हरिद्वार : सनातन नगरी हरिद्वार की अपनी मार्यदाएं तय हैं जिन्हें 1916 में ब्रिटिश शासन काल में ही तय कर दिया गया था, जिसे महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, हरिद्वार नगर पालिका का बायलॉज मदन मोहन मालवीय और ब्रिटिश सरकार के बीच हुए करार पर ही बनाया गया जो आज भी प्रासंगिक है।
हरिद्वार हिंदू सनातन नगरी है, बनारस और प्रयागराज की तरह यहां के पवित्र गंगा घाटों की सांस्कृतिक धार्मिक मर्यादाएं हैं जिस पर एक बार फिर से चर्चा शुरू हो गई है और इसके पीछे बड़ी वजह हरिद्वार नगर पालिका का नगर निगम में तब्दील हो जाना है।
हरिद्वार साधु संत समाज और आदिगुरुशंकराचार्य द्वारा स्थापित हिंदू धर्म रक्षक आखाड़ों का प्रवास स्थल है, यहीं से गंगा स्नान कर सनातनी लोग पवित्र चारधाम यात्रा का शुभारंभ करते है, कुंभ, अर्ध कुंभ, कांवड़, पूर्णिमा अमावस संक्रांति यहां गंगा के प्रति आस्था का केंद्र रहा है, सबसे अहम आस्था हिंदुओं की इस बात को लेकर रही है कि मृत्यु उपरांत यहीं अंतिम संस्कार होता है और उसे मोक्ष प्राप्त होता है, लेकिन पिछले कुछ सालों से देखा जा रहा है कि हिंदू तीर्थ नगरी हरिद्वार को गैर हिंदू संप्रदाय निशाने पर लिए हुए हैं।
ऐसा जानकारी में आया है कि हरिद्वार यूनियन नगर पालिका 25.5.1868 में बनीं थी। 1872 में इसकी जनगणना 21555 वर्ष 1881 में 29125 साल 1901 में 25557 थी। स्वाभाविक है ब्रिटिश सरकार ने नगर पालिका के गठन के साथ ही यहां का बायलॉज 1868 में ही बना दिया होगा, पुराने जानकर बताते हैं कि उस समय जो बायलाज या नियमावली बनाई गई उसको लेकर कई बार विवाद भी हुए, जिसको लेकर अंततः महामना मदन मोहन मालवीय को बनारस से हरिद्वार आना पड़ा और कई दिनों तक अनशन करने के बाद उनका और ब्रिटिश सरकार के बीच समझौता हुआ जिसमें गंगा और तीर्थ नगरी हरिद्वार को लेकर मार्यदाएं तय की गईं जिन्हें फिर हरिद्वार नगर पालिका की नियमावली में शामिल किया हुआ और ये नियमवाली या बायलॉज आज भी प्रभावी है, किंतु सीमा क्षेत्र का विस्तार हो जाने की वजह से कहीं-कहीं अप्रभावी भी है।
हर की पौड़ी की मर्यादा से जुड़ी है हरिद्वार की आस्था और मर्यादा
जब हरिद्वार एक कस्बा या शहर का रूप ले रहा था तब हर की पौड़ी क्षेत्र, जंबू घाट, कुशावर्त घाट और कनखल का दक्ष और सती घाट ही बने थे। गंगा की धारा के दोनों तरफ समभूमि खंड क्षेत्र कहलाता था, इसके अलावा कोई घाट नहीं था ,अलबत्ता जो आश्रम या आखड़े थे उनके अपने निजी घाट जरूर रहे। इन सभी घाटों की मर्यादाएं तय की गईं थीं जोकि पालिका बायलॉज के पृष्ठ संख्या 270, 271 में दर्ज है।
हरिद्वार के इन पावन घाटों की मर्यादा नियमावली कहती है कि यहां जूता चप्पल चमड़ा रबड़ के टायर आदि ले जाने की मनाही है।अस्थियों के विसर्जन के लिए कनखल में सती घाट का स्थान तय किया गया।
इन घाटों पर पंडित पंडा समाज के स्थान भी निर्धारित है और नाई, भिखारी, कारोबारी के भी स्थान तय हैं, इन घाटों पर कपड़े धोने की साबुन लगाने की भी मनाही है, ऐसे कई मर्यादाएं नहर पालिका के प्रबंधन में दर्ज है।
गैर हिंदू का प्रवेश वर्जित
