भ्रष्टाचारी और अहंकारी नेताओं ने नैतिकता को ताक पर रखकर कब्जा कर रखा है। दिनेश का इशारा चारा घोटाले में सजा पाए लालू प्रसाद यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर था।
पटना में घूम-घूम कर पान बेचने वाले दिनेश गोप 13 जुलाई को उस जगह से कुछ ही दूरी पर थे, जहां भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को पुलिस ने बेरहमी से पीटा था। दिनेश का कहना है कि भाजपा के नेताओं को केवल इसलिए पीटा गया क्योंकि वे उस सत्ता का विरोध कर रहे थे, जिस पर भ्रष्टाचारी और अहंकारी नेताओं ने नैतिकता को ताक पर रखकर कब्जा कर रखा है। दिनेश का इशारा चारा घोटाले में सजा पाए लालू प्रसाद यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर था।
दिनेश का यह भी कहना था कि इस लाठीचार्ज से लालू और नीतीश ने भाजपा नेतृत्व, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह संदेश देने का ‘दुस्साहस’ किया कि जो भी उनका विरोध करेगा, उनका यही हाल होगा। जो बात पटना का कोई राजनीतिक पंडित कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है, उसे दिनेश बहुत ही सहजता से कह गए। भाजपा के नेताओं पर बर्बर लाठीचार्ज पर राज्य के बड़े-बड़े पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक प्राय: चुप्पी साधे हुए हैं। इन लोगों को डर है कि यदि कुछ बोला तो भ्रष्टाचारी और अहंकारी सत्ता उन्हें भी नहीं छोड़ेगी। वहीं आम आदमी कह रहा है कि जो कुछ हुआ, वह पूर्व नियोजित और सरकार द्वारा प्रायोजित था।
यही निष्कर्ष भाजपा द्वारा गठित केंद्रीय जांच समिति का भी है। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की अध्यक्षता में गठित इस समिति ने 19 जुलाई को भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा को सौंपी अपनी रपट में इस मामले की जांच उच्च न्यायालय में कार्यरत किसी न्यायाधीश या सीबीआई से कराने की मांग की है।
बता दें कि 13 जुलाई को पटना में भाजपा के नेता और कार्यकर्ताओं ने राज्य में शिक्षकों की नियुक्ति, 10,00,000 लोगों को नौकरी, भ्रष्टाचार, प्रशासनिक अराजकता जैसे मुद्दों को लेकर विधानसभा की ओर मार्च किया था। कोई भी व्यक्ति इस मार्च में शामिल हो सकता था, लेकिन राज्य सरकार ने शिक्षकों को इस मार्च में शामिल होने से रोकने के लिए चाकचौबंद तैयारी की थी। राज्य के सभी 75,000 से अधिक विद्यालयों के निरीक्षण का आदेश जारी हुआ था। इसके बावजूद मार्च में हजारों लोगों ने भाग लिया। कहा जाता है कि जैसे ही सरकार को पता चला कि मार्च में बहुत भीड़ है, तो वह घबरा गई। इसके बाद पुलिस ने वह किया, जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। पुलिस की लाठी से भाजपा कार्यकर्ता विजय सिंह की मौत हो गई। कई विधायक और सांसद गंभीर रूप से घायल हुए।
महाराजगंज के सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल का सर फट गया। सांसद द्वारा बार-बार कहने के बावजूद उन पर लाठियां बरसाई गई। सांसद अशोक यादव भी घायल हुए। पूर्व मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह पर भी डंडे बरसाए गए। पूर्व मंत्री प्रमोद कुमार, विधायक केदार गुप्ता जैसे कार्यकर्ताओं को गंभीर चोट लगी। किसी का हाथ टूटा, तो किसी का पैर। भाजपा का यह भी कहना है कि पुलिस ने अपने आकाओं के निर्देश पर ऐसी बर्बरता की, ताकि भविष्य में कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन न कर सके।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी का कहना है, ‘‘शांतिपूर्ण मार्च पर लाठियां बरसाई गईं। पूर्व से न कोई रोक थी और न ही धारा 144 लागू की गई थी। प्रशासन ने इसकी कोई सूचना भी नहीं दी थी। सरकारी तंत्र ने भाजपा कार्यकर्ता विजय सिंह की हत्या कराई है।’’ इस मामले में भाजपा ने नीतीश कुमार सहित कुछ अन्य नेताओं और वरिष्ठ अधिकारियों के विरुद्ध मामला दर्ज कराया है।
पटना उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता हीरा शर्मा भाजपा कार्यकर्ताओं पर हुए लाठीचार्ज को गलत मानते हैं। उनके अनुसार भारतीय संविधान में देश के प्रत्येक नागरिक को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने की अनुमति दी गई है। संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ब) के अनुसार, देश के सभी नागरिक, राजनीतिक दलों को एक जगह एकत्रित होकर विरोध जताने का अधिकार है, लेकिन इस दौरान प्रदर्शनकारियों के हाथ में किसी तरह का कोई हथियार नहीं होना चाहिए।
‘‘लालू प्रसाद ने गरीबों-पिछड़ों को गुमराह कर सत्ता पाई और इसका दुरुपयोग केवल संपत्ति बनाने में किया। उनका परिवार देश के सर्वाधिक भ्रष्ट राजनीतिक परिवारों में है। इससे बिहार शर्मसार है। तेजस्वी यादव ने न पढ़ाई पूरी की, न कोई नौकरी की और न उनके माता-पिता के पास कोई पुश्तैनी संपत्ति थी। ऐसे में उन्हें बताना चाहिए कि वे 33 साल की उम्र में 52 बहुमूल्य संपत्तियों के मालिक कैसे बन गए?’’
