भारत को दासता की बेड़ियों से मुक्त कराने और स्वराज का उद्घोष करने वाले जनजातीय नायकों को यह देश कभी नहीं भूलेगा। देश के इन नायकों को नमन करने हेतु हूल दूवस मनाया जाता है। हूल दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ट्वीट किया, उसका अनुवाद न तो ट्विटर के पास था और न ही गूगल के पास। कुछ लोगों को लगा कि शायद पीएम का ट्विटर हैंडल हैक हो गया है। लेकिन ऐसा नहीं था। प्रधानमंत्री ने इस ट्वीट के जरिये देश का जुड़ाव और अनूठापन दर्शाया। उन्होंने इस ट्वीट के जरिये जनजातीय नायकों को नमन किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो ट्वीट किया था उस पर बहुत सारे कमेंट आने लगे। लिपि लोगों को समझ नहीं आ रही थी। लोगों ने गूगल ट्रांसलेशन करके भी देखा लेकिन वहां से भी हल नहीं मिला। दरअसल 30 जून को हूल दिवस था और प्रधानमंत्री ने जनजातीय नायकों के सम्मान में संथाली भाषा में ट्वीट किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो ट्वीट किया था, उसका अर्थ है –
#हूल_ महोत्सव पर जनजातीय समाज के वीरों को कोटिश: नमन। इस विशेष अवसर पर सिदो, कान्हु,चांद, भैरो, फूलो, झानो के साथ अनेक क्रांतिकारियों के साहस व बलिदान को अनुभव कराता है। उनके संघर्ष का इतिहास देशवासियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है।
प्रधानमंत्री का ये ट्वीट वायरल हो गया। इससे कुछ देर पहले प्रधानमंत्री ने हिंदी में भी ट्वीट किया था। उन्होंने लिखा था- ‘हूल दिवस’ पर हमारे आदिवासी समाज के वीर-वीरांगनाओं को शत-शत नमन। यह विशेष अवसर हमें अन्याय के खिलाफ सिद्धो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो समेत कई अन्य पराक्रमियों के शौर्य और साहस का स्मरण कराता है। उनके संघर्ष की गाथा देशवासियों को सदैव प्रेरित करती रहेगी।
संथाली भाषा में किए गए ट्वीट को लेकर कई कमेंट आए। यूजर्स ने उन्हें संथाली भाषा में ट्वीट करने के लिए धन्यवाद दिया। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनजातीय समुदाय के योगदान को लेकर अक्सर चर्चा करते हैं। भारत सरकार ने 15 नवंबर 2021 को जनजातीय गौरव दिवस मनाने का भी निर्णय लिया था। हर साल 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाता है। 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती भी मनाई जाती है।
शनिवार को मध्य प्रदेश के शहडोल से सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन अभियान की भी शुरुआत की। इससे ज्यादातर प्रभावित लोग जनजाति समाज से ही हैं। दुनिया भर में सिकिल सेल एनीमिया से पीड़ित लोगों में आधे भारत से हैं।
हूल दिवस का विशेष महत्व
झारखंड में हूल (क्रांति) दिवस का विशेष महत्व है। 30 जून1855 को भोगनाडीह में हजारों संथालों ने अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति की मशाल जलाई थी। इस संथाल क्रांति का नेतृत्व चार भाइयों सिद्धो, कान्हू, चांद और भैरव ने किया था। हजारों लोगों ने बलिदान दिया था।
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