लेखक – डा. सुभाष कुमार गौतम
(लेखक शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास से जुड़े कार्यकर्ता हैं)
पिछले दिनों देशभर में एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में हुए बदलावों को लेकर चर्चा जोरों पर रही। उस पर गौर किया जाए तो यह चर्चा नकारात्मक अधिक है। उसका केन्द्र बिंदु समस्या है ना की समाधान है। शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली देश की प्रतिष्ठित संस्था शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय महासचिव माननीय श्री अतुल भाई कोठारी जी का एक स्लोगन है- ‘‘देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलों’’ जो पाठ्यक्रम हम अभी तक पढ रहें थें या हमारे बच्चों को पढाया जा रहा था वह क्या था ? उसकी उपयोंगिता क्या थी ? आंग्रेजों के समय की शिक्षा व्यवस्था आज तक चली आ रही थी। इस विषय पर कई दशकों से काम चल रहा था। पाठ्यक्रम में किये गये बदलाव को लेकर वामपंथी विलाप चल रहा हैं, जिसका कोई मतलब नहीं है। जून 2022 में हुए बदलाव कोई एकाएक लागू नहीं किये गये इसकी नींव तीन वर्ष पूर्व करोना काल-2020 में ही पड गयी थी। भारत सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री श्री प्रकाश जावेडकर के अनुसार कोरोना महामारी के प्रकोप से विद्यार्थियों को अध्ययनकार्य में उत्पन्न हुई समस्याओं को दूर करने के दृष्टि एवं अनावश्यक बोझ को कम करने के उद्देश्य से ही एनसीईआरटी की पुस्तकों की विषयवस्तु को बदला गया है।
इससे पूर्व मौजूदा सरकार के कार्यकाल में दो बार वर्ष 2017 एवं 2018 में एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में बदलाव किया गया। 2017 में किये गये संशोधन को ‘समीक्षा’ करार दिया गया। इसी क्रम में 2018 में शिक्षा मंत्री प्रकाश जावडेकर के आग्रह पर एनसीईआरटी की पुस्तकों की विषयवस्तु में पुनः बदलाव किये गये जिसे ‘पाठ्यक्रम युक्तिकरण’ कहा गया जिसके तहत पुनः 20 प्रतिशत पाठ्यक्रम कम किया गया। यह सभी बदलाव मुख्य रूप से इतिहास, राजनीति विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान विषय में किये गये हैं।
2017 में हुई समीक्षा के तहत पाठ्यक्रम में मोदी सरकार द्वारा जनहित में जारी की गयी योजनाओं की जानकारी, प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा एवं उन सभी राष्ट्रवादी प्रतीकों को शामिल किया गया जिनके महत्वपूर्ण योगदान को देश ने भूला दिया था। पाठ्यक्रम समीक्षा पर बात करते हुए तत्कालीन एनसीईआरटी के तत्कालीन निदेशक हृशिकेश सेनापति ने कहा कि यह मात्र पाठक्रम को अद्यतन करने की प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य वर्तमान घटनाक्रम को शामिल करना तथा वस्तुएं एवं सेवा कर (जीएसटी) के संदर्भ में विद्यार्थियों को जानकारी प्रदान करना है।
यदि गौर किया जाए तो पाठ्यक्रम में किये गये यह सभी बदलावों राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का ही एक अनुक्रम है और यह स्वागत योग्य है। शिक्षा का उद्देश्य मात्र किताबी ज्ञान नहीं है अपितु इसका लक्ष्य मनुष्य का समग्र विकास है जो समाज को एक बेहतर नागरिक प्रदान करने की क्षमता रखती है। यह शिक्षा चरित्र निर्माण, आध्यात्मिक ज्ञान, नैतिक मूल्य और कौशल विकास के जरिए एक परिपक्व मनुष्य की रचना करने में समर्थ है।