भगवान शिव का निवास स्थान माने जाने वाले कैलास पर्वत के दर्शन करने के लिए तीर्थयात्रियों को अब तिब्बत जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। उत्तराखंड की व्यास घाटी से ही पावन कैलास पर्वत के दर्शन हो सकते हैं। बता दें कि कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग पर पुराने लीपू दर्रे की एक चोटी से कैलास पर्वत दिखाई देता है और एक अन्य स्थान आदि कैलास के पास की लिपियाधूरा चोटी से भी कैलास पर्वत के दर्शन हो रहे हैं।
हाल ही में शिवभक्तों के लिए एक शुभ समाचार आया है। भगवान शिव का निवास स्थान माने जाने वाले कैलास पर्वत के दर्शन करने के लिए तीर्थयात्रियों को अब तिब्बत जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। उत्तराखंड की व्यास घाटी से ही पावन कैलास पर्वत के दर्शन हो सकते हैं। बता दें कि कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग पर पुराने लीपू दर्रे की एक चोटी से कैलास पर्वत दिखाई देता है और एक अन्य स्थान आदि कैलास के पास की लिपियाधूरा चोटी से भी कैलास पर्वत के दर्शन हो रहे हैं।
उत्तराखंड पर्यटन विभाग ने इन स्थानों का सर्वेक्षण कर शासन को अपनी रपट दे दी है। जानकारी के अनुसार व्यास घाटी में रहने वाली ‘रं’ जनजाति ने बहुत साल पहले ही ऐसे मार्ग खोज लिए थे, जहां भारत की सीमा से कैलास के दर्शन हो रहे थे। ‘रं’ जनजाति संस्था के अध्यक्ष दीपक रौंकली बताते हैं, ‘‘हमारे बुजुर्ग पहले से ये मार्ग जानते थे, क्योंकि वे तिब्बत के व्यापारियों के साथ कारोबार करते थे।’’ उन्होंने यह भी बताया कि लीपू दर्रे के अलावा एक और भारतीय सीमा बिन्दु से कैलास के दर्शन होते हैं।
हमने 2015 में सरकार को इस बात की जानकारी दे दी थी कि यहां से कैलास दर्शन करवाए जा सकते हैं, किंतु उस समय से अब तक सेना की पाबंदियों की वजह से ऐसा संभव नहीं हो रहा था। उन्होंने यह भी बताया कि आदि कैलास पर्वत के पास से करीब बीस किमी की ट्रैकिंग के बाद लिपियाधुरा चोटी से भी कैलास के दर्शन होते हैं। इस चोटी से भी कैलास की दूरी करीब 25 किमी होगी, लेकिन यहां जाना इसलिए आसान नहीं है, क्योंकि आईटीबीपी और सेना इसकी इजाजत नहीं देती। ‘रं’ जनजाति संस्था के पूर्व अध्यक्ष कृष्ण गर्ब्याल बताते हैं कि व्यास घाटी बाबा भोले की घाटी है, यह देवभूमि है। अब यहां सड़क बन गई है। इसलिए यहां तीर्थाटन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, कैलास दर्शन के लिए दोनों रास्ते खोलने चाहिए।
कैलास मानसरोवर पैदल यात्रा में भी पहले नाभिढांग से ॐ पर्वत के दर्शन होते हैं। यहां से नौ किमी की चढ़ाई करके लीपू दर्रे को पार करके ही तिब्बत का तकलाकोट कस्बा आता है, जहां से वाहनों में बैठकर शेष यात्रा तय होती रही है। भारत सरकार ने लीपू दर्रे तक सड़क तैयार कर ली है। यहीं से तीन किमी पैदल चढ़ाई करके दाई तरफ एक चोटी से शिवभक्त अपने आराध्य देव शिव के निवास के दर्शन कर सकेंगे।
