पश्चिम बंगाल में पिछड़ा वर्ग आयोग ने जिन्हें ‘पिछड़ा’ माना है उनमें मात्र 61 हिंदू जातियां हैं, जबकि 118 मुस्लिम जातियां भी हैं, जिन्हें लाभ का पात्र बना दिया गया है। यही नहीं, पिछड़ा वर्ग के तहत बांग्लादेशी घुसपैठियों को भी हर सुविधा दी जा रही है। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हंसराज गंगाराम अहीर ने न केवल इसका संज्ञान लिया, बल्कि पाञ्चजन्य के समाचार संपादक अरुण कुमार सिंह से बातचीत में इस पर कार्रवाई करने की बात भी कही है। प्रस्तुत हैं बातचीत के कुछ अंश-
हाल ही आपने कहा था कि पश्चिम बंगाल में पिछड़े वर्ग के अधिकारों को छीना जा रहा है। इसे विस्तार से बताएं।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का काम है पिछड़े वर्गों को संरक्षण देना, उनके हितों को सुरक्षित करना और उन्हें उनका अधिकार दिलाना। अगर उनके अधिकारों पर कोई कब्जा करता है, छीनता है तो उसको रोका जाए। इसके लिए हम विभिन्न राज्यों में जाते हैं और वहां के संबंधित अधिकारियों से बात करते हैं। एक ऐसी ही बैठक के लिए कुछ समय पहले हम पश्चिम बंगाल पहुंचे तो कई गंभीर बातें पता चलीं। पहली बात तो यह कि वहां जितनी भी पिछड़ी जातियां हैं, उन्हें दो श्रेणियों, ‘ए’ और ‘बी’ में बांटा गया है।
एक को अति पिछड़ा, तो दूसरे को पिछड़ा कहा गया है। यहां तक तो ठीक है। दूसरी गंभीर बात यह है कि राज्य में हिंदुओं से अधिक मुसलमानों की पिछड़ी जातियां हैं! यह जानकर आश्चर्य हुआ कि 179 पिछड़ी जातियों में से 118 जातियां मुस्लिम हैं। यानी हिंदुओं की केवल 61 जातियों को ही पिछड़े वर्ग में रखा गया है। यह भी पता चला कि 2010 तक वहां की 108 जातियों को पिछड़े वर्ग में रखा गया था। इनमें भी 55 हिंदू और 53 मुसलमान जातियां थीं। 2011 में अचानक 71 जातियों को पिछड़े वर्ग की सूची में शामिल किया। इनमें 65 जातियां मुस्लिम थीं और मात्र छह जातियां हिंदू।
इस तरह 2011 तक कुल 179 जातियों को पिछड़े वर्ग में रखा गया। इनमें 118 मुसलमान हैं और 61 हिंदू। सूची को देखकर हमें शंका हुई कि इसमें जरूर कोई गड़बड़ी है, क्योंकि पश्चिम बंगाल में लगभग 71 प्रतिशत हिंदू हैं और करीब 27 प्रतिशत मुसलमान। इस अनुपात से तो राज्य के पिछड़े वर्ग की सूची में हिंदू जातियां अधिक होनी चाहिए थीं। इस पर अधिकारियों ने बताया कि राज्य पिछड़ा आयोग ने सूची बनाई है। यह भी बताया कि सूची बनाने से पहले राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने कल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआरआई) से सर्वेक्षण और अध्ययन कराया था। इसी सीआरआई की रपट के आधार पर बंगाल में पिछड़ी जातियों की सूची तैयार होती है। लेकिन उस सूची को देखकर मैं यह कहने के लिए विवश हूं कि सीआरआई ने ठीक से अध्ययन नहीं किया है। मनमाने तरीके से नई ओबीसी जातियां पैदा की गर्इं और उन्हें राज्य पिछड़ा वर्ग की सूची में डाल दिया गया।
पश्चिम बंगाल में मेडिकल कॉलेजों में 3,351 सीटें हैं। इनमें से 457 सीटें ‘ए’ श्रेणी में शामिल ओबीसी जातियों को मिलती हैं और इस ‘ए’ श्रेणी में 91 प्रतिशत मुसलमान हैं। इस आधार पर इनमें से 400 सीटें मुसलमानों के पास चली जाती हैं। मात्र 50-60 सीटें हिंदू पिछड़ी जातियों को मिलती हैं।
इस पर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने कोई कार्रवाई की?