-सुशील कुमार मोदी, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सदस्य
वहीं, सीआरपीसी-1973 और आईपीसी-1860 और पुलिस अधिनियम-1861 के तहत किसी आंदोलन, विरोध प्रदर्शन और गैर-कानूनी सभाओं को संभालने का अधिकार पुलिस को दिए गए हैं। सीआरपीसी की धारा-129 के अनुसार, कार्यकारी दंडाधिकारी या जिस क्षेत्र में प्रदर्शन हो रहा है, वहां का थाना प्रभारी प्रदर्शन को तितर-बितर करने का आदेश दे सकता है, जिससे शांति बिगड़ने या हिंसा फैलने की आशंका हो। लेकिन भीड़ को तितर-बितर करने के लिए किसी प्रकार का बल प्रयोग करने से पहले प्रशासन को माइक से घोषणा करनी पड़ती है।
पहले पानी की बौछार, फिर अश्रु गैस और अंत में लाठी का प्रयोग करना होता है। लाठी भी कमर के नीचे मारी जाती है। सबसे आखिर में रबर बुलेट का इस्तेमाल किया जाता है। अगर कोई जन प्रतिनिधि अपना परिचय देता है तो उसके साथ सौम्यता के साथ बात करनी होती है। परंतु 13 मार्च को सारी मर्यादाएं ध्वस्त थीं। भाजपा के दीघा विधायक डॉ. संजीव चौरसिया ने ठीक ही कहा कि इस सरकार से मर्यादा की अपेक्षा करना भी बेमानी है।
दरअसल, यह सारा मामला उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को बचाने को लेकर है। बता दें कि 3 जुलाई को दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट में सीबीआई ने नौकरी के बदले जमीन घोटाले के अपने पूरक आरोपपत्र में तेजस्वी यादव का भी नाम जोड़ा था। इस मामले में लालू प्रसाद और राबड़ी देवी पहले से अभियुक्त हैं। इस आरोपपत्र के बाद बिहार विधान मंडल के दोनों सदनों में तेजस्वी यादव के इस्तीफे को लेकर भाजपा आक्रामक थी। निश्चित रूप से राज्य सरकार को भाजपा का यह रवैया रास नहीं आ रहा होगा।
‘‘शांतिपूर्ण मार्च पर लाठियां बरसाई गईं। पूर्व से न कोई रोक थी और न ही धारा 144 लागू की गई थी। प्रशासन ने इसकी कोई सूचना भी नहीं दी थी। सरकारी तंत्र ने भाजपा कार्यकर्ता विजय सिंह की हत्या कराई है।’’-सम्राट चौधरी, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष
इसलिए लोग कह रहे हैं कि बौखलाई राज्य सरकार ने भाजपा के नेताओं को पिटवाया। तेजस्वी की संपत्ति पर बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी का बयान उल्लेखनीय है। उन्होंने कहा, ‘‘लालू प्रसाद ने गरीबों-पिछड़ों को गुमराह कर सत्ता पाई और इसका दुरुपयोग केवल संपत्ति बनाने में किया। उनका परिवार देश के सर्वाधिक भ्रष्ट राजनीतिक परिवारों में है। इससे बिहार शर्मसार है। तेजस्वी यादव ने न पढ़ाई पूरी की, न कोई नौकरी की और न उनके माता-पिता के पास कोई पुश्तैनी संपत्ति थी। ऐसे में उन्हें बताना चाहिए कि वे 33 साल की उम्र में 52 बहुमूल्य संपत्तियों के मालिक कैसे बन गए?’’
बता दें कि सुशील कुमार मोदी लालू परिवार के भ्रष्टाचार को लगातार उजागर करते रहे हैं। उन्होंने इस परिवार के भ्रष्टाचार पर ‘लालू लीला’ नामक पुस्तक भी लिखी है। उन्होंने सवाल पूछा कि नौकरी के बदले जिन लोगों की करोड़ों रुपए की कीमती जमीन एके इन्फोसिस्टम प्राइवेट लिमिटेड के नाम लिखवायी गई, उस कंपनी को तेजस्वी यादव ने मात्र 1,00,000 रुपए में कैसे खरीद लिया? तेजस्वी यादव पटना के सगुना मोड़ इलाके में 750 करोड़ रुपए का जो बहुमंजिला मॉल बनवा रहे थे, उसके लिए इतने पैसे कहां से आए, यह जानकारी बिहार की गरीब जनता से क्यों छुपायी गई? इसलिए बिहार में सब जानते हैं कि ऐसे में भला लालू यादव भाजपा के इस मार्च को कैसे बर्दाश्त कर सकते थे।
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