पहले यहां तक पहुंचना आसान नहीं था। अब स्थानीय लोगों की मदद से सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने करीब तीन किमी के इस कठिन पैदल मार्ग को तैयार कर लिया है। इसके माध्यम से चोटी तक पहुंच कर श्रद्धालु तिब्बत स्थित कैलास पर्वत के दर्शन लगभग 25 किलोमीटर दूर से कर सकते हैं। हालांकि इस स्थान से पवित्र मानसरोवर के दर्शन नहीं हो रहे हैं, लेकिन शिव निवास कैलास के दर्शन आसानी से हो रहे हैं। फिलहाल आईटीबीपी अपनी गश्त के लिए इस मार्ग का इस्तेमाल कर रही है।
कोविड के बाद से चीन ने कैलास मानसरोवर यात्रा पर पाबंदी लगाई हुई है। हालांकि नेपाल के रास्ते यह यात्रा चल रही है, लेकिन यह महंगी पड़ती है। इस रास्ते से यात्रा करने वाले प्रत्येक श्रद्धालु को लगभग 2,00,000 रु. खर्च करने पड़ते हैं। इधर भारत सरकार और उत्तराखंड सरकार ने व्यास घाटी में ॐ पर्वत और आदि कैलास यात्रा को जारी रखा है। अब कैलास दर्शन यात्रा भी शुरू होने जा रही है। इसके लिए रक्षा मंत्रालय की हरी झंडी मिलनी अभी बाकी है। आदि कैलास और ॐ पर्वत यात्रा अब जीपों से हो रही है। तिब्बत सीमा पर लीपू दर्रे तक जीप जा रही है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के अनुसार व्यास घाटी के गुंजी ग्राम को पीएम वाईब्रेंट योजना में शामिल किया गया है। यहां से आदि कैलास ॐ पर्वत, पार्वती सरोवर, व्यास गुफा, कुंती के गांव कुटी, काली मंदिर के दर्शन के लिए तीर्थाटन शुरू हो चुका है। व्यास घाटी के ‘रं’ समुदाय ने अपने सीमा क्षेत्र से कैलास पर्वत दर्शन के मार्ग खोज लिए हैं। कैलास दर्शन स्थल के लिए पर्यटन विभाग ने अवलोकन कर लिया है। उन्होंने यह भी बताया कि इस दर्शन स्थल को तीर्थयात्रियों के लिए खोले जाने के लिए अभी रक्षा मंत्रालय की अनुमति की जरूरत है, क्योंकि यह सीमांत क्षेत्र है। हमारा सौभाग्य है कि रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी इस पुनीत कार्य को पूरा करवाने में सहयोग कर रहे हैं। इस बारे में पीएमओ से भी निवेदन किया गया है। हमें पूरी उम्मीद है कि शिवभक्तों को शिव कृपा से कैलास दर्शन की अनुमति अवश्य मिलेगी।
कैलास मानसरोवर पैदल यात्रा में भी पहले नाभिढांग से ॐ पर्वत के दर्शन होते हैं। यहां से नौ किमी की चढ़ाई करके लीपू दर्रे को पार करके ही तिब्बत का तकलाकोट कस्बा आता है, जहां से वाहनों में बैठकर शेष यात्रा तय होती रही है। भारत सरकार ने लीपू दर्रे तक सड़क तैयार कर ली है। यहीं से तीन किमी पैदल चढ़ाई करके दाई तरफ एक चोटी से शिवभक्त अपने आराध्य देव शिव के निवास के दर्शन कर सकेंगे।
भारतीय सीमा के जिस स्थान से कैलास पर्वत के दर्शन हो रहे हैं उस स्थान की ऊंचाई करीब 18,000 फीट है। यहां दिन में तेज हवाएं चलती हैं, जहां सीधे खड़े रहना भी मुश्किल होता है। इसलिए यहां सुबह पांच बजे से आठ बजे तक ही कैलास पर्वत के दर्शन हो सकेंगे। कैलास मानसरोवर पैदल यात्री भी लीपू दर्रे को तेज हवाओं के कारण सुबह चार से सात बजे तक पार करते रहे हैं।
बहरहाल, जो लोग आर्थिक कारणों से तिब्बत जाकर कैलास पर्वत के दर्शन नहीं कर पाते हैं, वे यहां से उसके दर्शन कर अपनी मनोकामनाएं पूरी कर सकते हैं।
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