देश-दुनिया में ऐसे लोग जो सिर्फ अंग्रेजी जानते हैं, लेकिन हिंदी या संस्कृत में धर्म ग्रंथों को पढ़ना चाहते हैं, उनके लिए गीता प्रेस हनुमान चालीसा, श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्भगवद्गीता आदि का प्रकाशन रोमन लिपि में करती है, जो अंग्रेजी अनुवाद के साथ भी उपलब्ध हैं।
पिछली शताब्दी में श्री जयदयाल गोयन्दका (1885-1964) ने गोरखपुर में गीता प्रेस की स्थापना कर सनातन धर्म के संरक्षण के लिए कुछ वैसा ही काम किया है, जैसा कि 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने किया था। शंकराचार्य ने सनातन धर्म के संरक्षण के लिए चार मठ स्थापित किए—शृंगेरी मठ (रामेश्वरम्), गोवर्धन मठ (पुरी), शारदा मठ (द्वारका) व ज्योतिर्मठ (बद्रिकाश्रम)। गोयन्दका जी भगवद्गीता को समर्पित थे और गीता प्रेस की स्थापना प्रधानत: गीता के शुद्ध पाठ के प्रकाशन के लिए हुई थी, जो उस समय उपलब्ध नहीं था। बीते 100 वर्षों में गीता प्रेस की पुस्तकों में सर्वाधिक लोकप्रिय श्रीमद्भगवद्गीता रही है। अब तक इसकी 16 करोड़ से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी है। इसके बाद गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित हनुमान चालीसा का स्थान है, जिसकी दस करोड़ से अधिक प्रतियां छपी हैं। तीसरे स्थान पर श्रीरामचरितमानस है, जिसकी तीन करोड़ से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं।
गोयन्दका जी का श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार से मिलन पिछली सदी में शायद आध्यात्मिक भारत की सबसे बड़ी घटना थी। फिर गीता प्रेस के साथ एक से बढ़कर एक महापुरुष जुड़ते गए जैसे स्वामी रामसुखदास, चिम्मनलाल गोस्वामी, स्वामी अखंडानंद सरस्वती (1911-1987) आदि।
लाभ कमाना उद्देश्य नहीं
पोद्दार जी ने न केवल ‘कल्याण’ पत्रिका का संपादन किया, बल्कि गीता प्रेस से सनातन धर्म के तमाम ग्रंथों श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण, पुराण, भागवत, गोस्वामी तुलसीदास आदि संतों के महाग्रंथ एवं श्री चैतन्य-चरितामृत जनसाधारण को हिंदी में नाम मात्र के मूल्य पर सुलभ कराए। गीता प्रेस ने प्राय: सभी प्रधान उपनिषदों को आदि शंकराचार्य के भाष्य सहित छापा है। गीता प्रेस ने पहली बार हिंदी अनुवाद के साथ संक्षिप्त महाभारत व संपूर्ण महाभारत का प्रकाशन किया। पोद्दार जी के जीवन काल में ही ऐसा समय आ गया था, जब हर संस्कारी पढ़े-लिखे हिंदीभाषी के घर कल्याण पत्रिका या गीता प्रेस से प्रकाशित कोई न कोई पुस्तक अवश्य मिलती थी। आज भी गीता प्रेस की पुस्तकों की मांग बढ़ रही है। इसका एक कारण यह भी है कि गीता प्रेस सनातन सेवा के लिए बनी एक संस्था है, न कि व्यावसायिक संस्था नहीं है। इसका उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है। गीता प्रेस किसी से दान भी नहीं लेती। 1926 में जब ‘कल्याण’ पत्रिका प्रारंभ हुई, तब से आज तक उसमें कभी विज्ञापन या पुस्तक समालोचना नहीं छपी है और ऐसा महात्मा गांधी की सम्मति से तय हुआ था।
भाईजी और गांधीजी
