अतीक को यह भली-भांति मालूम था कि अगर कोई गवाही नहीं देगा तो उसे न्यायालय से सजा नहीं होगी और वह हमेशा की तरह दनदनाता घूमता रहेगा। उसके खिलाफ कई बार मुकदमे लिखे गए और वह हर बार जमानत पर छूट कर बाहर आया। उसके बाद वह गवाहों, यहां तक कि वादी को भी डरा-धमकाकर या लालच देकर न्यायालय में पक्षद्रोही करा कर फैसलों से बचने लगा।
अतीक विशुद्ध अपराधी था। अपराध उसके चरित्र में था। उसमें नेता के कोई गुण नहीं थे। वह पुलिस से बचने के लिए राजनीति में आया था। लोगों ने और भाग्य ने उसका साथ दिया। वह पांच बार विधायक रहा। विधायक बनने के बाद उसने माफियागीरी को और आगे बढ़ाया, क्योंकि गुंडगर्दी करना उसका मूल स्वभाव था। सपा सरकार में उसकी खूब हनक रहती थी। पुलिस सेवा में रहते हुए कई बार अतीक पर कार्रवाई करने का जिम्मा मुझे सौंपा गया।
1996 में थाना खुल्दाबाद क्षेत्र में वाहन ओवरटेक करने को लेकर अशोक साहू और अशरफ में कुछ झगड़ा हो गया था। उसके बाद अतीक ने अशोक साहू की हत्या करवा दी। इस मुकदमे की विवेचना को अतीक ने अपने प्रभाव से सीबीसीआईडी में भिजवा दिया। जब विवेचना सीबीसीआईडी को चली गई तो उसकी तुरंत गिरफ्तारी का खतरा टल गया। इसी बीच, एक इंस्पेक्टर धीरेंद्र राय का भी तबादला सीबीसीआईडी में हो गया। सीबीसीआईडी ने अशोक साहू हत्याकांड की विवेचना उन्हें दी। धीरेंद्र राय ने पुख्ता साक्ष्य जुटाए और अतीक अहमद की गिरफ्तारी की तैयारी कर ली गई।
तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रजनीकांत मिश्र ने मुझे बुलवाया। मैं उस समय प्रयागराज जनपद में पुलिस अधीक्षक (यमुनापार) के पद पर तैनात था। उन्होंने मुझसे कहा कि अतीक की गिरफ्तारी होनी है। मैंने कहा कि गिरफ्तारी हो जाएगी। फिर योजना यह बनी कि पुलिस लाइन में फोर्स एकत्र करने के बजाय वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के आवास से ही फोर्स बुला ली जाए। मैं, इंस्पेक्टर धीरेंद्र राय और तत्कालीन पुलिस अधीक्षक (नगर) अभय कुमार प्रसाद जब अतीक के कार्यालय पहुंचे, तो वह कुर्ता और लुंगी पहने बैठा हुआ था। उसको बताया गया कि उसे गिरफ्तार कर लिया गया है। उसे टांग कर गाड़ी में बैठाया गया। अगले दिन उसे जेल भेज दिया गया।
अतीक को भली-भांति मालूम था कि कोई गवाही नहीं देगा तो उसे न्यायालय से सजा नहीं होगी और वह हमेशा की तरह दनदनाता घूमता रहेगा। उस पर कई बार मुकदमे हुए, हर बार वह जमानत पर छूट गया
अतीक को यह भली-भांति मालूम था कि अगर कोई गवाही नहीं देगा तो उसे न्यायालय से सजा नहीं होगी और वह हमेशा की तरह दनदनाता घूमता रहेगा। उसके खिलाफ कई बार मुकदमे लिखे गए और वह हर बार जमानत पर छूट कर बाहर आया। उसके बाद वह गवाहों, यहां तक कि वादी को भी डरा-धमकाकर या लालच देकर न्यायालय में पक्षद्रोही करा कर फैसलों से बचने लगा। जावेद इकबाल शहर पश्चिमी से अतीक के खिलाफ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे। 2001 के महाकुंभ में जिस दिन बसंत पंचमी का स्नान था, उसी दिन जावेद इकबाल पर हमला हुआ। उनका निजी सुरक्षार्मी मारा गया। जावेद इकबाल ने मुकदमा लिखवाया। उसके बाद अतीक उस मुकदमे में जेल गया। बाद में ट्रायल के दौरान उस मुकदमे के वादी जावेद इकबाल ही न्यायालय में पक्षद्रोही हो गए।
इसी तरह का एक और मामला याद आता है। एक पुलिस इंस्पेक्टर ने अतीक के खिलाफ गैंगस्टर मुकदमा कायम किया था। जब उस मुकदमे के ट्रायल में उन्हें न्यायालय ने गवाही के लिए बुलाया, तो उन्होंने गवाही दी कि उन्होंने गैंगस्टर एक्ट का मुकदमा अधिकारियों के दबाव में कायम किया था। उस मुकदमे से भी अतीक बरी हो गया। इस तरह, उसके खिलाफ मुकदमे तो लिखे जाते थे, लेकिन वह छूट जाता था। बसपा विधायक राजू पाल के मुकदमे में भी उसने गवाहों को डरा-धमका कर न्यायालय में पक्षद्रोही करा लिया था।
