पिछले कुछ वर्षों में सैकड़ों युवा उनके इस छोटे से संस्थान में काम करके दिल्ली, गुरुग्राम जैसे स्थानों पर बड़ी कंपनियों में नौकरियां कर रहे हैं। राहुल के अनुसार, उन्होंने इस इलाके को टेलीकॉलिंग से परिचित कराया है और आज कितने ही गांव के लड़के-लड़कियां उनके यहां काम कर रहे हैं। बहुत तो प्रशिक्षण लेकर बड़ी कंपनियों में नौकरियां कर रहे हैं। उन्हें देखकर इलाके के दूसरे लोगों में भी कॉल सेंटर खोलने का उत्साह जागा है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया में रहने वाले राहुल मणि कुछ साल पहले तक नौकरी की तलाश कर रहे थे, लेकिन आज वह लगभग 30 लोगों को नौकरी दे रहे हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में पहला कॉल सेंटर स्थापित करने वाले राहुल और उनकी टीम के पास अमेजन से लेकर जियो तक के अकाउंट हैं। पिछले कुछ वर्षों में सैकड़ों युवा उनके इस छोटे से संस्थान में काम करके दिल्ली, गुरुग्राम जैसे स्थानों पर बड़ी कंपनियों में नौकरियां कर रहे हैं। राहुल के अनुसार, उन्होंने इस इलाके को टेलीकॉलिंग से परिचित कराया है और आज कितने ही गांव के लड़के-लड़कियां उनके यहां काम कर रहे हैं। बहुत तो प्रशिक्षण लेकर बड़ी कंपनियों में नौकरियां कर रहे हैं। उन्हें देखकर इलाके के दूसरे लोगों में भी कॉल सेंटर खोलने का उत्साह जागा है।
दरअसल, देश का युवा अब नौकरी करने की बजाए नौकरी देने वाला बनने की कोशिशों में लगा हुआ है। राहुल मणि इसके एक उदाहरण मात्र हैं। देश के 37 करोड़ युवाओं में से बड़ी संख्या में युवा अपना काम कर अपनी किस्मत के साथ-साथ देश की किस्मत भी बेहतर करने की राह पर चल रहे हैं। अगर कहा जाए कि स्वावलंबन की ओर एक बड़ी मुहिम चल पड़ी है तो गलत नहीं होगा।
स्वदेशी जागरण मंच के सह-संगठक सतीश कुमार के मुताबिक, भारत सांस्कृतिक तौर पर उद्यमियों का देश रहा है। 15वीं शताब्दी से पहले भारत पूरी दुनिया के कुल उत्पादन में 32 प्रतिशत हिस्सा रखता था। लेकिन अंग्रेजों की लूट ने भारत को न सिर्फ आर्थिक तौर पर बहुत नुकसान पहुंचाया, बल्कि भारत की उद्यमिता को भी छिन्न-भिन्न करने का प्रयास किया गया। लेकिन अब यह स्थिति बदलने लगी है।
भारत का युवा समझने लगा है कि उसे नौकरी करनी नहीं है, बल्कि नौकरी देनी है। इसको ऐसे समझा जा सकता है कि एक टिक्की बनाने वाला लड़का बिट्टू अब बिट्टू टिक्की वाला यानी बीटीडब्लू ब्रांड का मालिक है और उसकी सालाना आय 700 करोड़ रुपये से अधिक है। देश में रोजाना 580 कंपनियां पंजीकृत हो रही हैं। 75 से अधिक स्टार्टअप यूनिकॉर्न में तब्दील हो गए हैं। देश में 90,000 से अधिक स्टार्टअप हो गए हैं। स्वदेशी देशी जागरण मंच ने भी स्वावलंबी अभियान शुरू किया है। इसके तहत देश के हर जिले में स्वरोजगार केंद्र खोले जाने हैं। अभी तक लगभग 450 जिलों में ये केंद्र खोले जा चुके हैं।
झारखंड में भी स्वावलंबी अभियान ने कीर्तिमान बनाया है। राज्य में चीनी उत्पादों के विरुद्ध वनवासी समुदाय से लेकर ग्रामीणों तक ने कमर कस ली है। ग्राम विकास नाम के एक संगठन ने पूरे राज्य के लगभग 512 गांवों में 16,000 महिलाओं को प्रशिक्षित किया है और इनके 1400 स्वयं सहायता समूहों के जरिए अब ये महिलाएं राखियां बना रही हैं, जो उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बेची जाती हैं। ग्राम विकास संगठन के प्रमुख बिंदेश्वर साहु ने बताया कि भारतीय त्योहारों पर चीन में बने उत्पादों से बाजार अटे पड़े रहते थे। राखी से लेकर भगवान की मूर्तियां और सजावट का सारा सामान चीन से आ रहा था, इसको लेकर हमारा संगठन काफी लंबे समय से सोच रहा था। फिर हमने कुछ साल पहले झारखंड में वनवासी इलाकों में वहां के स्रोतों के बारे में शोध किया और स्थानीय लोगों को छोटे-छोटे प्रशिक्षण देना शुरू किया था।
