जाति की राजनीति ने बिहार के सारे उद्योगों को बंद कर दिया। वहां से प्रतिभा का पलायन हुआ और अभी भी हो रहा है। इसके बावजूद सत्तारूढ़ नेता एक बार फिर से जाति की राजनीति कर रहे हैं। यहां तक कि जाति की राजनीति करने के लिए ही उन नीतीश कुमार ने भाजपा से अलग होकर जंगलराज के प्रतीक राष्ट्रीय जनता दल को अपने साथ कर लिया, जिन्हें लोगों ने जंगलराज से मुक्ति पाने के लिए ही मुख्यमंत्री बनाया।
दशकों से बिहार में राजनीति की धुरी जाति के इर्द-गिर्द ही घूमती है। नेता जाति के जहर को फैलाकर वोट प्राप्त करते हैं। यही कारण है कि आज भी बिहार की गिनती पिछड़े राज्यों में होती है। जाति की राजनीति ने बिहार के सारे उद्योगों को बंद कर दिया। वहां से प्रतिभा का पलायन हुआ और अभी भी हो रहा है। इसके बावजूद सत्तारूढ़ नेता एक बार फिर से जाति की राजनीति कर रहे हैं। यहां तक कि जाति की राजनीति करने के लिए ही उन नीतीश कुमार ने भाजपा से अलग होकर जंगलराज के प्रतीक राष्ट्रीय जनता दल को अपने साथ कर लिया, जिन्हें लोगों ने जंगलराज से मुक्ति पाने के लिए ही मुख्यमंत्री बनाया।
अब वही नीतीश कुमार बिहार में जाति की गणना करवा रहे हैं। यह अलग बात है कि उस पर फिलहाल पटना उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है। न्यायालय ने यह भी कहा कि इस पर अगली सुनवाई 3 जुलाई, 2023 को होगी। न्यायालय के इस रुख से नीतीश कुमार, लालू यादव, तेजस्वी यादव जैसे अन्य जातिवादी नेता बेहद परेशान हैं। इसके बाद राज्य सरकार ने न्यायालय से निवेदन किया कि इस पर जल्दी सुनवाई की जाए। न्यायालय ने 9 मई को राज्य सरकार की अर्जी खारिज करते हुए कहा कि सुनवाई तीन जुलाई को ही होगी।
पटना उच्च न्यायालय का मानना है कि जाति आधारित सर्वेक्षण एक प्रकार की जनगणना है। जनगणना करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है। राज्य सरकार जाति आधारित गणना नहीं करा सकती है। यह मौलिक अधिकार से जुड़ा मसला है। सर्वेक्षण और जनगणना में अंतर होता है। सर्वेक्षण में किसी खास समूह की जानकारी एकत्रित कर उसका विश्लेषण किया जाता है, जबकि जनगणना में प्रत्येक व्यक्ति का विवरण इकट्ठा किया जाता है। जाति आधारित सर्वेक्षण एक प्रकार की जनगणना है और इसका अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है।
यह सब समाज को जाति के नाम पर बांटने के लिए हो रहा है। उन्होंने कहा कि 2014 से बिहार के लोगों ने जाति से ऊपर उठकर मतदान करना शुरू किया है। इस कारण जाति की राजनीति करने वाले सभी नेता परेशान हैं। ऐसे नेताओं को लग रहा है कि यदि समाज को बांटा नहीं गया तो 2024 में भी नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकना आसान नहीं होगा। यही कारण है कि बेमतलब में जाति की गणना कराने का प्रयास हो रहा है। – राजेश कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता
वहीं, नीतीश कुमार जाति गणना को सही ठहराने के लिए बार-बार 1931 की जातिगत जनगणना का उद्धरण देते हैं, परंतु उस समय बिहार में सिर्फ 83 जातियां थीं। 7 जनवरी, 2023 से प्रारंभ हुई जाति गणना में 214 जातियों का सर्वेक्षण हो रहा है। इसमें मुस्लिमों की भी 29 जातियां हैं। किन्नर को भी एक जाति माना गया है। पूर्व विधान पार्षद और स्तंभकार हरेंद्र प्रताप पांडेय कहते हैं, ‘‘जिस प्रकार 1990 में आरक्षण के पक्ष-विपक्ष में सामाजिक विभाजन और कटुता का दंश देश ने झेला था, वैसा ही माहौल फिर से बनाने की कोशिश हो रही है।’’
बता दें कि गत छह माह से महागठबंधन के नेताओं द्वारा लगातार जातीय उन्माद वाले वक्तव्य दिए जा रहे हैं। जाति गणना के प्रथम चरण के शुरू होते ही राज्य के शिक्षा मंत्री डॉ. चंद्रशेखर ने रामायण पर विवादित बयान दिया था। दूसरे चरण के प्रारंभ होने पर बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री के बिहार प्रवास पर बेतुके बयानों की होड़ लग गई। राज्य के दो मंत्रियों ने उनके कार्यक्रम को रोकने तक की धमकी तक दे डाली।
‘‘जिस प्रकार 1990 में आरक्षण के पक्ष-विपक्ष में सामाजिक विभाजन और कटुता का दंश देश ने झेला था, वैसा ही माहौल फिर से बनाने की कोशिश हो रही है।’’
– हरेंद्र प्रताप पांडेय , पूर्व विधान पार्षद और स्तंभकार
सामाजिक कार्यकर्ता राजेश कुमार कहते हैं कि यह सब समाज को जाति के नाम पर बांटने के लिए हो रहा है। उन्होंने कहा कि 2014 से बिहार के लोगों ने जाति से ऊपर उठकर मतदान करना शुरू किया है। इस कारण जाति की राजनीति करने वाले सभी नेता परेशान हैं। ऐसे नेताओं को लग रहा है कि यदि समाज को बांटा नहीं गया तो 2024 में भी नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकना आसान नहीं होगा। यही कारण है कि बेमतलब में जाति की गणना कराने का प्रयास हो रहा है।
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