अपना पैन कार्ड नंबर डालकर साइट खोलने के बाद अमित को पता चला कि वह दो कंपनियों के मालिक हैं। इन कंपनियों का अच्छा-खासा टर्नओवर भी है और इनके नाम से जीएसटी भी भरा और पाया जा रहा है। यह देखने के बाद अमित के हाथ-पांव फूल गए, क्योंकि उन्हें ऐसी किसी कंपनी के बारे में जानकारी ही नहीं थी।
नोएडा सेक्टर-16 स्थित एक बड़े टीवी चैनल में काम करने वाले अमित सिंह (परिवर्तित नाम) को उस समय झटका लगा, जब वे अपना सालाना आयकर भरने के लिए आयकर विभाग की वेबसाइट पर गए। अपना पैन कार्ड नंबर डालकर साइट खोलने के बाद अमित को पता चला कि वह दो कंपनियों के मालिक हैं। इन कंपनियों का अच्छा-खासा टर्नओवर भी है और इनके नाम से जीएसटी भी भरा और पाया जा रहा है। यह देखने के बाद अमित के हाथ-पांव फूल गए, क्योंकि उन्हें ऐसी किसी कंपनी के बारे में जानकारी ही नहीं थी। उन्होंने तत्काल अपने चार्टर्ड अकाउंटेंट मित्र से संपर्क किया। इसके बाद अमित को पता चला कि उनके पैन कार्ड से किसी ने फर्जी कंपनी बनाई है। अमित ने तुरंत नोएडा सेक्टर-20 थाने में इस बाबत शिकायत की। मामला बड़ा होने के कारण नोएडा पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी। पुलिस ने इसकी जानकारी स्थानीय आयकर विभाग को भी दी। इसके बाद पुलिस और आयकर विभाग ने मिलकर इस मामले की जांच शुरू की।
हालांकि किसी व्यक्ति का पैन कार्ड चोरी कर कंपनी खोलने का यह पहला मामला नहीं था। इससे पहले भी कई बार फर्जी तरीके से पैन कार्ड का प्रयोग कर कंपनी खोली गई और जीएसटी की चोरी की गई। लेकिन इस मामले में पुलिस को एक ऐसे गैंग का पता चला जिससे पुलिस अधिकारी भौंचक्के रह गए। पुलिस के मुताबिक, जब अमित के नाम से बनी कंपनी और उससे जुड़े बैंक खातों की जांच की गई तो पता लगा कि जिस मोबाइल नंबर से बैंक खाता जुड़ा है, उससे बहुत सारी कंपनियां जुड़ी हुई हैं। बस यहीं से लगभग 2660 कंपनियों का पता चला, जो दूसरों के पैन कार्ड पर बनाई गई थीं। इन कंपनियों के जरिए इस गैंग ने सरकार को 15 हजार करोड़ रुपये से अधिक का चूना लगाया है।
इस फर्जीवाड़े में अपराधियों की धरपकड़ के बाद नोएडा की पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह ने बताया, ‘‘शुरुआती जांच में केवल एक कंपनी का नाम सामने आया था। उसकी जांच-पड़ताल के दौरान हमें पता चला कि कंपनी ने जीएसटी रिटर्न लिया था। इस सूत्र पर काम करते हुए हम जीएसटी विभाग पहुंचे। हमने अमित के पैन कार्ड का डेटा निकाला, जो अमित नहीं, बल्कि किसी और के नंबर पर पंजीकृत था। उस मोबाइल नंबर की जांच-पड़ताल करने पर पता चला कि उस नंबर पर पश्चिम बंगाल, दिल्ली, गाजियाबाद, चंड़ीगढ़ के पते पर बहुत सारी कंपनियां पंजीकृत हैं। इसके बाद हमारी टीमें इन शहरों में कंपनी के पते पर आगे की जांच के लिए गईं, लेकिन वहां कोई भी कंपनी चलती हुई नहीं मिली।
