नेपाल के प्रधानमंत्री बनने के बाद पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने अपने पहले विदेश दौरे के लिए भारत को चुना। यहां उनका बेहद गर्मजोशी से स्वागत हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक के बाद कहा कि हम संबंधों को हिमालय की ऊंचाइयों तक ले जाएंगे तो प्रचंड ने कहा कि भारत-नेपाल संबंधों में नया अध्याय लिखा जा रहा है।
अप्रत्याशित रूप से तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बनने के बाद पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने अपने पहले विदेश दौरे के लिए भारत को चुना। यहां उनका बेहद गर्मजोशी से स्वागत हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक के बाद कहा कि हम संबंधों को हिमालय की ऊंचाइयों तक ले जाएंगे तो प्रचंड ने कहा कि भारत-नेपाल संबंधों में नया अध्याय लिखा जा रहा है। 31 मई को तीन दिन के दौरे पर भारत पहुंचे प्रचंड का कहना था कि प्रधानमंत्री के रूप में यह उनकी चौथी भारत यात्रा है और वे कह सकते हैं कि ऊर्जा, संपर्क और जल संसाधनों पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ जिस तरह के समझौते हुए हैं, उससे लगता है कि एक नया इतिहास लिखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस भेंट के दौरान दोनों देशों के बीच संपर्क, जल संसाधन और ऊर्जा के क्षेत्रों में आपसी संबंध मजबूत करने को लेकर बहुत दूर तक जाने वाली सहमति बनी है। स्वदेश पहुंचने के बाद वे नेपाली जनता को बताएंगे कि नेपाल-भारत संबंधों में नए इतिहास की शुरुआत हुई है और इनमें एक नया आयाम जुड़ गया है जिसे मजबूत करना सबका कर्तव्य है।
भारत-नेपाल संबंधों में पिछले कुछ दशकों में आए लगातार उतार-चढ़ाव देखते हुए कभी चीन समर्थक माने जाने वाले प्रचंड का यह रुख आपसी संबंधों में आए बदलाव को रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है। चीन लंबे समय से नेपाली जनता और राजनीतिकों के एक वर्ग में भारत विरोधी भावनाओं भड़काकर उनसे फायदा उठाता रहा है। राजशाही के खात्मे और नेपाल में कम्युनिस्टों के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद चीन समर्थक रवैया स्पष्ट दिखा है। चीन का हौवा खड़ा कर भारत पर दबाव बनाने की कोशिशें भी होती रही हैं। हालांकि ज्यादातर नेपाली राजनेता यह जानते हैं कि चीन अपनी भौगोलिक स्थिति और सांस्कृतिक दूरी के कारण भारत का विकल्प नहीं हो सकता और प्रचंड भी इसके अपवाद नहीं हैं। वे भारत से संबंधों की अहमियत समझते हैं और टोकन के तौर पर दिए गए बयानों से इतर भारत-नेपाल संबंधों में एक नयी इबारत लिखने के इच्छुक हैं।
भारत को वरीयता
यह इसी से जाहिर हो जाता है कि इस बार प्रधानमंत्री बनने के बाद वे चीन का न्योता ठुकरा कर पहली विदेश यात्रा पर भारत आए। यह अघोषित परंपरा रही है कि नेपाल का प्रधानमंत्री अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत ही आता है। लेकिन इसे तोड़ने वाले भी प्रचंड ही थे जो अपने पहले कार्यकाल की पहली विदेश यात्रा में भारत के बजाय चीन गये थे। हालांकि उसे राजनीतिक यात्रा कहना उचित नहीं होगा क्योंकि 2008 में चीन में बीजिंग ओलंपिक के उद्घाटन समारोह में कई देशों के शीर्ष नेता मौजूद थे जिसमें प्रचंड भी एक थे। कभी उन्हें भले चीन समर्थक मानते आ रहे लोग अब उन्हें नेपाल समर्थक के तौर पर देख रहे हैं। कभी भारत और अमेरिका को साम्राज्यवादी बताने वाले प्रचंड की खासियत है कि अपने राजनीतिक बयानों में वे भले ही क्रांतिकारी हों, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ व्यावहारिक हैं। इसी कारण काफी समय से ऐसा लगता है कि वे नेपाल में चीन के ‘प्रिय नेता’ नहीं रह गये हैं।
