देहरादून : उत्तराखंड में जनसंख्या अंसुतलन (डेमोग्राफी चेंज) का मुद्दा धीरे-धीरे सुर्खियो में आ रहा है। देवभूमि के यूपी से लगे चार जिलों में बढ़ रही मुस्लिम आबादी ने राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन के हालात पैदा कर दिए हैं। इन क्षेत्रों में तबलीगी जमात के सहयोगी संगठनों की सक्रियता बढ़ रही है। जिसके बाद हिंदू संगठनों, संत समाज में भी बेचैनी बढ़ गई है।
उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रही मुस्लिम आबादी के पीछे गजवा ए हिंद का भी षड्यंत्र हो सकता है ? ये बात पहली दृष्टि में काल्पनिक हो सकती है लेकिन जैसे इसे गंभीरता से देखा जाता है तो तस्वीर साफ होती दिखाई देती है।
क्या है गजवा ए हिंद ?
जब कोई मुस्लिम देश या संगठन हिंदुस्तान में इस्लाम को स्थापित करने का अभियान चलाते तो उसे गजवा ए हिंद कहा जाता है। इस योजना को तब शुरू किया गया था। जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था और पाकिस्तान ने अपने पूर्वी पाकिस्तान जो अब बांग्लादेश तक आने जाने के लिए उत्तर भारत से मुस्लिम आबादी बाहुल्य क्षेत्र से एक रास्ता बनाने की योजना बनाई थी। किंतु जब भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश बनवा दिया तो पाकिस्तान की इस योजना को धक्का लगा, बावजूद इसके वो गजवा ए हिंद की साजिश में लगा हुआ है और वो अपने खुफिया एजेंट्स के माध्यम से इस षड्यंत्र पर बराबर काम कर रहा है।
भारत में यूपी, राजस्थान, उत्तराखंड, बिहार, असम, बंगाल आदि राज्यों में कुछ इसी तरह की साजिश की बात कही जा रही है। पिछले साल यूपी उत्तराखंड एटीएस द्वारा गजवा ए हिंद से जुड़े सात आतंकियों को गिरफ्तार भी किया गया था।
भारत में उत्तराखंड में, असम के बाद सबसे तेजी से मुस्लिम आबादी बढ़ रही है। उत्तराखंड में हर दस साल में दो फीसदी मुस्लिम आबादी बढ़ रही थी जो अब ढाई से तीन प्रतिशत हो रही है, देखने में ये बहुत थोड़ी लगती है, लेकिन इसको दूसरी नजर से देखेंगे तो उत्तराखंड में ये आबादी सत्रह प्रतिशत से अधिक तक हो गयी है और अब ये समस्या दूसरी दृष्टि से समझें कि चार मैदानी जिलों, उधमसिंह नगर, नैनीताल, हरिद्वार और देहरादून में ये आबादी पैंतीस फीसदी तक और कहीं और भी ज्यादा हो गई है। जानकारी में आया है कि यूपी से लगे उत्तराखंड के इन चारों जिलों में तबलीगी जमात मरकज का अभियान पूरी तेजी पर है। जिसकी वजह से उत्तराखंड में डेमोग्राफी चेंज समस्या साफ दिखाई देने लगी है।
कथित रूप से कहा जा रहा है कि गजवा ए हिंद की योजना है, यूपी के मैदानी इलाकों से जुड़े इस क्षेत्र और सीमावर्ती राज्यों में अपनी आबादी के जरिए अपनी गतिविधियों को विस्तार देना। एक जानकारी के मुताबिक गजवा ए हिंद के जरिए जमीयत संस्थाओं ने कुछ अपने लक्ष्य निर्धारित किए हैं।
उत्तराखंड में कैसे-कैसे हो रहे है षड्यंत्र ?
राज्य वन भूमि और सरकारी भूमि परअवैध कब्जे करना, कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों का पहला लक्ष्य रहा है। खनन नदियों के किनारे मुस्लिम आबादी ने अवैध रूप से कब्जे कर लिए हैं, वन भूमि यहां तक की कोर जोन के जंगलों में भी मुस्लिम गुज्जर ने सैकड़ों हेक्टेयर भूमि कब्जा ली है, रेलवे, पीडब्ल्यूडी की जमीनों पर अवैध मजारें, मस्जिदें, मदरसे आखिर कैसे खड़ी हो गई ?
देहरादून में ही विनोबा भावे ट्रस्ट की भूदान जमीन पर, गोल्डन फॉरेस्ट, यहां तक कि देहरादून से लगी जंगल नदी बरसाती नाले की जमीनों पर अवैध कब्जे करने में मुस्लिम संगठनों ने योजनाबद्ध तरीके से काम किया है।
उत्तराखंड के हर कैंट एरिया शहर में एक मजार बनी हुई है। इसके अलावा हर बैराज पुल, रेलवे स्टेशन के पास, दून अस्पताल, राजभवन कैंट एरिया, तीर्थ नगरी हरिद्वार ऋषिकेश और अन्य संवेदनशील स्थानों पर भी मजारें बनी हुईं हैं। मुस्लिम समुदाय ने टिहरी झील के आसपास तक मस्जिद-मजार बना दी थी।
जब ये मजारें, मस्जिदें और मदरसे बन रहे थे। तब किसी ने इस पर गौर नहीं किया होगा, किंतु अब इनकी सैकड़ों में संख्या को देख ऐसा लगता है कि ये कहीं “गजवा ए हिंद” की योजना का हिस्सा तो नही ?