भारतीय पंचांग के अनुसार भाईजी श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार का जन्म आश्विन कृष्ण द्वादशी विक्रम संवत् 1949 को हुआ था। वहीं महात्मा गांधी (1869-1948) का जन्म आश्विन कृष्ण द्वादशी विक्रम संवत् 1926 को हुआ था। दोनों ही 23 वर्ष के आगे-पीछे इस संसार में आए और प्रभु के सौंपे कार्य को करके 23 वर्ष के आगे-पीछे इस संसार से विदा हो गए। दोनों में परस्पर प्रेम था। दोनों अपने-अपने क्षेत्र के शिखर तक पहुंचे। दोनों गोहत्या और कन्वर्जन के विरोधी थे। हालांकि गांधी जी ने देश विभाजन का समर्थन किया, जबकि भाईजी ने उसका विरोध किया था। कल्याण के माध्यम से गीता प्रेस सदैव से सामाजिक कुरीतियों का विरोध करती रही है।
72 करोड़ पुस्तकों का प्रकाशन
गीता प्रेस की स्थापना अप्रैल 1923 को हुई थी। तब से अब तक यह उपरोक्त आदि ग्रंथों के अलावा महिला एवं बालोपयोगी पुस्तकें, भक्तचरित्र, भजनमाला आदि का प्रकाशन करती आ रही है। इसने अभी तक लगभग 72 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं।इसके अतिरिक्त मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ का भी नियमित प्रकाशन हो रहा है। प्रतिवर्ष ‘कल्याण’ का एक विशेषांक प्रकाशित होता है, जिसकी पाठकों को प्रतीक्षा रहती है। इस साल यानी 97वें वर्ष का विशेषांक है ‘दैवीसम्पदा अंक’।
2021 में पुस्तक प्रेमियों और तीर्थ यात्रियों के लिए गीता प्रेस ने ‘अयोध्या-दर्शन’ का प्रकाशन किया। 128 पृष्ठों वाली इस पुस्तक में अनेक सुंदर रंगीन चित्रों के साथ अयोध्या के प्रमुख स्थानों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। साथ ही, इसमें अयोध्या के शास्त्रीय महत्व और इतिहास संबंधी जानकारी भी संक्षेप में दी गई है। इसमें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राम मंदिर मामले में दिए गए निर्णय और उसकी पृष्ठभूमि की भी संक्षेप में जानकारी दी गई है। गीता प्रेस की पुस्तकों एवं ‘कल्याण’ की बिक्री 21 निजी थोक दुकानों, लगभग 50 रेलवे स्टेशन-स्टॉलों और हजारों पुस्तक विक्रेताओं के माध्यम से होती है। इन पुस्तक विक्रेताओं को नए प्रकाशनों की जानकारी देने के लिए गीता प्रेस पिछले लगभग 9 वर्ष से एक मासिक पत्रिका निकाल रहा है- ‘युग-कल्याण’। गीता प्रेस के लगभग 1800 से अधिक प्रकाशनों में से लगभग 750 हिंदी और संस्कृत में हैं। शेष प्रकाशन मुख्यत: गुजराती, मराठी, तेलुगु, असमिया, बांग्ला, ओंडिया, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, उर्दू, अंग्रेजी आदि भारतीय भाषाओं में हैं। श्रीरामचरितमानस आदि कुछ पुस्तकें नेपाली भाषा में भी प्रकाशित हुई हैं।
अब रोमन लिपि में भी पुस्तकें
देश-दुनिया में ऐसे लोग जो सिर्फ अंग्रेजी जानते हैं, लेकिन हिंदी या संस्कृत में धर्म ग्रंथों को पढ़ना चाहते हैं, उनके लिए गीता प्रेस हनुमान चालीसा, श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्भगवद्गीता आदि का प्रकाशन रोमन लिपि में करती है, जो अंग्रेजी अनुवाद के साथ भी उपलब्ध हैं। रोमन लिपि में अब तक हनुमान चालीसा की लगभग साढ़े पांच लाख प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं, जबकि देवनागरी लिपि में इसकी 7.5 करोड़ से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। श्रीरामचरितमानस का सुन्दरकाण्ड रोमन लिपि में उपलब्ध है।