अगस्त 2016 में उनके दूसरी बार प्रधानमंत्री बनते ही यह आभास होने लगा था। चीन समर्थक केपी ओली सरकार द्वारा बनाये जा रहे संविधान के विरोध में जारी मधेशियों के विरोध प्रदर्शनों और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सहमति के जरिए संविधान’ के आह्वान के बीच प्रधानमंत्री के रूप में तीसरे कार्यकाल की पहली विदेश यात्रा के लिए उन्होंने भारत का रुख किया। ओली नए संविधान पर चीन से सलाह ले रहे थे। इसको लेकर जारी तनाव के बीच ओली की सरकार गिर गई और चीन अपनी लाख कोशिशों के बावजूद उन्हें बचा नहीं पाया। राजनीतिक उठापटक के बीच प्रधानमंत्री बने प्रचंड ने भारतीय प्रधानमंत्री की बात को प्रमुखता दी। प्रधानमंत्री बनते ही प्रचंड ने भारत का रुख किया हालांकि नेपाल के चीन समर्थक दल दबाव बना रहे थे कि इस यात्रा के दौरान वे भारत के साथ किसी समझौते पर दस्तखत न करें।
प्रचंड ने इस यात्रा के दौरान सहमति से नेपाल के नए प्रस्तावित संविधान पर भारत के आधिकारिक रुख को स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात के दौरान कई समझौतों पर दस्तखत किए। भारत ने उदारता दिखाते हुए भूकम्प के बाद नेपाल में पुनर्निर्माण कार्यों के लिए 2015 में आबंटित एक अरब डॉलर की राशि के अलावा 750 मिलियन डॉलर की अतिरिक्त राशि देने, तराई क्षेत्र में सड़क ढांचे के विकास जैसे कई समझौतों पर दस्तखत किये। निष्कर्ष यह कि भारत ‘सहमति से संविधान’ के अपने रुख पर कायम रहा लेकिन नेपाल की प्रतिक्रिया में बदलाव देखने को मिला। भारत के प्रयासों से नये संविधान के खिलाफ मधेशियों की उग्र प्रतिक्रिया से उपजे विस्फोटक हालात का समाधान निकल आया। प्रधानमंत्री मोदी ने जहां प्रचंड को शांति का उत्प्रेरक बताया तो चीन इस घटनाक्रम पर अपनी निराशा छिपा नहीं पाया। प्रचंड के इस दौरे से चिढ़े चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अखबार ‘द ग्लोबल टाइम्स’ ने नेपाली नेताओं पर निशाना साधा और उन्हें अदूरदर्शी करार देते हुए कहा कि उनके पास कोई ‘नैतिकता, न्याय और सत्यनिष्ठा’ नहीं है। चीनी प्रतिक्रिया इतनी तीखी थी कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नेपाल के प्रस्तावित दौरे को रद्द कर दिया।
निराश हुआ चीन
चीन की निराशा स्वाभाविक है। प्रचंड भले कभी माओवादी रहे हों लेकिन दूसरे कार्यकाल में ही उन्होंने साफगोई से यह बात स्वीकार की थी कि अब वे आग उगलने वाले क्रांतिकारी नहीं रह गये हैं और राजनीतिक रूप से परिपक्व हो चुके हैं। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि पहले कार्यकाल के दौरान भारत पर राजनीतिक दखलंदाजी के उनके आरोप अनुचित थे। प्रचंड जानते हैं कि नेपाल में भारत विरोध की राजनीति बहुत लाभदायक नहीं है। पिछले साल भी चीन के दबाव में उन्होंने नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (यूएम-एल) के साथ गठबंधन बनाया था लेकिन आखिर में पाया कि वे शेरबहादुर देउबा और भारत समर्थक नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन में ज्यादा सहज रहेंगे। देउबा की तरह प्रचंड भी चीन की वन बेल्ट-वन रोड परियोजना में कुछ खास रुचि नहीं दिखा रहे जिस पर नेपाल ने छह साल पहले दस्तखत किए थे। और तो और, प्रचंड ने अपने रुख में पूरी तरह बदलाव करते हुए ‘मिलेनियम चैलेंज’ के तहत अमेरिका से 500 मिलियन डॉलर का अनुदान भी स्वीकार कर लिया। वे इससे पहले यह कहकर इसका विरोध कर रहे थे कि यह हिंद प्रशांत सुरक्षा योजना का