हाई-वे और सड़कों पर कब्जे
उत्तराखंड में जितने भी नेशनल हाई-वे हैं या प्रमुख सड़कें हैं इनपर बिजनौर सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, पीलीभीत, रामपुर जिले और कहीं-कहीं तो असम से आए मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अवैध कब्जे किए हुए हैं। हाल ही में आसन बैराज के पास, पछुवा देहरादून में उत्तराखंड जल विद्युत परियोजना कार्यालय से नौ सौ से ज्यादा अवैध कब्जेदारों को नोटिस दिए गए हैं जिनमें 714 मुस्लिम परिवार हैं। ये सभी मुस्लिम लोग यूपी के सहारनपुर जिले से यहां आकर बस गए हैं, यहां से जब प्रशासन ने अतिक्रमण हटाया तो यहां बनी मस्जिदों, मदरसों को छोड़ दिया गया, अभियान के एक माह बाद ये अतिक्रमणकारी फिर से मजहबी स्थलों की आड़ लेकर बसने लगे हैं।
देहरादून जिले के हालात सबसे खराब
पछुवा देहरादून में 170 मस्जिदें, सत्तर मजारें अवैध रूप से बनी हुईं हैं, जिनमें से पचास के करीब मजारें धामी सरकार के बुल्डोजर ने ध्वस्त कर दी हैं। बावजूद इसके वाल और मजारें शेष हैं। गौरतलब, बात ये भी है कि जब मुस्लिम सिवाय खुदा के कहीं और सजदा नहीं करते तो फिर ये मजारें किसके लिए बनाई गईं? स्वाभाविक है सरकार की जमीनों पर अवैध कब्जे करने की नियत से बनाई गईं और यहां अंधविश्वास में विश्वास करने वाले हिंदू लोगों की आड़ लेकर अपने अवैध कब्जे बढ़ाए जा रहे हैं।
गौर करने की बात है कि तख्त डाल कर नारियल बेचने वाले मुस्लिमों ने एक योजना बद्ध तरीकों से मुख्य सड़क और अस्पताल जैसी संवेदनशील स्थानों के बाहर काबिज हैं और इन्हें तख्त के पीछे झोपड़ी डाल कर बिठाया गया है। रोड पर नगर प्रशासन जहां पार्किंग की पट्टी लगाती है और फुटपाथ पर, वहां मुस्लिम लोग फल, सब्जी आदि के ठेले लगाकर बैठ चुके हैं, जबकि पालिका निगम का ये नियम या प्रावधान है कि ये ठेले पहिए के द्वारा चलायमान रहेंगे कहीं काबिज नहीं होंगे, किंतु इन्होंने सड़कों को कब्जा लिया है।
जमीनों के दस्तावेजों में हेरफेर
उत्तराखंड सरकार को हाल ही में देहरादून जिले की जमीनों के दस्तावेजों में हेर फेर करने की साजिश का पता चला है। जिसके बाद से सीएम पुष्कर सिंह धामी ने एक विशेष जांच दल गठित किया है। दरअसल, उत्तराखंड बनने से पहले देहरादून सहारनपुर कमिश्नरी का हिस्सा था, राज्य बनने के बाद सहारनपुर में ही जमीनों के दस्तावेज पड़े रहे जिन्हें देहरादून की डीएम सोनिका खुद लेकर यहां आईं और जब उनका डिजिटल काम शुरू हुआ तो इस साजिश का पर्दाफाश हुआ।
जानकारी के मुस्लिम भू माफिया सराहनपुर से देहरादून आकर यहां की जमीनों के मालिकों को भू दस्तावेजों में बदलाव कर धमकाते थे कि ये जमीन उनकी है। ऐसे प्रकरणों के सामने आने पर धामी सरकार ने सख्त रुख अपनाया है।
बाजार कारोबार पर कब्जे
जमातों में आने वाले मुस्लिम युवाओं को इस बात के लिए प्रेरित किया जाता है कि वो लोहे, प्लास्टिक, मशीन, मोबाइल, बारबर, जहाज और डॉक्टरी के कारोबार करें। गौर कीजिए लोहे का कारोबार कभी हिंदू वंचित समाज के लोग किया करते थे। अब सब काम मुस्लिम कर रहे हैं, मशीन रखना और चलाने में मिस्त्री कारीगरों की एक लंबी सूची है। जिस पर ये मुस्लिम काबिज हो चुके हैं। प्लास्टिक कबाड़ को रीसाइकिल करने में ये मुस्लिम हावी हैं, अब और महत्वपूर्ण बात यह है कि हर शहर में प्राइम लोकेशन पर मुस्लिम महंगे किराए देकर दुकानें खोल चुके हैं, गौर करें कि यहीं से लव जिहाद के मामले शुरू हो रहे हैं।
क्या है लव जिहाद का अभियान का सच ?