कोई आर्थिक संकट नहीं
सोशल मीडिया पर बहुधा कुछ शरारती तत्वों द्वारा यह अफवाह फैलाई जाती है कि गीता प्रेस बंद होने वाली है। परन्तु सच यह है कि गीता प्रेस पर कोई आर्थिक संकट नहीं है और यह संस्थान बंद होने वाला नहीं है। इसके बंद होने की अफवाहें इसलिए फैलाई जाती हैं, क्योंकि इसकी आड़ में लोग इसके नाम पर चंदा इकट्ठा कर अपनी जेबें भरते हैं, जबकि गीता प्रेस किसी से दान नहीं लेती। गीता प्रेस भारत ही नहीं, बल्कि विश्व की एक अग्रणी प्रकाशन संस्था है। तीन-चार वर्ष पहले ही इसने जर्मनी से 11 करोड़ रुपये की एक पुस्तक-बाइंडिंग मशीन और मार्च 2021 में जापान से लगभग 6 करोड़ रुपये में फोर कलर आफसेट प्रिंटिंग मशीन खरीदी थी। इस प्रकार, यहां पुस्तकों की उत्कृष्ट छपाई और बाइंडिंग का बराबर ध्यान रखा जाता है।
हर वर्ष 60 करोड़ पुस्तकों की बिक्री
गीता प्रेस के एक ट्रस्टी श्री देवी दयाल अग्रवाल ने दो वर्ष पूर्व 2021 में इस लेखक को बताया था कि प्रति वर्ष लगभग 60 करोड़ रुपये की पुस्तकों की बिक्री होती है। इसके अलावा, 4-5 करोड़ रुपये मूल्य की बिक्री ‘कल्याण’ की होती है। छपाई में प्रति वर्ष लगभग 4.5-5 हजार मीट्रिक टन कागज की खपत होती है। गीता प्रेस में लगभग 185 नियमित और लगभग 200 कर्मचारी ठेके पर काम करते हैं। ठेका कर्मचारियों को भी भविष्य निधि (पीएफ) आदि का लाभ मिलता है।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी रहे पाठक
1943 में जब डॉ. राजेंद्र प्रसाद बांकीपुर जेल में थे, तो वे अवकाश के समय गीता प्रेस की ही आध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ना पसंद करते थे और श्री भाईजी को अपना अध्यात्मिक गुरु मानते थे। (भाईजी: पावन स्मरण, द्वितीय संस्करण, गीता वाटिका प्रकाशन, गोरखपुर, पृष्ठ 233)
बाद में भारत के राष्ट्रपति के तौर पर वे 29 अप्रैल, 1955 को गीता प्रेस आए थे। उन्होंने प्रेस के मुख्य द्वार और लीला चित्र मंदिर का उद्घाटन किया था। इस मुख्य द्वार में भारतीय संस्कृति, धर्म एवं कला की गरिमा को संजोया गया है। इसके निर्माण में भारत की प्राचीन कलाओं और मंदिरों से प्रेरणा ली गई है। लीला चित्र मंदिर में भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण की लीलाओं के 684 मनमोहक चित्रों के अलावा प्रतिभावान चित्रकारों द्वारा हाथ से बनाए गए चित्रों का संग्रह है। यहां की दीवारों पर संपूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता और संतों के 700 से अधिक दोहे और वाणियां अंकित हैं।
