यह बिना किसी शासन की अनुमति के संचालित हो रहे हैं, यहां आकर आयोग को पता चला कि इस साल मिशनरी छात्रावास में कोई एडमिशन नहीं दिया गया। जो बच्चे पहले से रह रहे थे उन्हें उनके घर या अन्यत्र भेज दिया गया है। जब आयोग सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा और ओंकार सिंह ने इसका कारण पूछा तो सिस्टर कुसुम ने बताया कि शासन की अनुमति नहीं मिली थी। जब फिर पूछा गया कि अब तक बिना अनुमति के आप इन्हें संचालित क्यों कर रहे थे, इस पर सिस्टर कुसुम का कहना था कि पुरानी बातें छोड़ो। अभी हमने इसे बंद कर दिया है। आपको यहां बच्चे नहीं मिले, बात खत्म। लेकिन बात यहां इतनी आसानी से कहां खत्म होने वाली थी।
यह क्या! बाल आयोग को फिर कुछ ऐसा दिखा, जिस पर उसने सिस्टर कुसुम से पूछ ही लिया- आप तो (मिशनरी) इतनी चैरिटी करते हैं, फिर ये गांव के बच्चे इस तरह नीचे से अपनी जान जोखिम में डालकर अंदर जहां आपने बच्चों के लिए झूला, खिलसपट्टी लगा रखी हैं, वहां क्यों आ रहे हैं ? आपने इस ग्राउण्ड में ताले क्यों लगा रखे हैं? जबकि यह मैदान तो आपके परिसर से बाहर बना हुआ है। आयोग का यह पूछना हुआ और सिस्टर कुसुम का झठ से जवाब आया- हमें आपसे प्रशंसा नहीं सुननी, हमें मालूम है आप यहां क्यों आए हैं।
फिर पूछा गया- क्या यह जमीन आपके हिस्से में है, सिस्टर कुसुम ने कहा- ग्राम पंचायत ने हमें दी है। आयोग सदस्य डॉ. निवेदिता बोलीं, कागज दिखाओ, तो अंदर से कागज तो नहीं आए, लेकिन बंद मैदान को खोलने के लिए चाबियां जरूर आ गईं। अब गेट खोल दिया गया, जिसके नीचे से थोड़ी देर पहले तक कटीले तारों से सावधानी पूर्वक बचते-बचाते गांव के बच्चे अंदर घुसने की जद्दोजहद कर रहे थे ताकि वे झूले और खिसलपट्टी का आनन्द ले पाएं। ऐसे में जो अंदर नहीं जा पा रहे थे, वे बेचारे अपने आप को कोस रहे थे, सोच रहे थे, काश; ये झूले ताले में बंद न होते। पर अब नजारा बदल चुका था। उन्हें नहीं पता था कि आज उनकी यह इच्छा भी पूरी होने जा रही है। शायद भगवान महादेव के इस सावन माह में इन नन्हें बच्चों के लिए ही बाल आयोग को यहां भेजा था, इन बच्चों की खुशियों का ठिकाना नहीं था, वह देखते ही बन रही थीं।
दरअसल, बाल आयोग की इस कार्रवाई में भगवान महादेव इसलिए बीच में आ गए है, क्योंकि कभी इसी मैदान के मध्य में बने चबूतरे पर महादेव शिवलिंग रूप में विराजते थे, जिन्हे ईसाई मिशनरी ने बड़ी ही चालाकी से वहां से हटा दिया था, यह कहकर कि बच्चों को खेलने के लिए मैदान चाहिए और यहां तो बीच में शिवलिंग है, इसे हटा देंगे तो मैदान पूरी तरह से बच्चों के खेलने के काम आएगा। फिर भोलेनाथ तो भोले हैं उनके भक्त भी भोले भाले हैं, आ गए मिशनरी की बातों में और ग्रामवासियों ने भोलेनाथ को दूसरे स्थान पर विजारित कर दिया।
मैदान अब आधुनिक होने लगा, झूले भी लगे और अन्य बच्चों के खेल के आधुनिक यंत्र भी। लेकिन यह क्या! जिन ग्रामीण बच्चों के लिए यह लगे, अब वे ही यहां खेल नहीं सकते थे। सिर्फ उन्हीं बच्चों को इस खेल के मैदान में जाने की अनुमति थी जोकि इस ईसाई छात्रावास में रहते। मैदान के चारों ओर कांटेदार तार व बीच मे लगे गेट के नीचे तक इन तारों से उसे बांधा जा चुका था, लेकिन बच्चे तो बच्चे ठहरे, वे अपनी जान जोखिम में डालकर कटीले तारों में से किसी तरह खेलने के लालच में अंदर जा रहे थे, लेकिन आज का दिन इन सभी ग्रामनन्हों के जीवन में हरियाली लेकर आया था।
मैदान का गेट खुलते ही बाहर खड़े अनेकों बच्चे जैसे उत्सव मनाने में जुट गए। सभी एकसाथ अलग-अलग खेल यंत्रों पर विराजमान हो गए, जिन्हें इन पर पहले बैठने का मौका नहीं मिला, वे अपनी बारी आने का इंतजार करने लगे। मैदान का हर कोना बच्चों की चहचहाहट से गुलजार था, असली हरियाली और सावन वर्षों बाद यहां सागर जिले की जैसीनगर तहसील के ग्राम शोभापुर में इन तमाम बच्चों के लिए आया है।
अपने बच्चों को खुश होते और खेलता देख इस ईसाई मिशनरी परिसर के पासपास के घरों की माताओं के चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान देखी जा रही थी। ऐसे में पिता कहां पीछे रहने वाले थे, उनमें इतना उत्साह जगा कि एक झटके में उन्होंने मैदान के चारों ओर लगी कांटे की तार उखाड़ फेंकी। मैदान अब आजाद था, कंटीली तारों से। बच्चों के चेहरों पर खुशी थी, माताएं मुस्कुरा रहीं थीं, पिताओं ने भी अपने कर्तव्य का निर्वाह कर दिया था। आयोग की टीम अब वापस जा रही थी और बच्चे कह रहे थे, अब कब आओगे मैडम, सर। ग्रामीण कह रहे थे, एक दिन तो इस गांव में गुजारो। हमाई खातिरदारी स्वीकार्य करो।
देखा जाए तो बाल आयोग ने यहां कोई बड़ा काम नहीं किया, लेकिन जो किया, वह इन ग्रामवासियों की नजर में बेहद खास और बड़ा है। अब तक जो बड़े-बड़े अधिकारी और नेता नहीं कर पाए, वह आयोग की एक विजिट ने कर दिखाया था। ऐसे तमाम खासकाम हम और आप भी कर सकते हैं जहां हैं वहां से, जिस पद पर हैं, जिस कार्य में हैं वहां रहते हुए कर सकते हैं, बस चाहिए तो एक दृढ़ इच्छा शक्ति।
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