हरिद्वार ऋषिकेश सनातन तीर्थ नगरी को लेकर अक्सर ये बात कही जाती है कि यहां किसी गैर हिंदू को रात्रि में रुकने की अनुमति नहीं है। ऐसा 1916 में हुए मदन मोहन मालवीय और ब्रिटिश हुकूमत के बीच हुए करार में दर्ज किया गया। इस संदर्भ में उक्त करार की मूल प्रति और हरिद्वार पालिका बायलॉज की मूल प्रति जोकि इंग्लिश में थी उसकी खोज की जा रही है, जोकि गायब बताई जा रही है या फिर किन्हीं कारणों से सामने नहीं लाई जाती। वर्तमान में जो नियमवाली पुस्तक सामने आई है वो 1954 में हिंदी में रूपांतरण की गई है। अलबत्ता इस नियमावली किताब में पृष्ठ 270 के अधिनियम 20 में स्पष्ट लिखा हुआ है कि सम भूमि खंड, द्वीपकार, हर की पौड़ी क्षेत्र, कुशावर्त घाट पर अहिंदुओं यानि गैर हिंदू के आने की आज्ञा नहीं है। इस नियमावली से एक बात तो स्पष्ट है कि गंगा के पवित्र घाट केवल हिंदू सनातन में विश्वास रखने वालों के लिए ही है। किसी दूसरे विशेष धर्म संप्रदाय के लिए नहीं है। यही व्यवस्था ऋषिकेश के लिए थी जिसकी चर्चा भी अक्सर उठती रही है।
ऐसा बताया जाता है कि इस नियम का दो बार 21.04.1919 में और 7.12.1945 में कुछ धाराओं में परिवर्तन किया गया लेकिन यह बात भी जानकारी में आई है कि गैर हिंदू के प्रवेश की व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं किया गया। यही वजह भी थी कि हरिद्वार में कोई गैर हिंदू धार्मिक स्थल नहीं बना और जो बने वो पालिका सीमा से बाहर थे।
सीमा विस्तार का मुद्दा
हरिद्वार पालिका का जब गठन हुआ तो उसकी सीमा बमुश्किल तीन किमी थी यानि जो गंगा के उस समय घाट थे उसी के आसपास आबादी थी। वहीं हिंदू तीर्थ स्थल भी रहे, लेकिन बाद में सीमा विस्तार हुआ और फिर उत्तराखंड बन जाने के बाद हरिद्वार निगम बन गया और कई गांव आसपास की छोटे-छोटे आबादी के समूह भी इसकी सीमा में गए , निगम में आज भी पालिका के नियम उपनियम प्रभावी है, क्योंकि निगम के नए बायलॉज लिखे नहीं गए और सीमा विस्तार के बाद बहुत से मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र भी इसमें शामिल हो हुए जिसके बाद हरिद्वार की सनातन अवधारणा विकृत हो गई।
मजारों को लेकर शुरू हुई बहस
हरिद्वार पालिका क्षेत्र में कोई मस्जिद नहीं थी और न ही कोई मुस्लिम संपत्ति खरीद सकता था लेकिन पिछले दिनों छ: मजारें यहां चिन्हित हो जाने से इस पर सवाल खड़े हुए कि ये आखिर कैसे बनी ? किसने बनने दी ? और अब मुस्लिम इस पर विवाद खड़े कर रहे हैं।
क्या कहते हैं हरिद्वार का पुरोहित पंडा समाज
हरिद्वार गंगा सभा, पंडा पुरोहित समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले अविक्षीत रमन कहते हैं कि हरिद्वार निगम क्षेत्र को सनातन क्षेत्र घोषित किया जाना चाहिए। हरिद्वार के सभी घाट हिंदू सनातन तीर्थ घोषित करते हुए यहां से आधा किमी दोनो तरफ गैर हिंदू लोगों का प्रवेश वंचित किया जाना चाहिए।
समाज सेवी अमित शर्मा कहते हैं कि हरिद्वार में गैर हिंदू के रहने पर प्रतिबंध था। ये विषय मूल बायलॉज में दर्ज थे, किंतु ये बायलॉज अब गायब कर दिया गया और 1916 में मदन मोहन मालवीय और ब्रिटिश हुकूमत के बीच हुआ करार भी सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर परमपूज्य यतीन्द्र आनंद जी महाराज कहते हैं कि हरिद्वार का सनातन स्वरूप बनाएं रखने के लिए जरूरी कदम, सरकार को उठाने चाहिए, यहां मांस मदिरा और घाटों पर गैर हिंदू आवागमन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
बहरहाल, हरिद्वार को सनातन हिंदू तीर्थ के रूप में घोषित करने की परिभाषा को लेकर नई बहस छिड़ गई है, और इस बारे में तरह रह की प्रतिक्रिया भी सामने आने लगी हैं।
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