‘भाईजी: पावन स्मरण’ पुस्तक में श्री चंद्रदीप जी ने लिखा है, ‘‘श्री भाईजी के निकट संपर्क में दो-ढाई वर्ष रहने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ। सन् 1936 के अगस्त-दर्शन पर मैं पांडिचेरी जाने की तैयारी करने लगा। उन दिनों गोरखपुर जिले में भयंकर बाढ़ आई हुई थी और श्री भाईजी सहायता कार्य में व्यस्त थे। रात दिन उसी कार्य में उनका सारा समय चला जाता था। उनसे मिलना-जुलना भी संभव नहीं होता था।’’ भाईजी ने गोरखपुर में कुष्ठाश्रम की स्थापना में भी भरपूर सहयोग दिया था। ‘गीता प्रेस-सेवादल’ आज भी दुर्भिक्ष, बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं में पीड़ितों के लिए यथासंभव सेवाकार्य करता है। कोरोना काल में इसने प्रवासी मजदूरों एवं गरीबों को प्रतिदिन भोजन के पैकेट वितरित किए। साथ ही राशन आदि के वितरण की भी व्यवस्था की। उत्तराखंड और गुजरात में भूकंप की विभीषिका के दौरान भी सेवा दल ने योगदान दिया। ऐसा ही केदारनाथ धाम बाढ़ प्रकोप में भी किया गया।
एप पर मुफ्त किताबें
कुछ वर्ष पहले गीता प्रेस से अलग एक संस्था गीता सेवा ट्रस्ट बनी। इसने गीता सेवा नाम से एक एप भी शुरू किया है, जिस पर गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित लगभग 250 पुस्तकें पढ़ी या सुनी जा सकती हैं। इस पर रामचरितमानस, हनुमान चालीसा के अतिरिक्त लगभग संपूर्ण तुलसी साहित्य, श्री जयदयाल गोयन्दका, भाईजी और स्वामी रामसुखदास की पुस्तकें और इन महानुभावों के 12,500 से अधिक प्रवचन उनकी मूल वाणी में सुने जा सकते हैं। इस एप पर गीता प्रेस की अन्य पुस्तकों को अपलोड करने का काम जारी है।
गीता प्रेस के सेवा कार्य
गीताभवन-स्वर्गाश्रम : यहां 1,000 से अधिक कमरे हैं। यहां नित्य सत्संग, साधकों के लिए आवास, मुफ्त आयुर्वेदिक चिकित्सा तथा कम मूल्य पर भोजन की व्यवस्था है। साधुओं को मुफ्त भोजन, वस्त्र आदि दिए जाते हैं।
गीताभवन-आयुर्वेद संस्थान: यहां आयुर्वेदिक औषधियों का उत्पादन होता है। स्वर्गाश्रम द्वारा कोलकाता, गोरखपुर, चुरू (राजस्थान), सूरत (गुजरात), गोरखपुर आदि स्थानों पर नि:शुल्क आयुर्वेदिक चिकित्सा की व्यवस्था है।
ऋषिकुल-ब्रह्मचर्य चुरू (राजस्थान): यहां ब्रह्मचारियों की नि:शुल्क शिक्षा, आवास, चिकित्सा आदि तथा अल्प मासिक शुल्क पर भोजन की व्यवस्था है।
गोबिंदभवन-कार्यालय, कोलकाता: यह संस्था का प्रधान कार्यालय है, जहां नित्य गीता पाठ और संत-महात्माओं के प्रवचन की व्यवस्था है। यहां गीता प्रेस की पुस्तकों, आयुर्वेदिक दवाओं, कपड़े, हिंसा रहित शुद्ध वस्तुओं की उचित मूल्य पर बिक्री आदि की भी व्यवस्था है। गीता प्रेस की कपड़े की दुकानें गोरखपुर, कानपुर सहित अन्य नगरों में हैं। संस्था के अन्य विभाग गीता-रामायण-परीक्षा-समिति, साधक संघ, नाम-जप-विभाग आदि हैं।
श्री जयदयाल जी गोयन्दका ने गोरखपुर में गीता प्रेस की स्थापना करके सनातन धर्म का जो प्रकाश फैलाया, वह निरंतर पूरे विश्व में बढ़ता जा रहा है। आज गीता प्रेस न केवल भारतवर्ष की, बल्कि संपूर्ण विश्व की एक अग्रणी प्रकाशन संस्था बन गई है। ऐसा नहीं कि इस दौरान गीता प्रेस के मार्ग में बधाएं नहीं आईं, परन्तु गोयन्दका जी का दृढ़ मत था कि अच्छा, पुण्य कार्य करने में ईश्वर भी सहायता करते हैं।
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