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है और समकालीन घटनाओं और परिवेश को देखकर किये गये बदलाव समसामयिक है और यह विषय को नवीनतम और रूचिकर बनाता है। एनसीईआरटी पाठ्यक्रम में किये गये परिवर्तन राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत आते हैं। जिन विद्वानों इससे पहले पाठ्यक्रम निर्माण किया वो शतप्रतिशत सही पाठ्यक्रम निर्माण किया इसकी क्या गारंटी है? उदाहरण के लिए पिछले दिनों मेरी फोन पर बात हो रही थी, आत्माराम सनातन धर्म महाविद्यालय दिल्ली में राजनीति विज्ञान के आचार्य डा. अमित सिंह जी से तो उन्हों ने बताया कि मेरी बेटी छठी कक्षा में है उसकी किताब में फ्रीडम स्ट्रगल पाठ्यक्रम में है, उसमें एक जगह ’इप्टा’ की कविता लगाई गई है, जिसका कोई संदर्भ नहीं है। अगर इस प्रकार की त्रुटियां पाठ्यक्रम में है तो उसे बदला जाना चाहिए। इतिहास की पुस्तकों में ज्ञान की बंबार्डिंग की गई है जिसकी भारतीय परिप्रेक्ष में कोई प्रसंगिकता नहीं है। इस प्रकार की गलतियों को बहुत पहले हटा दिया जाना चाहिए और इस पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए और न कोई विलाप होना चाहिए।
भारतीय ज्ञान परंपरा अपने आप में अद्भुत है जो अंग्रेजी शिक्षा की भांति मात्र किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं है वह ज्ञान के साथ आध्यात्म तथा चरित्र निर्माण और मनुष्य के सर्वांगीण विकास पर केन्द्रित है। आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति की चर्चा दुनिया के शैक्षिक संस्थानों में की जा रही है। उभरते भारत की चर्चा हो रही है, मैकाले ने शिक्षा में जिन चिजों को पिछडा कह कर नकार दिया था आज उसकी तरफ विश्व लौट रहा है। जिनमें योग, आध्यात्म, प्राकृतिक चिकित्सा, वैदिक गणित आदि शामिल हैं। माननीय अतुल कोठारीजी राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को भारत केन्द्रित शिक्षा की पीठिका के रूप में देखते हैं। उनका मानना है कि शैक्षिक परिवर्तन भारतीय परंपरा का अभिन्न अंग है। शिक्षा को समाज और राष्ट्रीय जीवन के अनुकूल होना चाहिए। एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में किया गया बदलाव एक सकारात्मक दिशा में किया गया प्रयास है। यह अवश्य ही नई पीढी के मन में आशा का संचार, नई संभावनाओं को जन्म देनेवाला, देशप्रेम की भावना जागृत करने तथा मां, मातृभूमि और मातृभाषा के प्रति सम्मान को जन्म देगा। गुलाम मानसिकता से मुक्त होंगे और देशहित में कार्य कर सकेंगे।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत पाठ्यक्रमों में बदलाव हमें आधुनिकतावाद और भौतिकतावाद के मायाजाल से मुक्त करने का काम करेंगी। आध्यात्मिकता, नैतिकता, मानवीयता, वैज्ञानिकता, अनुशासन और आत्मनिर्भता जैसे विशिष्ट मूल्यों एवं गुणों से परिपूर्ण कर नई चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करने में समर्थ है। रही बात इतिहास की पुस्तकों से विदेशी आक्रांताओं के विभत्स और अप्रासांगिक संदर्भों को हटाने पर विवाद की तो इसपर कोई विवाद नहीं होना चाहिए, जो विवाद पैदा कर रहे हैं उनकों सिर्फ विवाद के लिए ही जाना जाता रहा है। एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में किया गया यह समावेश निश्चित रूप से कल्याणकारी सिद्ध होगा। राष्ट्रवादी प्रतीको के प्रति सम्मान का भाव हमारे आत्मसम्मान और स्वाभिमान को मजबूती प्रदान करेगा। भारतीय ज्ञान परंपरा अक्षुण्ण है जिसके प्रभाव को देखते हुए लार्ड मैकाले देश की शिक्षा व्यवस्था पर ही सबसे पहले हमला किया और अंग्रेजी शिक्षा के नाम पर देश को मानसिक गुलामी की ओर धकेल दिया। भारतीय ज्ञान परंपरा ही एक मात्र ऐसी राह है जिसके जरिये हम अपनी संस्कृति और सभ्यता को वैश्विक स्तर पर पुनः स्थापित कर सकते हैं। साथ ही विश्व में जो उभरते भारत की चर्चा हो रही है उसे साकार करने का कार्य यह बदलाव करेगा और हम दुबारा 10 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बन सकेंगे ऐसा मेरा विश्वास है। इस बदलाव को राष्ट्र हित में स्वीकार किया जाना चाहिए। शिक्षा में भारतीयता के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए भविष्य में एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम तथा अन्य पाठ्यक्रमों में और भी बदलाव किए जाने चाहिए।
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