उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। युवती फरहाना (22) की इस बात को लेकर हत्या कर दी गयी कि उसने मुस्लिम समुदाय की फकीर जाति के व्यक्ति से शादी कर ली थी। फरहाना की दिनदहाड़े हत्या की गयी और उसके सिर में गोली मारी गयी।
फरहाना ने दो वर्ष पहले गाँव के ही फकीर बिरादरी के शाहिद से कोर्ट मैरिज की थी। चूंकि वह पठान थी, तो उसके अब्बू एवं भाई इस शादी से खुश नहीं थे। उसके अब्बू और वह दोनों ही मुजफ्फरनगर में रह रहे थे। बीते 7 जून को फरहाना शौहर के साथ गाँव लौटकर आई थी। मगर यह बात उसके घरवालों को रास नहीं आई और गाँव में तनाव का माहौल बनने लगा था। फरहाना के घरवालों की ओर से यह कहा जा रहा था कि वह लोग गाँव छोड़कर चले जाएं, नहीं तो परिणाम बुरा होगा। बुधवार को जब फरहाना शौहर और अपनी ननद के साथ ब्यूटीपार्लर से लौट रही थी, तो उस पर गोली चला दी गयी। फरहाना के देवर ने कहा कि फरहाना के घरवालों ने पहले ही धमकी दे दी थी कि अगर वह शादी के बाद वापस लौटी तो वह उन्हें मार डालेंगे। और बीस दिन पहले भी यही धमकी दी गयी थी।
बुधवार को झूठी शान के लिए हुए इस हत्या को लेकर पुलिस ने आश्वस्त किया था कि आरोपियों को बख्शा नहीं जाएगा, और फरहाना के ससुराल वालों की ओर से उसके भाई फरमान, नोमान, शादाब एवं भाभी सलमा, पत्नी नोमान, सानिया बीवी शादाब को नामजद किया गया था। पुलिस ने पांच आरोपियों को गिरफ्तार भी किया है।
यह घटना तब हुई जब भारत क्या पूरे विश्व में मुस्लिम समुदाय बकरीद मनाने की तैयारी में था। जिसके विषय में यह कहा जाता है कि यह कुर्बानी का मौक़ा होता है और इसमें ऊंच-नीच का भेद मिट जाता है, जिस जानवर को कुर्बान किया जाता है, उसका मांस गरीबों में बांटा जाता है।
मगर जब ऐसी घटनाएं होती हैं कि पठान जाति की फरहाना की हत्या इसलिए उसके घरवालों ने कर दी कि उसने फकीर जाति के शाहिद से शादी कर ली थी, तो फिर उस चुप्पी पर हैरानी होती है, जो चुप्पी वह लोग साध जाते हैं, जो हर बात पर समानता की बात करते हैं। बल्कि फरहाना का मामला तो मीडिया के विमर्श से ही गायब है। चूंकि मामला उत्तर प्रदेश का है, तो मीडिया या शोर मचाने वाले यह तो कह सकते हैं कि महिला पर दिनदहाड़े गोली चली, मगर वही लॉबी गोली चलाने वाले नामों पर चुप हो जाएगी!
वह इस बात पर प्रश्न नहीं करेगी कि आखिर क्यों पठान फरहाना का यह अधिकार नहीं है कि वह फकीर से शादी कर ले? क्यों इस शादी की बात करने पर उसे अपना घर, गाँव छोड़कर जाना पड़ा और क्यों जब वह वापस आई तो दो साल बाद भी वह उसी नफरत का शिकार हो गयी? आखिर ऐसा क्यों होता है? क्यों विमर्श करने वालों का ध्यान यहाँ तक नहीं आ पाता है, क्यों वह यह नहीं कह पाते कि फरहाना के साथ न्याय होना चाहिए और वह झूठी शान के लिए हत्या का शिकार हो गयी है? फरहाना जैसी महिलाओं के लिए आजादी का विमर्श सामने नहीं आ पाता है। और ऐसा नहीं है कि फरहाना पहली ऐसी महिला है जिसके साथ फकीर जाति के व्यक्ति के निकाह को लेकर ऐसा अत्याचार हुआ है।
इससे पहले नवम्बर में भी आरिफ और महजबीं के साथ ऐसी ही घटना हो चुकी थी। बागपत के असारा में रहने वाली महजबीं सैयद फकीर जाति के आरिफ से शादी करना चाहती थी। उसके परिवार वालों को यह सम्बन्ध मंजूर नहीं था। उन दोनों की शादी भी कहीं और करा दी गयी थी, मगर इन दोनों ने मिलना नहीं छोड़ा था और फिर जब दोनों एक साथ रहने के लिए घर छोड़कर भाग गए तो महजबीं के भाइयों ने उन दोनों का क़त्ल कर दिया था।
महजबीं और फरहाना जैसी लड़कियों की हर पीड़ा विमर्श में अनदेखी ही रह जाती है, वह सामने आ ही नहीं पाती है। उनके हत्यारों को सजा मिलती भी है या नहीं, नहीं पता, मगर विमर्श में उनकी हत्या लगभग रोज होती रहती है।
क्योंकि उनकी हत्याओं पर इस कारण मौन सध जाता है क्योंकि उन कारणों पर बोलने से एजेंडा नहीं चल पाएगा। फरहाना और मजहबी जैसी तमाम महिलाओं की असमय हत्या इस बात का भी विमर्श नहीं खड़ा कर पाती है कि क्यों ऊंची जाति की मुस्लिम महिलाओं को फकीर जाति के मुस्लिम युवक से प्यार करने का अधिकार नहीं है?
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