जिस टाइगर रिजर्व में पैदल चलने की इजाजत नहीं हो, वाहन से उतरने की इजाजत नहीं हो, जिस बाघ संरक्षित जंगल में यदि कोई विभागीय अधिकारी इमारत बनवा दे तो वो मुकदमे झेले, उसी टाइगर रिजर्व में मुख्य मार्ग से 12 किलोमीटर भीतर एक मजार की इमारत बना दी जाती है और वहां लोगों का बेधड़क आना जाना हो रहा है।
जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के कालागढ़ फॉरेस्ट डिवीजन के 12 किमी भीतर मोरघट्टी में एक मजार है। उसकी तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल हो रही है, जिसमें मजार पर लोग बैठे हुए हैं, वहां माथा टेक रहे हैं। इस मजार में पक्के कमरे बने हुए हैं। बताया जाता है कि ये मजार कालू सय्यद बाबा के नाम की है, जिनके नाम की अल्मोड़ा, हल्द्वानी, कालाढूंगी सहित कई जगह 10 मजारें और भी हैं। यानी ये भी “फ्रेंचाइजी” मजार है। नहीं तो एक बाबा 10 जगह और इतनी दूर घने जंगल में कैसे दफनाया जा सकता है।
कालागढ़ फॉरेस्ट डिवीजन में मोरघट्टी की इस मजार को किसने पक्के निर्माण की इजाजत दी? क्या प्रशासन, क्या एनटीसीए, क्या एनजीटी से कोई अनुमति ली गई? उल्लेखनीय है एनटीसीए की अनुमति के बिना टाइगर रिजर्व में एक ईंट भी नहीं लगाई जा सकती है। पिछले साल एक नवनिर्मित भवन को इसलिए गिरा दिया गया था कि एनटीसीए ने एतराज जताया था और ये मामला सुर्खियों में रहा। कई आईएफएस और वन अधिकारी इस मामले में मुकदमे भी लड़ रहे हैं और विभागीय जांच का शिकार भी हो चुके हैं।
उत्तराखंड में मजार जिहाद, जमीन जिहाद को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक अभियान चलाया हुआ है। सरकारी जमीनों पर अवैध मजारे ध्वस्त की जा रही है। अभी तक 314 अवैध मजारें ध्वस्त कर 74 हेक्टेयर वन क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त भी किया गया है।
अभी और भी मजारें उत्तराखंड के वन क्षेत्र में मौजूद हैं। ये विषय भी जांच का है कि आखिर वन विभाग ने ये अवैध मजारें अपने वन क्षेत्र में और कहीं-कहीं रिजर्व फॉरेस्ट में बनने क्यों दी? डीएफओ और टाइगर रिजर्व के प्रशासनिक कुर्सियों में बैठे आईएफएस अधिकारी क्यों नहीं इसे रोक पाए, जबकि ये किसी भी जंगल में बाहरी इंसानों की दखलअंदाजी रोकने के लिए जिम्मेदार है। इनके रेंजर, बीट वाचर और अन्य कर्मी क्यों खामोश रहे। जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और राजा जी टाइगर रिजर्व में बाघों और अन्य जीव जंतुओं के शिकार की घटनाएं बराबर सुनते आए हैं तो क्या इन टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट में मजारों का बहाना लेकर कहीं “पोचर” तो नहीं जा रहे?
मजार और अतिक्रमण हटाओ अभियान में राजाजी टाइगर रिजर्व में एक मस्जिद भी चिन्हित की है। बड़ा सवाल यही है कि आखिर ये बन कैसे गई? बहरहाल कॉर्बेट टाइगर रिजर्व जो कि दुनिया में बाघों के घर के रूप में जाना जाता रहा है, वहां इस तरह की मजारें बन जाना क्या कोई बड़ा षड्यंत्र माना जा रहा है। कॉर्बेट के ही जंगल में रामनगर के पास भी आठ मजारें और चिन्हित हो गई हैं, जिसको लेकर कॉर्बेट प्रशासन सवालों के घेरे में हैं।
क्या कहते हैं कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक डॉ धीरज पांडे का कहना है कि धार्मिक स्थल चिन्हित किए गए हैं। उन्हें नोटिस दिया गया है, हम इस अतिक्रमण को हटाने के लिए कटिबद्ध हैं। उन्होंने ये भी कहा कि कॉर्बेट प्रशासन ने इन स्थलों तक आम आदमियों के जाने पर रोक लगाई हुई है।
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