उत्तराखंड में मुस्लिम युवा हिंदू और ईसाई लड़कियों को लव जिहाद के जरिए कन्वर्जन करवा कर निकाह कर रहे हैं। पिछले दस-पंद्रह सालों में मैदानी ही नहीं पहाड़ी जिलों से भी लव जिहाद के मामले सामने आए हैं, नाम बदल कर उत्तराखंड गरीब परिवारों की लड़कियों को बरगला कर भगा ले जाने और उनका कन्वर्जन कराने के मुकदमे पुलिस में दर्ज हुए हैं। इसके पीछे तबलीगी सोच ये कहती है कि हिंदू लड़की का कन्वर्जन कराकर एक हिंदू पीढ़ी को खत्म कर देना है।
जमात के और भी हैं लक्ष्य ?
देवभूमि उत्तराखंड में मुस्लिम समुदाय को जमात के जरिए ये निर्देश है कि हर साल प्रत्येक बालिग मुस्लिम व्यक्ति 5000 रुपये जकात, प्रत्येक व्यक्ति को जमात, हर घर से एक मौलवी, प्रत्येक लड़की को इस्लामिक शिक्षा, दावत ए इस्लाम (अपने घर लाकर रोजाना दो हिंदुओ को दावत, दावत में मांस परोसना), मुस्लिम युवकों को गैरों से निकाह, हर जुम्मे की नमाज और नमाज के दौरान हाजिरी रजिस्टर भरने जैसे लक्ष्य दिए गए हैं।
उत्तराखंड है यूपी सूबे के अधीन
उत्तराखंड अभी यूपी सूबे के साथ है, जिसका मुख्यालय लखनऊ में है। यूपी सूबे में नौ हल्के हैं, मेरठ हल्के में सहारनपुर, देहरादून, हरिद्वार, रुड़की जिला है। हल्के के नीचे मरकज थिया तहसील है। हर तहसील की मस्जिदों में जो हाजिरी रजिस्टर रखे हुए हैं। उनकी रिपोर्ट कंप्यूटर डाटा के जरिए सूबे तक जाती है। इन्हीं सूचनाओं के आधार पर अगले लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं। गौर करने वाली बात है कि आखिर किस जमीनी स्तर पर योजनाबद्ध तरीके से उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी के पांव पसारने का षड्यंत्र चल रहा है।
पुरोला हल्द्वानी विकासनगर की घटनाएं
पुरेला में लव जिहाद की घटना का हिंदू संगठनों ने विरोध किया। इसके बाद देहरादून में मुस्लिम संगठनों ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की उससे मालूम होता है कि मस्जिदों से जमात की क्या भूमिका है ? इसी तरह से विकासनगर क्षेत्र में लव जिहाद, कांवड़ पर पथराव की घटना के दौरान जिस तरह से इस्लामिक नारे लगाए गए उससे पुलिस प्रशासन की नींद भी टूटी है। हल्द्वानी बनभूलपुरा अतिक्रमण मामले में जिस तरह से मुस्लिम संगठन सक्रीय हुए उससे ये संकेत मिलता है कि उत्तराखंड में मुस्लिम सेवा संगठन, भीम आर्मी और अन्य संगठनों के पीछे जमात की एक बड़ी भूमिका है।
गजवा ए हिंद की गतिविधियों की पुष्टि
पिछले साल दस अक्टूबर को यूपी और उत्तराखंड एटीएस ने गजवा ए हिंद से जुड़े सात आतंकियों को गिरफ्तार किया था। जिनमें से दो उत्तराखंड से पकड़े गए थे। एटीएस ने सहारनपुर से लुकमान, आलिम, हरिद्वार से अली नूर, मुद्दसिर, देवबंद से कामिल, शामली से शहजाद और झारखंड से नवाजिश को पकड़ कर पूछताछ की थी और उत्तराखंड पुलिस प्रशासन से सूचनाएं साझा की थी, जिसमें ये बात सामने आई थी कि इन आरोपियों ने उत्तराखंड में गजवा ए हिंद के लिए युवाओं को बरगलाने का काम किया था।
क्या कहते है उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार
एटीएस ने जब गजवा ए हिंद से जुड़े दो आतंकियों को उत्तराखंड से गिरफ्तार किया था। उनसे महत्वपूर्ण सूचनाएं मिली थी। जिसपर हमारी टीम काम कर रही है, संदिग्ध लोगों पर नजर रखी जा रही हैं। हमने बाहरी लोगों के सत्यापन का अभियान शुरू किया हुआ है। इसके सार्थक परिणाम भी सामने आए हैं।
कया कहती है धामी सरकार
उत्तराखंड में बीजेपी की धामी सरकार है। समान नागरिक संहिता और सशक्त भू कानून को लेकर वह सख्त हैं। अतिक्रमण हटाओ अभियान में हजारों एकड़ जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त करवाया गया है।
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