पाकिस्तान में साल 2022 में भी पहले की तरह अल्पसंख्यक वर्गों के विरुद्ध हिंसा कम होने की बजाय बढ़ी है। यह माना है वहां के अल्पसंख्यक आयोग ने। आयोग ने हाल ही में अपनी साल 2022 के मामलों पर अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक की है। रिपोर्ट बताती है कि वार्षिक मानवाधिकार रिपोर्ट में सबसे पहले तो पड़ोसी इस्लामी देश में गत वर्ष रही राजनीतिक तथा आर्थिक उठापटक का विश्लेषण करते हुए चिंता जताई गई है। इसके बाद इसमें पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा सहित मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़े कई और मामले प्रस्तुत किए गए हैं।
यह पाकिस्तान के ही अल्पसंख्यक आयोग का मानना है कि गत वर्षों की तुलना में साल 2022 में अल्पसंख्यकों पर हमलों में कमी की बजाय बढ़ोतरी ही देखी गई है। इतना ही नहीं, वहां आतंकवादी घटनाएं भी बढ़ी हैं। हैरानी की बात है कि रिपोर्ट में प्रस्तुत आंकड़े दिखाते हैं कि गत पांच वर्षों की तुलना करें तो पिछले साल इस प्रकार के मामले सबसे ज्यादा देखने में आए हैं।
पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून की आड़ में भी अल्पसंख्यकों को दमन का शिकार बनाया जाता रहा है। यहां तक कि एक 8 साल के हिन्दू बच्चे को इसी ‘अपराध’ में हिरासत में लिया गया था। कई लोगों को तो उन्मादी मुसलमानों की भीड़ ने पीट—पीटकर मार डाला।
गत एक ही वर्ष में इस्लामी देश में आतंकवादी वारदातों में 533 लोगों की मौत हुई है। इतना ही नहीं, पाकिस्तान के बलूचिस्तान सूबे में पुलिस रिकार्ड में गुमशुदगी के 2,210 मामले दर्ज हुए हैं। ध्यान रहे, ये वे आंकड़े हैं जो दर्ज किए गए हैं, इनके अलावा भी संभवत: ऐसे अनेक मामले हैं जो पुलिस ने दर्ज ही नहीं किए हैं। बलूचिस्तान में शायद ही कोई परिवार होगा जिसका कोई युवा बेटा पुलिस या फौज ने ‘अगवा’ नहीं किया होगा।
पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट से साफ है कि वर्तमान तथा पिछली, दोनों ही हुकूमतें संसद की सर्वोच्चता को व्यावहारिक तौर पर बनाए रखने में असफल रही हैं। इसके साथ ही, विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका में आपसी टकराव ने लोगों के मन से संस्थाओं के प्रति भरोसा खत्म करने का ही काम किया है। रिपोर्ट बताती है कि गुलामी के दौर के कानूनों की मदद से सरकार के विरुद्ध बगावत को कुचलने की कोशिशें की गईं, इस वजह से पूरे साल नागरिकों का दमन होता रहा।
आयोग ने बताया कि साल 2022 में पाकिस्तान में बड़ी संख्या में पत्रकारों और विपक्ष के नेताओं को गिरफ्तार करके यातनाएं देने के मामले देखे गए हैं। हैरानी की बात तो ये है कि गत वर्ष पाकिस्तान की संसद ने यातना को कानूनी तौर पर आपराधिक ठहराने वाला एक बिल पारित भी किया है। इस्लामी देश के पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया गया और उस पर वोटिंग के बाद उस सरकार को हटना पड़ा था।
इस पूरे घटनाक्रम में देश के तमाम हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन हुए थे, इसमें पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच तीखी झड़पें हुई थीं। इसे तक प्रदर्शन करने की आजादी के अधिकार का उल्लंघन बताया गया था। लेकिन असल में इस अधिकार की धज्जियां उड़ाकर रख दी गई थीं।
हमेशा की तरह, गत वर्ष भी पाकिस्तान में हिन्दू सहित सभी अल्पसंख्यकों पर दमन का चक्र चला। अहमदिया मुस्लिमों पर भी निशाने साधे गए। उन पर खतरा लगातार बना हुआ है। अहमदिया मुसलमानों की मस्जिदों, दरगाहों सहित लगभग 90 कब्रों को तोड़ा गया है। महिलाओं से बलात्कार की भी 4,226 घटनाएं दर्ज हुई हैं। हैरान की बात नहीं कि ऐसे अधिकांश मामले पंजाब सूबे में दर्ज किए गए हैं। इसकी वजह यह है कि यहां मजहबी उन्मादियों का एक बड़ा वर्ग है जो प्रशासन से कथित साठगांठ के बल पर अल्पसंख्यकों का जीना हराम किए हुए है।
पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून की आड़ में भी अल्पसंख्यकों को दमन का शिकार बनाया जाता रहा है। यहां तक कि एक 8 साल के हिन्दू बच्चे को इसी ‘अपराध’ में हिरासत में लिया गया था। कई लोगों को तो उन्मादी मुसलमानों की भीड़ ने पीट—पीटकर मार डाला।
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