नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने वक्फ एक्ट के कुछ प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्रीय कानून मंत्रालय और अल्पसंख्यक मंत्रालय को चार हफ्ते में अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया। चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले की अगली सुनवाई 7 नवंबर को करने का आदेश दिया।
सुनवाई के दौरान 22 मार्च को केंद्र सरकार ने कहा था कि वक्फ एक्ट के प्रावधानों को चुनौती देते हुए देश के अलग-अलग हाई कोर्ट में कुल 120 याचिकाएं लंबित हैं। केंद्र सरकार ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में भी ट्रांसफर करने की मांग करने वाली याचिका लंबित है। 12 मई, 2022 को कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। वक्फ एक्ट को लेकर एक याचिका देवेंद्र नाथ त्रिपाठी ने दायर की है। याचिका में वक्फ एक्ट की धारा 4,5,6,7,8,9,14 और 16(ए) को चुनौती दी गई है।
याचिका में इन धाराओं को गैरकानूनी घोषित करने की मांग की गई है। इसके पहले एक दूसरी याचिका बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है। उपाध्याय की याचिका पर हाई कोर्ट नोटिस कर चुका है। उपाध्याय याचिका में कहा गया है कि वक्फ बोर्ड को ट्रस्टों, मठों, अखाड़ाें और सोसायटीज से ज्यादा और निर्बाध अधिकार मिले हुए हैं, जो उसे एक विशेष दर्जा देते हैं। याचिका में मांग की गई है कि सभी ट्रस्टों, चैरिटेबल संस्थाओं, धार्मिक संस्थाओं के लिए एक समान कानून बनाए जाएं।
याचिका में कहा गया है कि वक्फ और वक्फ संपत्तियों के लिए अलग से कानून नहीं बनाया जा सकता है। याचिका में वक्फ कानून की धारा 4, 5, 6, 7,8 और 9 को मनमाना और गैरकानूनी बताया गया है। याचिका में कहा गया है कि वक्फ कानून के ये प्रावधान संविधान की धारा 14 और 15 का उल्लंघन करती हैं। याचिका में कहा गया है कि वक्फ एक्ट वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन करने की आड़ में बनाया गया है लेकिन वक्फ एक्ट की तहत हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख, बहाई या ईसाई धर्मावलंबियों के लिए कोई कानून नहीं है। ऐसा देश की एकता, अखंडता और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। यहां तक कि देश के संविधान में भी वक्फ का कोई जिक्र नहीं है।
याचिका में मांग की गई है कि धार्मिक संपत्तियों के विवादों का निर्धारण केवल देश के सिविल कोर्ट के जरिये करने के लिए दिशानिर्देश जारी करना चाहिए न कि वक्फ ट्रिब्यूनल के जरिये। याचिका में मांग की गई है कि लॉ कमीशन को सभी ट्रस्टों और चैरिटेबल संस्थाओं के लिए एक समान संहिता बनाने का दिशानिर्देश जारी करना चाहिए। अश्विनी उपाध्याय की ऐसी ही याचिका सुप्रीम कोर्ट पिछले 13 अप्रैल को खारिज कर चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम संसद को कानून बनाने के लिए नहीं कह सकते हैं।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
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