बिल्कुल की। हमने पूछा कि इन जातियों को ओबीसी में किस आधार पर लिया गया? तो उनका जवाब था कि पहले ये हिंदू थे। बाद में कन्वर्ट होकर मुसलमान बने। पर सभी हिंदू ओबीसी तो नहीं होते? उन्होंने कहा कि उनमें से कुछ जातियां अनुसूचित जाति (एससी) की थीं, लेकिन उन्हें भी ओबीसी में लिया गया है। मैंने पूछा कि आप एससी को ओबीसी में कैसे ले सकते हैं? इसके बाद फरवरी, 2023 में हमने लिखित जवाब मांगा। अप्रैल, 2023 में जवाब तो आया, लेकिन बहुत ही गोलमटोल। उन्होंने यह नहीं बताया कि हिंदू लोग मुस्लिम कब बने, कितने बने और कौन-सी जाति के बने। उन्होंने यह भी माना कि इन सबका कोई रिकॉर्ड नहीं है। मुसलमानों की जातियों को किस आधार पर पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया है?
इसका भी वे उत्तर नहीं दे पाए। पता चला है कि भोटिया मुस्लिम को भी राज्य की ओबीसी सूची में शामिल किया गया है। पश्चिम बंगाल सरकार के कागजात ही बताते हैं कि भोटिया मुस्लिम बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में रहते हैं। बड़ी संख्या में भोटिया मुसलमान घुसपैठ करके भारत मेें आए हैं। अब इन्हें भी पश्चिम बंगाल में ओबीसी मान लिया गया है। यानी बांग्लादेशी घुसपैठियों की ओबीसी में घुसपैठ कराकर भारत में जो लोग वास्तव में पिछड़े हैं, उनका अधिकार छीना गया है। यह गलत है। इसकी जांच होनी चाहिए।
पश्चिम बंगाल एक हिंदू-बहुल राज्य है। फिर भी वहां ओबीसी की सूची में हिंदू जातियों से ज्यादा मुस्लिम जातियां हैं। क्या यह तुष्टीकरण की पराकाष्ठा नहीं है?
चूंकि मैं किसी राजनीतिक पद पर नहीं बल्कि एक संवैधानिक पद पर हूं इसलिए मैं यह शब्द नहीं कह सकता कि यह तुष्टीकरण है। लेकिन हां, मुझे यह देखना है कि कोई किसी ओबीसी के अधिकारों पर डाका तो नहीं डाल रहा है। हर ओबीसी को उसका अधिकार दिलाना मेरा कर्तव्य है।
क्या पश्चिम बंगाल में सरकारी नौकरियों और मेडिकल कॉलेजों में नामांकन कराने में भी पिछड़ी जातियों के साथ भेदभाव हो रहा है?
जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि पश्चिम बंगाल में ओबीसी की ‘ए’ श्रेणी में जो जातियां हैं, उनमें 91 प्रतिशत मुसलमान और शेष हिंदू हैं। इसलिए स्वाभाविक है कि जो भी भर्तियां होंगी, उनमें मुसलमानों की संख्या ज्यादा रहेगी। पश्चिम बंगाल में मेडिकल कॉलेजों में 3,351 सीटें हैं। इनमें से 457 सीटें ‘ए’ श्रेणी में शामिल ओबीसी जातियों को मिलती हैं। और ‘ए’ श्रेणी में 91 प्रतिशत मुसलमान हैं। इस आधार पर इनमें से 400 सीटें मुसलमानों के पास चली जाती हैं। मात्र 50-60 सीटें हिंदू पिछड़ी जातियों को मिलती हैं।
बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों को सुविधाएं देकर पश्चिम बंगाल सरकार देशद्रोह नहीं कर रही है?
देखिए, मैं यही कहूंगा कि इसको सामाजिक दृष्टिकोण से देखेंगे तो यह बात साफ नजर आएगी कि पश्चिम बंगाल में पिछड़ों के साथ अन्याय हो रहा है। उनका अधिकार छीना जा रहा है। इसकी हम गहन जांच-पड़ताल करेंगे और उसकी रपट महामहिम राष्ट्रपति को भेजेंगे।
जांच कब तक पूरी हो जाएगी?
इसकी एक लंबी प्रक्रिया होती है। ओबीसी का अधिकार कुछ अन्य राज्यों में भी छीना जा रहा है। कुछ समय पहले मैं राजस्थान गया तो पता चला कि एक क्षेत्र में ओबीसी के लिए आरक्षण ही नहीं है। अधिकारियों ने बताया कि यह जनजाति बहुल क्षेत्र है। इसलिए ओबीसी को आरक्षण नहीं दिया जा रहा है। आयोग के प्रयासों से अब वहां पर ओबीसी को आरक्षण देने की प्रक्रिया चालू हो गई है। ऐसे ही पंजाब, बिहार सहित अनेक राज्यों में भी पिछड़ी जातियों के अधिकारों को छीना जा रहा है। इन सभी समस्याओं के समाधान हेतु आयोग कार्य कर रहा है। कुछ राज्यों की जातियों को केंद्रीय ओबीसी में लेना है, उस पर भी काम हो रहा है।
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