एक बड़े टीवी चैनल में काम करने वाले अमित सिंह (परिवर्तित नाम) को उस समय झटका लगा, जब वे अपना सालाना आयकर भरने के लिए आयकर विभाग की वेबसाइट पर गए। अपना पैन कार्ड नंबर डालकर साइट खोलने के बाद अमित को पता चला कि वह दो कंपनियों के मालिक हैं। इन कंपनियों का अच्छा-खासा टर्नओवर भी है और इनके नाम से जीएसटी भी भरा और पाया जा रहा है। यह देखने के बाद अमित के हाथ-पांव फूल गए, क्योंकि उन्हें ऐसी किसी कंपनी के बारे में जानकारी ही नहीं थी।
छानबीन यहां आकर रुक गई तो हमने इस फोन नंबर के मालिक को ढूंढना शुरू किया। पुलिस टीमें मोबाइल नंबर का पता लगाते हुए यासीन शेख के पास पहुंचीं। इसके बाद उसके घर और कार्यालय पर छापा मारकर उसका लैपटॉप और मोबाइल जब्त किया। इससे जो डेटा मिला, वह बहुत चौंकाने वाला था। इससे पता चला कि देश के अलग-अलग शहरों में 50 से अधिक लोगों का गिरोह है, जिसने अभी तक 2660 फर्जी कंपनियां बनाई हैं। इन कंपनियों के जरिए वे जीएसटी रिफंड के लिए आवेदन कर रहे हैं।’’
इसके बाद इस करोड़ों रुपये के घोटाले की परतें खुलने लगीं। पुलिस जांच में दिल्ली में इस घोटाले से जुड़े 3 कार्यालयों का पता चला। इसके बाद लगातार छापेमारी कर पुलिस ने अभी तक एक महिला समेत 8 लोगों को गिरफ्तार किया है। इनके पास से बरामद लैपटॉप, मोबाइल और दस्तावेजों से 6.35 लाख लोगों के पैन कार्ड मिले हैं। भारत में कुल 61 करोड़ पैन कार्ड आज तक जारी हुए हैं, इनमें से लगभग 10 प्रतिशत पैन कार्ड इन लोगों के पास से मिले हैं।
पैन कार्ड से फर्जीवाड़ा
पैन कार्ड सभी तरह के वित्तीय लेन-देन का प्रमुख दस्तावेज होता है। क्रेडिट कार्ड बनवाने से लेकर बैंक खाता, कंपनी खोलने और ऋण लेने के लिए इसकी जरूरत पड़ती है। ऐसे में यदि आपका पैन कार्ड और मोबाइल नंबर गलत हाथों में चला गया तो आपके नाम से सभी तरह के वित्तीय लेन-देन किए जा सकते हैं। आपके पैन कार्ड का प्रयोग कालेधन को खपाने के लिए भी किया जा सकता है। 2000 रुपये के नोटों के चलन से बाहर होने के बाद जिन लोगों के पास काला धन है, वे दूसरों के पैन कार्ड पर सोना खरीद रहे हैं। एक सीमित सीमा के बाद सोना खरीदने के लिए पैन कार्ड की जरूरत होती है। इससे फर्जीवाड़ा करने वाले तो बच जाते हैं और आयकर विभाग की निगाह में वे लोग आ जाते हैं, जिनके पैन कार्ड पर सोना खरीदा जाता है। इसलिए समय-समय पर अपने पैन कार्ड की जांच करते रहें कि कहीं कोई और तो आपके पैन कार्ड का दुरुपयोग तो नहीं कर रहा है।
ऐसे करें सुरक्षा