भारत के पास युवाओं की एक बड़ी आबादी है, जो काम कर रही है। लेकिन इतनी बड़ी आबादी में सभी को नौकरी देना तो किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं है। ऐसे में बड़ी उत्पादन इकाई से लेकर कुटीर उद्योग तक में लोगों को लगाना बहुत ही जरूरी है। उन्होंने कहा कि चीन ने उत्पादन के क्षेत्र में बहुत काम किया है। वैश्विक उत्पादन में चीन की हिस्सेदारी 28 प्रतिशत से अधिक है। भारत को भी अपनी जनसांख्यिकीय क्षमता का लाभ उठाना चाहिए। ऐसा किया भी जा रहा है। देश में बड़ी संख्या में मौजूद युवा आबादी को कौशल प्रशिक्षण देना होगा ताकि वे दुनिया में कहीं भी काम कर सकें और उनमें अपने लिए रोजगार पैदा करने का उत्साह जाग सके। – प्रो. भगवती प्रकाश, अर्थशास्त्री
शुरुआत में छोटे-छोटे उत्पाद बनाने और उनकी मार्केटिंग पर काम किया। धीरे-धीरे काम बढ़ता गया। आज झारखंड के अलग-अलग इलाकों में बन रहे विभिन्न वन उत्पाद शहरी क्षेत्रों में बड़े चाव से इस्तेमाल किए जा रहे हैं। वहीं, पशुपालन में भी वनवासियों को नई तकनीक और उत्पादों में ‘वैल्यू एडिशन’ करने का प्रशिक्षण दे रहे हैं। साहू के मुताबिक, जब तक क्षेत्रीय उत्पादों से संबंधित काम या उद्यम शुरू नहीं होंगे, हमारी आर्थिक बढ़ोतरी नहीं होगी। 5 खरब डालर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए देश की बड़ी आबादी को अपनी आमदनी में वृद्धि करनी होगी। बस यही कोशिश हम कर रहे हैं, जो काफी सफल हो रही है। राजस्थान के सवाई माधोपुर के रवि कुमार राणा की भी यही कहानी है।
राजस्थानी लोक गायक रवि ने अपना फ्यूजन बैंड बनाया है। कभी दूसरों के यहां काम मांगने वाले रवि ने 90 लोगों को रोजगार दिया है। रवि कहते हैं, जब तक दूसरों के लिए काम करता था, बहुत परेशानी होती थी। शुरुआत में इस बारे में सोचना भी बहुत मुश्किल था कि मैं अपना बैंड भी बना सकता हूं। मेरे साथ कुछ अच्छे लोग भी थे, जो लगातार नई-नई धुनों पर काम करते थे। एक दिन हमें एक कार्यक्रम के दौरान अर्चना दीदी मिलीं। उन्होंने जब खुद का काम करने के लिए कहा था, तो मैं पहली बार इस ओर सोचने लगा। धीरे-धीरे मैंने अपने साथियों से बात की, उन्हें भी ये विचार काफी अच्छा लगा। फिर हमने अपनी तैयार की गई धुनों को दोबारा मेहनत करके और बेहतर किया। फिर हम अर्चना दीदी के पास गए और हमें अपना खुद का पहला प्रोग्राम मिला।
शुरुआत में उन्होंने कुछ काम भी दिलाए थे। इसके बाद हमारा काम चल निकला। अब हम राजस्थान सहित दूसरे राज्यों में भी कार्यक्रम करते हैं। रवि कुमार राणा के अलावा, अनेक लोगों को अपना काम शुरू करने की प्रेरणा देने वाली अर्चना मीणा के मुताबिक, रवि कुमार राणा जैसे लोग अपने पैरों पर खड़ें हों, यह देश की जरूरत है। देश में बेरोजगारी की दर सात प्रतिशत से अधिक है। लेकिन नौकरियां बहुत सीमित हैं। ऐसे में अगर युवाओं को अपना रोजगार करने के लिए प्रेरित नहीं किया जाएगा, तो वे अपराध या दूसरे गलत रास्तों पर चलने लग जाएंगे। इसलिए भारत की तरक्की के लिए वह हमेशा लोगों को अपने रोजगार के लिए प्रेरित करती हैं।
अर्चना मीणा ने जो कहा उसे जाने-माने अर्थशास्त्री प्रो. भगवती प्रकाश समझाते हैं कि, भारत के पास युवाओं की एक बड़ी आबादी है, जो काम कर रही है। लेकिन इतनी बड़ी आबादी में सभी को नौकरी देना तो किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं है। ऐसे में बड़ी उत्पादन इकाई से लेकर कुटीर उद्योग तक में लोगों को लगाना बहुत ही जरूरी है। उन्होंने कहा कि चीन ने उत्पादन के क्षेत्र में बहुत काम किया है। वैश्विक उत्पादन में चीन की हिस्सेदारी 28 प्रतिशत से अधिक है। भारत को भी अपनी जनसांख्यिकीय क्षमता का लाभ उठाना चाहिए। ऐसा किया भी जा रहा है। देश में बड़ी संख्या में मौजूद युवा आबादी को कौशल प्रशिक्षण देना होगा ताकि वे दुनिया में कहीं भी काम कर सकें और उनमें अपने लिए रोजगार पैदा करने का उत्साह जाग सके।
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