धारचूला। कैलाश पर्वत भारत की सीमा से भी दिखता है, ये बात इन दिनों चर्चा में है, लेकिन व्यास घाटी के स्थानीय रं जनजाति समुदाय का कहना है कि इस बात की जानकारी उन्हें 2015 से है और कुछ पुराने लोग तो पहले से इस बारे में जानते थे, किंतु सुरक्षा कारणों से ये बात चर्चा में नहीं आने दी जा रही थी।
उल्लेखनीय है कि व्यास घाटी से होकर ही पैदल कैलाश मानसरोवर यात्रा हुआ करती है, जो कोविड के बाद से बंद है। उत्तराखंड के पर्यटन विभाग कुमाऊं मंडल विकास निगम के द्वारा संचालित इस यात्रा के साथ-साथ आदि कैलाश यानी ज्योलिकोंग पर्वत दर्शन, पार्वती सरोवर, कुंती का कुटी ग्राम, ब्रह्म निवास माने जाते ॐ पर्वत, काली नदी के उद्गम स्थल काली मंदिर और ठीक उसके सामने व्यास गुफा के दर्शन कराने के लिए केएमवीएन द्वारा आदि कैलाश यात्रा का आयोजन किया जाता है। व्यास घाटी इसलिए भी बोला जाता है कि यहां काली मंदिर के पास ऊंचे पहाड़ पर व्यास ऋषि की गुफा है। ये क्षेत्र भोजपत्र वृक्षों वाला क्षेत्र है धार्मिक मान्यता है कि इन्हीं भोजपत्रों का उपयोग कर व्यास ऋषि द्वारा वेदों की रचना की। इस व्यास गुफा से ॐ पर्वत के भी दर्शन होते हैं।
पिछले 15 साल से व्यास घाटी में सड़क बन रही थी, मोदी सरकार ने आते ही इस काम में तेजी दिखाई, जो अब लिपुपास तक बन गई है। अभी भी इसमें जीप ही चल सकती है और बीआरओ इसकी सुगमता बनाने के लिए रात-दिन काम कर रहा है। इसी बीच पुराने लिपुपास दर्रे की चोटी से कैलाश के दर्शन होने की खबर सुर्खियां बन गई, यहां पर्यटन विभाग, केएमवीएन और सेना के दल ने जाकर स्वयं कैलाश के दर्शन किए हैं। जैसा कि पूर्व में भी कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान होता था कि करीब नौ किमी लिपुपास दर्रे को सुबह तीन से छह बजे तक पार इसलिए करना होता था क्योंकि इसके बाद 18 हजार फुट की ऊंचाई पर चलने वाली तेज हवा आपको वहां रुकने नहीं देती। इसलिए नाभिढाग पड़ाव से यात्री दल भोर होने से पहले ही रवाना कर दिया जाता रहा है। वर्तमान में जिस भारतीय सीमा से कैलाश के दर्शन हो रहे हैं वो भी लीपू पास दर्रे की बनी सड़क से करीब दो किमी ऊंचाई पर है। पर्यटन विभाग के दल को भी भोर में जाकर कैलाश के दर्शन तो हुए, किंतु तेज हवाओं ने उन्हें वहां ज्यादा देर रुकने की इजाजत नहीं दी।
रं जनजाति ने बताया एक और दर्शन स्थल
व्यास घाटी में रहने वाले सीमावर्ती रं जनजाति संस्था के अध्यक्ष दीपक रौंकली ने बताया कि उनके बुजुर्ग पहले से ये मार्ग जानते थे क्योंकि वो तिब्बत के व्यापारियों के साथ कारोबार करते थे। उन्होंने बताया कि लीपू पास के दर्रे के अलावा एक और भारतीय सीमा से कैलाश के दर्शन होते हैं। उन्होंने कहा कि हमने 2015 में सरकार को इस बात की जानकारी दे दी थी कि यहां से कैलाश दर्शन करवाए जा सकते हैं, किंतु उस समय से अब तक सेना की पाबंदियों की वजह से ऐसा संभव नहीं हो रहा था।
दीपक रौंकली ने कहा कि आदि कैलाश पर्वत के पास से करीब बीस किमी की ट्रैकिंग के बाद लिपियाधुरा चोटी से भी कैलाश के दर्शन होते हैं। इस चोटी से भी कैलाश की दूरी करीब 50 किमी होगी, लेकिन यहां भी जाना इसलिए आसान नहीं क्योंकि आईटीबीपी और सेना इसकी इजाजत नहीं देती, जबकि सेना और स्थानीय लोगों को इस बारे में जानकारी नहीं है।
रं संस्था के पूर्व अध्यक्ष कृष्ण गर्ब्याल बताते हैं कि व्यास घाटी बाबा भोले की घाटी है, ये देवभूमि है अब यहां सड़क बन गई है इसलिए यहां तीर्थाटन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। कैलाश दर्शन के लिए दोनों रास्ते खोलने चाहिए।
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