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उत्तराखंड की महान विभूतियां : आजादी का योद्धा, भवानी सिंह रावत

- आर्मी कैप्टन के परिवार से होने के बावजूद भवानी सिंह रावत में बचपन से ही ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आक्रोश था। चंद्रशेखर आजाद से था खास रिश्ता

by पंकज चौहान
May 6, 2023, 04:16 pm IST
in उत्तराखंड
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भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति संग्राम में अनेकों वीर हुतात्मा क्रांतिकारियों का बेहद महत्वपूर्ण योगदान रहा है। महान क्रांतिकारियों के अथक संघर्षों के कारण देश को अंग्रेजी हुकूमत से छुटकारा मिल पाया था। इन्हीं वीर क्रांतिकारियों में उत्तराखण्ड राज्य के महान क्रान्तिकारी भवानी सिंह रावत भी शामिल हैं। भवानी सिंह रावत का नाम उत्तराखण्ड में गढ़वाल के सबसे सक्रिय क्रांतिकारियों में गिना जाता है।

जन्म – 8 अक्टूबर 1910 ग्राम पंचूर, चौंदकोट, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड.
देहावसान – 6 मई 1986

भारत के महान हुतात्मा क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद के विश्वस्त साथी भवानी सिंह रावत का जन्म देवभूमि उत्तराखण्ड के पौड़ी गढ़वाल जिले के पंचुर गांव में 8 अक्टूबर सन 1910 के दिन हुआ था। उनके पिता नाथूसिंह ब्रिटिश सेना में कैप्टन थे, इसलिए उनका बचपन सेना की छावनियों में बीता था। लैंसडाउन आर्मी स्कूल में शिक्षा ग्रहण करते समय उन्होनें देखा था कि अंग्रेजों के बच्चे उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया करते हैं। आर्मी कैप्टन के परिवार से होने के बावजूद भवानी सिंह रावत में बचपन से ही ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आक्रोश था। प्रथम विश्व युद्ध में गढ़वाल राइफल्स में सराहनीय योगदान के लिए अंग्रेजी सरकार ने कैप्टन नाथूसिंह को दुगड्डा के पास 20 एकड़ भूमि पुरस्कार के तौर पर दी थी। जिसके बाद वह पौड़ी गढ़वाल के चौंदकोट स्थित अपने पुश्तैनी गांव पंचूर को छोड़कर सन 1927 में दुगड्डा के पास बस गए थे, उनके नाम से ही यहां का नाम नाथूपुर पड़ गया था।

भवानीसिंह की शिक्षा–दीक्षा चन्दौसी और हिन्दू कॉलेज, दिल्ली में हुई थी। उस समय वह क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद से बेहद प्रभावित थे। हिन्दू कॉलेज में पढ़ाई करते हुए सन 1927 में भवानीसिंह क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए थे। अब उन्होंने क्रांतिकारी विचारधारा को अपनाकर देश की आजादी को ही अपना लक्ष्य बना लिया था। वह पंजाब केसरी लाला लाजपत राय से भी मुलाकात कर चुके थे। वह क्रांतिकारियों की गुप्त गतिविधियों में सक्रिय तौर पर भाग लेने लगे थे। वह हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सभा के सक्रिय सदस्य बन गए थे। चंद्रशेखर आजाद ने सरदार भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव जैसे महान क्रांतिकारियों के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सभा का गठन किया था। इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य भारत को स्वतंत्रता दिलाना था। भवानी सिंह जुलाई सन 1930 को गाडोलिया स्टोर डकैती कांड के साथ दिल्ली में लॉर्ड इरविन की ट्रेन पर बम फेंकने वालों में शामिल थे।