अतीक की केवल दो कम्पनी पंजीकृत थी, बाकी सब फर्जी कम्पनियां थीं। उन सब कम्पनियों के खाते से पैसे का लेन-देन किया जाता था। खातों में काफी बड़े पैमाने पर पैसों का लेन-देन हुआ था। उस मामले में एफआईआर दर्ज की गई। लेकिन माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सभी 113 मुकदमे रद्द करने का आदेश दिया। इसके बाद उस फैसले को चुनौती देने के लिए उच्चतम न्यायालय जाने की तैयारी की गई, तब तक 2003 में उत्तर प्रदेश में सरकार बदल गई। अतीक उन 113 मुकदमों से साफ बच गया।
2003 में जब अतीक जेल में था, तब मैं प्रयागराज जनपद में पुलिस अधीक्षक (नगर) के पद पर तैनात था। अतीक जनपद पेशी पर न्यायालय आया था। उसी समय उस पर बम से हमला हुआ। वह जमीन पर गिर पड़ा। उसके ललाट पर कुछ खरोंचें आई थीं। उसे स्वरुप रानी नेहरू चिकित्सालय की इमरजेंसी में ले जाया गया। हालांकि चोट ज्यादा लगी नहीं थी। मामूली उपचार के बाद इमरजेंसी से बाहर निकल कर अतीक ने आरोप लगाया कि मैंने उसकी हत्या की साजिश रची थी। उस पर बम से हमला कराने का षड्यंत्र मैंने रचा था। बहरहाल, जांच हुई तो अखलाक नाम का व्यक्ति पकड़ा गया। उसी ने बम से अतीक पर हमला किया था।
अतीक से उसकी पुरानी दुश्मनी थी। जब भी कार्रवाई होती थी, अतीक अक्सर मुझ पर आरोप लगाता रहता था कि लालजी शुक्ल से जान का खतरा है। उसकी वजह है कि जब मैं पुलिस अधीक्षक (नगर) था, तब मैंने उसके खिलाफ कार्रवाई की थी। उसका चकिया स्थित कार्यालय मेरी अगुआई में ध्वस्त किया गया। बाद में जब मैं प्रयागराज जनपद का पुलिस कप्तान रहा, तब भी उसके खिलाफ मैंने कार्रवाई की थी। उसी दौरान प्रयागराज जनपद में अतीक के खिलाफ 113 एफआईआर दर्ज की गई। अतीक की केवल दो कम्पनी पंजीकृत थी, बाकी सब फर्जी कम्पनियां थीं। उन सब कम्पनियों के खाते से पैसे का लेन-देन किया जाता था। खातों में काफी बड़े पैमाने पर पैसों का लेन-देन हुआ था। उस मामले में एफआईआर दर्ज की गई। लेकिन माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सभी 113 मुकदमे रद्द करने का आदेश दिया। इसके बाद उस फैसले को चुनौती देने के लिए उच्चतम न्यायालय जाने की तैयारी की गई, तब तक 2003 में उत्तर प्रदेश में सरकार बदल गई। अतीक उन 113 मुकदमों से साफ बच गया।
अतीक को पैसे की बहुत भूख थी। उसे पढ़ाई-लिखाई से कोई मतलब नहीं था। लोगों को डराना-धमकाना, जमीन कब्जा करना, टेंडर पूल कराना, यही सब उसका व्यवसाय था। ईमानदारी से उसके खिलाफ मुकदमे लिखे जाते तो न जाने कितने मुकदमे होते। बहुत से अभियोग तो उसके खिलाफ पंजीकृत ही नहीं हुए। रेलवे में स्क्रैप के ठेके में उसका एकछत्र कब्जा था। उसके लोग ही टेंडर डालते थे और टेंडर पूल कराते थे। कहां-कहां जमीन कब्जा हो सकती है, उसके लोग शहर में इसी फिराक में रहते थे। सूरजकली की जमीन उसने इसी तरह से कब्जाई और समिति के नाम जमीन कर प्लॉट काटे। उसके पति का आज तक पता नहीं चला। लेकिन सूरजकली बहुत बहादुर महिला हैं। वह पूरे दमखम से लड़ीं।
2002 में सूरजकली के मुकदमे में विधायक निवास से अतीक को गिरफ्तार कर प्रयागराज लाया गया था। उसी मुकदमे में उस पर गैंगस्टर एक्ट लगाया गया था। लंबे समय तक अतीक को जेल में रहना पड़ा था। एक महिला उर्मिला थी। उसकी जमीन भी अतीक ने इसी तरह कब्जा ली थी। शाहगंज थाना क्षेत्र स्थित बंगाल होटल, सिविल लाइंस में रायल होटल, एक गैरेज, पैलेस सिनेमा हाल के पीछे की जमीन कब्जाने के मामले में भी प्राथमिकी दर्ज हुई थी। उस समय सपा सत्ता में थी। एक गांधी परिवार है, जिन लोगों का पैलेस सिनेमा हॉल है। उनकी जमीन अतीक ने कब्जा ली। उन लोगों ने सोनिया गांधी को पत्र लिखा था, तब वह पीछे हटा।
(सुनील राय से बातचीत के आधार पर)
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