महाराष्ट्र से 8 जून 2023 को एक दिल दहला देने वाला समाचार आया, जिसमें एक महिला की हत्या उसके लिव इन पार्टनर ने कर दी। हत्या के बाद जो किया वह हत्या से अधिक जघन्य है। मनोज साहनी ने अपनी लिव इन पार्टनर सरस्वती वैद्य की हत्या करके उसे काटा और फिर इस घटना के साक्ष्य छुपाने के लिए शव के टुकड़ों को ठिकाने लगाने के लिए प्रेशर कुकर में उबाला।
इस घटना में महिला की और पुरुष की उम्र में बहुत अंतर है। जहां मृतक महिला की उम्र 32 के लगभग थी तो वहीं मनोज साहनी की उम्र 56 वर्ष है। यद्यपि प्यार की आजादी की बात करने वाले यह नारा लगाते रहते हैं कि “न उम्र की सीमा हो न जन्मों का हो बंधन”
परन्तु उम्र की सीमा होती ही है। प्यार को लेकर और रहने की आजादी को लेकर जो रूमानियत पैदा की गई है, जिस प्रकार से प्यार और परिवार को आमने सामने कर दिया है, वह दुखद है और इसी आमने सामने के संघर्ष का यह परिणाम है कि लिव इन पार्टनर्स के दिल दहला देने वाले कत्ल के मामले लगातार सामने आते रहते हैं। कथित फेमिनिज्म ने महिलाओं को साथियों के बाजार में लाकर खड़ा कर दिया है, जहां पर उन्हें साथियों के सब्ज बाग़ दिखाए जाते हैं।
“न उम्र की सीमा हो!” जैसे धारावाहिक यह रूमानियत भरते हैं कि अपने से बहुत बड़ी उम्र के साथी से प्यार करना या शादी करना गुनाह नहीं है तो वहीं लिव इन संबंधों को लेकर जो वैधता की बात है, वह भी युवाओं को इस जाल में फंसने के लिए प्रेरित करती है।
आखिर क्या है लिव इन सम्बन्ध ?
लिव इन संबंधों का अर्थ होता है कि दो वयस्क अपनी मर्जी से बिना किसी औपचारिक संबंधों के एक साथ पति-पत्नी की तरह रहे हों। उनके मध्य मात्र यह सहमति है कि वह वर्तमान में जीवन साथ गुजारना चाहते हैं। जब भी कोई इस संबंध से बाहर जाना चाहे तो वह जा सकता है।
हालांकि जो लोग इसे कानूनी वैधता की बात करते हैं, उन्हें इस संबंध में जो निर्णय आए हैं, उनके अनुसार लिव इन में किन लोगों को कानूनी सुरक्षा मिलेगी यह भी ध्यान में रखना चाहिए। इसके लिए दोनों का ही अविवाहित होना अनिवार्य है और दोनों का वयस्क होना अनिवार्य है। इसके साथ ही उन्होंने लंबा समय पति पत्नी के रूप में गुजारा हो। ऐसा न हो कि वह कुछ दिन साथ रहें और फिर किसी कारण से अलग हो जाएं।
और बार-बार इस बात को माननीय न्यायालय द्वारा बताया जा चुका है कि लिव इन संबंधों के बिगड़ने को बलात्कार की श्रेणी में नहीं लाया जा सकता है।
हालांकि घरेलू हिंसा अधिनियम में भी पुरुष साथी के विरुद्ध शिकायत की जा सकती है।
क्या वास्तव में लिव इन में आजादी है ?
आजादी का नारा देकर लिव इन में रहने की बात जो लोग करते हैं, क्या वह वास्तव में सुनिश्चित कर सकते हैं कि लड़कियों को या लड़कों को आजादी मिलती है ? और क्या उन्हें वह मानसिक सुरक्षा एवं संबल प्राप्त होता है, जो उन्हें परिवार के साथ मिलता है ? यह एक ऐसा प्रश्न है जिस पर लगातार बात होनी चाहिए क्योंकि लिव इन में रहने वाली लड़कियों की अंतिम मंजिल कहीं न कहीं उस युवक से शादी ही होती है। ऐसे तमाम मामले सामने आते हैं, जिसमें महिला यह शिकायत करती है कि उसके लिव इन पार्टनर ने उसे शादी एक नाम पर धोखा दिया।
यदि शादी ही करनी है, तो शादी से पहले एक साथ रहने का क्या लाभ है ? क्या साथी का मानसिक दोहन इस व्यवस्था के नाम पर नहीं हो रहा है ? और क्या शादी के नाम पर दबाव डालने को लेकर लड़कियों की हत्याएं अधिक नहीं हो रही हैं ?