निरंतर क्रांतिकारी घटनाओं के कारण पुलिस से बचने के लिए चंद्रशेखर आजाद सुरक्षित स्थान की तलाश में थे। वह अपने साथियों को अचूक निशानेबाज भी बनाना चाहते थे। भवानी सिंह रावत ने दुगड्डा के निकट अपने गांव नाथूपुर चलने का प्रस्ताव रखा। भवानी सिंह रावत का निमंत्रण स्वीकार कर चन्द्रशेखर आजाद अपने साथियों रामचंद्र, हजारीलाल, छैल बिहारी, विशंभर दयाल आदि के साथ उत्तराखण्ड के दुगड्डा आ गए थे। आजाद अपने इन चार साथियों के साथ दुगड्डा के नाथुपुर गांव में भवानी सिंह के घर पर रहे थे। एक सप्ताह तक भवानीसिंह रावत का घर ही चंद्रशेखर आजाद का ठिकाना हुआ करता था। भवानी सिंह ने अपने घर में आजाद का परिचय एक वन विभाग के कर्मचारी के रूप में दिया था। उन्होनें यह भी कहा था कि वह यहां घूमने और जंगल में शिकार करने आए हैं। यहां चन्द्रशेखर आजाद ने अपने साथियों को निशानेबाजी का गहन अभ्यास कराया था। दुगड्डा के पास साझासैंण के जंगल में शस्त्र प्रशिक्षण के समय आजाद ने साथियों के आग्रह पर एक वृक्ष के एक छोटे से पत्ते पर निशाना साध कर अपनी पिस्टल से गोलियां दागी थी। साथियों ने देखा कि पत्ता हिला तक नहीं वह समझते रहे कि निशाना चूक गया है। परंतु जब सभी पेड़ के पास पहुंचे तो आश्चर्यचकित रह गए कि गोलियां पत्ते को भेदती हुई पेड़ के तने में धंस गई थी।

क्रांतिकारी दल के एक सदस्य कैलाशपति पर ब्रिटिश हवालात में दबिश डाली गयी तो उसने सभी भेद उगल दिए। 19 फरवरी सन 1931 को चन्द्रशेखर आजाद इलाहाबाद में बलिदान हुए और 23 मार्च सन 1931 को भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव को फांसी दी गयी थी। घोर निराशा का माहौल में क्रांतिकारियों ने भवानी सिंह को मुम्बई भेजा, वहां वह मुसलमान के भेष में रह कर एक उर्दू पत्रिका का संपादन करते रहे। वहां पुलिस ने उन्हें 25 दिसंबर सन 1932 को गिरफ्तार कर लिया था, हालांकि ठोस सबूत नहीं मिलने के कारण अदालत ने उन्हें छोड़ दिया था। इस घटना के पश्चात अंग्रेज सरकार ने उनके पिता की पेंशन बंद कर दी थी।

भवानी सिंह अपने गांव नाथूपुरा लौट आए थे। दुगड्डा में वह चंद्रशेखर आजाद स्मारक के निर्माण कार्य में लग गए थे। 6 मई सन 1986 को उनका निधन हो गया। भवानी सिंह रावत की समाधि भी चन्द्रशेखर आजाद के प्रशिक्षण स्थल के पास ही बनाई गई है। उस पेड़ के अब अवशेष ही शेष बचे हैं। चंद्रशेखर आजाद की स्मृतियों को चिरस्थायी रखने के लिए अब वहां आजाद पार्क बनाया गया है। जिस पेड़ पर आजाद ने निशाना लगाया था स्मृति वृक्ष नाम दिया गया हैं। पार्क में महान हुतात्मा क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की आदमकद प्रतिमा लगी है। उसके पास आजाद की दुगड्डा यात्रा का वृत्तांत भी लिखा गया है। वन विभाग की ओर से आजाद के जीवन से जुड़ी घटनाओं को चित्रों के माध्यम से पार्क की दीवारों पर उकेरा गया है। भवानी सिंह रावत शहीद चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और यशपाल के घनिष्ट मित्रों में शामिल थे।उत्तराखंड से चंद्रशेखर आजाद के सहयोगियों में भवानी सिंह रावत के साथ इंद्रसिंह गढ़वाली और बच्चूलाल भी थे। प्रत्येक वर्ष 27 फरवरी को चन्द्रशेखर आजाद की पावन स्मृति में दुगड्डा में बलिदानी मेले का आयोजन होता है।

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