हिमालयी राष्ट्र नेपाल में नया बवाल उठ खड़ा हुआ है। यहां सर्वोच्च न्यायालय ने आखिरकार पूर्व माओवादी क्रांतिकारी नेता और वर्तमान में प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड के विरुद्ध एक याचिका स्वीकार कर ली है।
यह मामला पुराना तो है लेकिन बीच बीच में उठकर राजनीतिक हलचल पैदा करता रहा है। तत्कालीन माओवादी सशस्त्र क्रांति के नेता प्रचंड ने अपनी विद्रोही सेना में बच्चों के हाथ में हथियार थमा दिए थे। आज वे बाल लड़ाके बड़े होकर उस वक्त अपने साथ हुए उस ‘अन्याय’ के बदले न्याय चाहते हैं।
इसी संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति आनंद मोहन भट्टाराई की एकल पीठ ने दो दिन पूर्व याचिका दायर करने का आदेश सुनाया था। इसी पर कार्रवाई करते हुए कल प्रधानमंत्री प्रचंड के विरुद्ध यह याचिका दायर कर दी गई। उल्लेखनीय है कि इसी तरह की याचिका एक बार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अस्वीकृत कर दी गई थी।
इस याचिका के दायर होने से प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड की परेशानियां बढ़ सकती हैं। सर्वोच्च न्यायालय में उनके विरुद्ध याचिका दायर होने का मतलब होगा बाकायदा सुनवाई और बाकी कार्रवाई चलना। याचिका में तत्कालीन माओवादी पार्टी के अध्यक्ष प्रचंड के विरुद्ध यही आरोप लगाया गया है कि उन्होंने छोटी उम्र में बच्चों के हाथ में हथियार पकड़ाकर लड़ाकों की तरह उनका प्रयोग किया था। और यह याचिका भी पूर्व बाल सैनिक रहे लेनिन बिस्टा नाम के युवक ने दायर की है।
नेपाल स्थित संयुक्त राष्ट्र मिशन ने माओवादी पार्टी सीपीएन-एम की माओवादी आर्मी के 4008 सैनिकों को अयोग्य घोषित किया था। उस वक्त्त संयुक्त राष्ट्र ने अयोग्य ठहराए लड़ाकों को नाबालिग बताया था। इसके बाद 2007 में इसकी तहकीकात हुई। तब पाया गया कि लगभग 2900 माओवादी लड़ाके नाबालिग थे।
याचिका में बिस्टा का दावा है कि राजतंत्र के विरुद्ध माओवादियों ने युद्ध में बच्चों का उतारकर अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन किया था। लेनिन बिस्टा ने अपनी याचिका में प्रचंड ही नहीं, उस दौर में उनके साथ माओवादी नेता पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई के विरुद्ध भी कार्रवाई किए ताने की मांग की है। भट्टराई उस वक्त प्रचंड के बाद दूसरे नंबर के माओवादी नेता थे। प्रंचड पर बाल लड़ाकों के रूप में भर्ती किए गए बच्चों के मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाया गया है।
नेपाल स्थित संयुक्त राष्ट्र मिशन ने माओवादी पार्टी सीपीएन-एम की माओवादी आर्मी के 4008 सैनिकों को अयोग्य घोषित किया था। उस वक्त्त संयुक्त राष्ट्र ने अयोग्य ठहराए लड़ाकों को नाबालिग बताया था। इसके बाद 2007 में इसकी तहकीकात हुई। तब पाया गया कि लगभग 2900 माओवादी लड़ाके नाबालिग थे। लगभग दस साल चले माओवादी विद्रोही अभियान में करीब 16,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे। 2006 में एक शांति समझौता हुआ था और तब राजतंत्र के विरुद्ध माओवादी सशस्त्र क्रांति खत्म हुई थी।
बहरहाल, इस याचिका की आड़ में नेपाल के विपक्षी दलों प्रधानमंत्री प्रचंड के विरुद्ध निशाना साधने का एक और कारण हाथ लग गया है। वे प्रचंड और उनकी सरकार के विरुद्ध बयानबाजियां करने लगे हैं।
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