हिस्सा है और इससे नेपाल की गुटनिरपेक्षता की नीति पर, असर पड़ेगा। साफ तौर पर चीन को चिढ़ाने वाले एक अन्य कदम के तौर पर प्रचंड के नयी दिल्ली रवाना होने से चंद घंटे पहले, नेपाली राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने उस विवादास्पद नेपाली नागरिकता कानून को मंजूरी दे दी जिसमें नेपाली नागरिकों से विवाह करने वाली विदेशी महिलाओं को लगभग तुरंत नागरिकता और सारे राजीतिक अधिकार देने का प्रस्ताव था। चीन इससे काफी चिढ़ा हुआ है क्योंकि उसका मानना है कि इससे नेपाली नागरिकों से विवाह करने वाली तिब्बती महिलाओं को नागरिकता और संपत्ति का अधिकार मिल जाएगा।
परियोजनाओं पर बढ़े कदम
- कुर्था-बिजलपुरा रेलवे लाइन के खंड को सुपुर्द किया गया।
- भारतीय अनुदान के तहत नवनिर्मित रेल लिंक बथनाहा (भारत) से नेपाल सीमा शुल्क यार्ड तक एक भारतीय रेलवे कार्गो ट्रेन का उद्धाटन।
- नेपालगंज (नेपाल) और रुपईडीहा (भारत) में एकीकृत चेकपोस्ट (आईसीपी) का उद्धाटन।
- भैरहवा (नेपाल) और सोनौली (भारत) में आईसीपी का ग्राउंड ब्रेकिंग समारोह।
- मोतिहारी-अमलेखगंज पेट्रोलियम पाइपलाइन के तहत दूसरे चरण की सुविधाओं का ग्राउंड ब्रेकिंग समारोह।
- पीजीसीआईएल और एनईए के संयुक्त उद्यम द्वारा बनाई जा रही गोरखपुर-भुटवल ट्रांसमीशन लाइन के भारतीय हिस्से का ग्राउंड ब्रेकिंग समारोह।
भारत-नेपाल के बीच हुए एमओयू/समझौते
- भारत सरकार और नेपाल सरकार के बीच पारगमन की संधि, नेपाल के लोगों के लिए नये रेल मार्ग, भारत के अंतरदेशीय जल मार्गों की भी सुविधा
- पेट्रोलियम विनिर्माण के क्षेत्र में सहयोग के लिए भारत सरकार और नेपाल सरकार के बीच समझौता ज्ञापन
- सुषमा स्वराज इंस्टीट्यूट आफ फॉरेन सर्विस और इंस्टीट्यूट आफ फॉरेन अफेयर्स, नेपाल के बीच समझौता ज्ञापन
- भारत-नेपाल सीमा पर दोधरा चांदनी चेक पोस्ट पर बुनियादी ढांचे के विकास के लिए भारत सरकार और नेपाल सरकार के बीच समझौता ज्ञापन
- मैसर्स एसजेवीएन और नेपाल के निवेश बोर्ड के बीच लोअर अरुण जलविद्युत परियोजना का परियोजना विकास समझौता
- फुकोट करनाली जलविद्युत परियोजना के विकास के लिए एनएचपीसी और वीयूसीएल, नेपाल के बीच समझौता ज्ञापन
- सीमा पार भुगतान के लिए एनपीसीआईएल और एनसीएचएल, नेपाल के बीच समझौता
हिंदुत्व के प्रति संवेदनशील!
नए अवतार में प्रचंड नेपाली हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं के प्रति भी संवेदनशील दिख रहे हैं। इस यात्रा में वे उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर भी गये जहां उन्होंने 51 हजार रुपये और सौ किलो की रुद्राक्ष की माला चढ़ाई। बहरहाल, प्रचंड की इस बेहद सफल यात्रा के दौरान हुए समझौते दोनों ही देशों के हित में हैं। बिजली के क्षेत्र में हुए अहम समझौते, अगले दस साल में 10 हजार मेगावाट बिजली आयात का लक्ष्य, नई तेल पाइपलाइन, पर्यटन से लेकर क्यूआर कोड के जरिये व्यापारिक लेन-देन जैसे समझौते अहम माने जा रहे हैं। खासकर प्रधानमंत्री मोदी के पेट्रोलियम पाइपलाइन भंडारण और दीर्घकालिक विद्युत व्यापार जैसे समझौतों पर दस्तखत से नेपाली जनता को काफी लाभ होगा। हालांकि चीन समर्थक पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का कहना है कि जब तक विवादित मुद्दे नहीं उठाए जाएंगे, तब तक यात्रा का कोई लाभ नहीं है। लेकिन प्रचंड की इस यात्रा से यही लगा कि उन्होंने विवादित मुद्दों को दरकिनार कर समझौते और विकास की राह चुनी है।
(लेखक अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं)
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