यह प्रश्न इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि हाल ही में लिव इन साथियों की हत्या के कई मामले रिपोर्ट किए गए हैं। जिनमें थाणे वाला मामला सबसे भयानक और जघन्य है। श्रद्धा वॉकर की हत्या भी उसी रहने की आजादी का शिकार हुई थी।
जब आफताब के घरवालों ने शादी के लिए मना कर दिया था तो वह लिव इन में रहने चले गए थे, उसके बाद उसके पिता को उसकी लाश के टुकड़े ही देखने को मिले। मुम्बई से ही एक मामला फरवरी में सामने आया था जिसमें एक नर्स की हत्या मेघा तोरवी की हत्या उसके लिव इन पार्टनर हार्दिक शाह ने कर दी थी।
दिल्ली से 1 फरवरी को मामला सामने आया था, जिसमें रुकसाना नामक महिला की हत्या उसके लिव इन साथी सलमान ने कर दी थी और इतना ही नहीं उसके 5 वर्ष के बेटे की भी हत्या कर दी थी।
कुछ ही दिन पहले छत्तीसगढ़ से लिव इन में हत्या का बहुत ही चौंकाने वाला मामला सामने आया था, जिसमें एक अनाथ लड़की को दानिश खान उर्फ समीर हसन ने खुद को अविवाहित बताकर प्रेम जाल में फंसाया और उसके साथ लिव इन में रहा। फिर उसे असुरक्षित तरीके से गर्भपात की दवा खिलाता रहा और फिर उसकी अस्पताल में मृत्यु हो गई थी।
इसी तरह उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में प्रॉपर्टी डीलर अनवर खान के प्रेम जाल में फंसकर उसके साथ वंचित समाज की महिला अराधना उसके साथ लिव इन में रहने लगी थी। जब उसने शादी का दबाव डाला तो उस पर धर्म परिवर्तन का दबाव डाला गया, जिसके बाद आराधना ने आत्महत्या कर ली!
ऐसे न जाने कितने मामले रोज आते हैं, जिनमें लिव इन संबंधों या कहें विवाह से पूर्व यौन संबंधों को बनाए जाने को लेकर आत्महत्या की कहानियां हैं। जिनके चलते प्रतिभाएं असमय ही दम तोड़ देती हैं। जैसे मध्यप्रदेश में जबलपुर में संजना बरकड़े, जो बेसबाल की राष्ट्रीय खिलाड़ी थी। मगर उससे भी गलती हो गई और वह गलती थी, अब्दुल अंसारी से शायद प्यार करने की। क्योंकि उसकी आत्महत्या के बाद उसके पिता का कहना है कि अब्दुल अंसारी उनकी बेटी को कुछ वीडियो के चलते ब्लैकमेल कर रहा था और जब उनकी बेटी ने उसकी बात नहीं मानी तो उन वीडियो को सोशल मीडिया पर साझा कर दिया।
जिसके चलते संजना ने आत्महत्या कर ली !
विवाह से पूर्व यौन संबंधों को सहज बनाने का लाभ आखिर किसे हुआ ?
विवाह से पूर्व यौन संबंधों की आजादी का लाभ आखिर किसे हो रहा है ? क्या महिलाओं के जीवन की आजादी ही उनसे नहीं छिन रही है ? न जाने कितने मामले ऐसे आते हैं, कि जिनमें लड़की को लड़का कई प्रकार से ब्लैकमेल करके फायदा उठाता है और इतना ही नहीं लड़कियां भी लड़कों को इन संबंधों के आधार पर ब्लैकमेल करती हैं। रोज ही ऐसे किस्से समाचार की सुर्खियाँ बनते हैं।
प्रश्न यह फिर उठता है कि परिवार और प्यार को आमने सामने खड़ा करने का लाभ किसे हो रहा है? विवाह से होने वाली सामाजिक सुरक्षा को समाप्त कर, विवाह और यौन संबंधों को परस्पर दो अलग अलग बातें बताने से अंतत: कौन लाभान्वित हो रहा है ? परिवार को समाप्त कर बाजार में अट्टाहास कौन लगाता है ? ऐसे तमाम प्रश्नों के उत्तर खोजने का समय आ गया है, क्योंकि परिवार की टूटन का सबसे बड़ा नुकसान और कथित रहने की आजादी अर्थात लिव में रहने का नुकसान महिलाओं को ही हो रहा है ।
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