किसी काम के लिए पैन कार्ड देते समय उसकी प्रति पर हस्ताक्षर के साथ यह जरूर लिखें कि किस उद्देश्य के लिए दे रहे हैं। बिना हस्ताक्षर इसकी प्रति बिल्कुल न दें। इसके अलावा, किसी वेबसाइट पर पैन कार्ड दर्ज करने से पहले उसका यूआरएल जांचें कि वेबसाइट सुरक्षित है या नहीं। इसके लिए वेबसाइट का एसएसएल प्रमाणपत्र जांचें। जिन वेबसाइट्स पर भरोसा न हो, उन पर अपना पूरा नाम और जन्मतिथि लिखने से बचें। साथ ही, अपना क्रेडिट स्कोर भी जांचते रहें। इससे यदि कोई आपके नाम पर ऋण लेता है तो आपको उसका पता तुरंत लग सकता है। सबसे जरूरी है कि किसी भी तरह की गड़बड़ी दिखे तो तत्काल आयकर विभाग को सूचित करें। पैन कार्ड से फर्जीवाड़े की शिकायत के लिए एनएसडीएल की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं और कस्टमर केयर में जाकर ग्राहक सेवा केंद्र टैब पर क्लिक करें। इसमें आपको शिकायत का एक और टैब मिलेगा, जिसे क्लिक करके आप अपना व्यक्तिगत विवरण और अपनी परेशानी दर्ज करें। शिकायत पर तत्काल कार्रवाई होती है।
यूं चलता था फर्जीवाड़ा
पुलिस के अनुसार, इस गिरोह ने दो टीमें बना रखी थीं। पहली टीम जस्ट डायल जैसी कंपनियों से लोगों का डेटा खरीदती थी। इसके बाद जिन लोगों को डेटा खरीदा गया, उनसे मिलते-जुलते नामों वालों की खोजबीन की जाती थी। फिर उनके दस्तावेजों के आधार पर पैन, आधार, मोबाइल के साथ रेंट एग्रीमेंट जैसे दस्तावेज तैयार करते थे। वहीं, इस गिरोह की दूसरी टीम, जिसमें चार्टड अकाउंटेंट और बैंक कर्मचारी शामिल होते थे, इन नकली कागजातों के आधार पर फर्जी कंपनियों का पंजीकरण करवाती थी। कंपनी बनने के बाद उसे यासीन शेख गिरोह को बेच दिया जाता था। एक-एक कंपनी को लाखों रुपये में बेचा जाता था। इसके बाद जीएसटी रिफंड लेने का काम शुरू होता था। इसके लिए नकली ‘इनवाइस’ बनाए जाते थे। इसमें भी चार्डर्ड अकाउंटेंट्स की मदद ली जाती थी।
एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि ऐसा नहीं है कि पुलिस या आयकर अधिकारियों को ऐसे मामलों की जानकारी नहीं होती है। इसके बावजूद ऐसे मामलों की जांच में बहुत मुश्किलें आती हैं। हमारी टीमें लगातार दूसरे राज्यों में इस नेटवर्क का पता लगाने के लिए गईं, लेकिन स्थानीय पुलिस से सहयोग नहीं मिला। काफी मशक्कत के बाद हम इस पूरे घोटाले की जड़ तक पहुंच सके। दरअसल, इस पूरे घोटाले का भंडाफोड़ इसलिए भी हो सका, क्योंकि नोएडा में एक पुलिस अधिकारी एसीपी रजनीश वर्मा खुद तकनीकी तौर पर काफी जानकार हैं। उन्होंने इस केस में रुचि दिखाई, जिसका परिणाम सामने है। नहीं तो इस पूरे फर्जीवाड़े का पता लगाना बहुत मुश्किल होता।
जीएसटी का फर्जीवाड़ा यासीन शेख पर जाकर खत्म नहीं होता है। इस खेल में यासीन एक छोटा मोहरा है। मास्टरमाइंड कोई और है, जो एक बड़ी कंपनी चला रहा है। इसका पता लगाने के लिए नोएडा पुलिस ने केंद्र एवं राज्य के जीएसटी विभाग सहित जांच एजेंसियों को पत्र लिखा है, क्योंकि यह डेटा सुरक्षा ही नहीं, बल्कि मनी लांड्रिंग से जुड़ा मामला भी है।
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