बिहार में इस बार का रमजान काफी चर्चा में रहा। महागठबंधन के नेताओं ने एआईएमआईएम के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए इफ्तार पार्टी की झड़ी लगा दी। इसी क्रम में रामनवमी शोभायात्रा पर हुए हमलों का कसूरवार उलटे हिंदुओं को ही ठहराया गया। और हद तो तब हो गई जब अलविदा जुम्मे की नमाज अता करने के बाद मुसलमानों ने अपराधी अतीक अहमद और उसके भाई असरफ अहमद के समर्थन में नारे लगाते हुए उन्हें शहीद बता दिया।
इस बार रमजान 22 मार्च से प्रारंभ हुआ। यह दिन बिहार दिवस भी है। बिहार दिवस की आपाधापी और वित्तीय वर्ष की समाप्ति के कारण इफ्तार पार्टी कम हुई। रामनवमी शोभायात्रा पर जगह-जगह हमले हुए। बिहार में 5 स्थानों पर दंगे हुए। बिहार के 4 जिलों में हिंदुओं प्रत्यक्षतः हमले हुए। 30 मार्च को सासाराम में रामनवमी शोभायात्रा में शामिल लड़कों के हाथ तोड़े गए। उसके बाद स्थिति बिगड़ गई। दूसरे जुम्मे की नमाज के बाद रोहतास के शेरगंज मुहल्ले में बम विस्फोट किया गया और इसके बाद हालात बिगड़ते चले गए। मदीना मस्जिद परिसर में बम बनाते 8 मुस्लिम लड़के घायल हुए। लेकिन इसकी चर्चा भी नहीं हुई। उलटे राजद के रफीगंज से विधायक नेहालुद्दीन ने 3 अप्रैल को बेतुका बयान दिया कि मुस्लिम अपनी सुरक्षा के लिए बम बना रहे थे। जेहादियों की गोलीबारी में नासरीगंज के अनियार गांव का रहने वाला चितरंजन चैधरी का सुपुत्र राजा चैधरी को अपनी जान गवानी पड़ी। इसी प्रकार मुख्यमंत्री के गृह जिले नालंदा के बिहार शरीफ में रामनवमी शोभायात्रा पर हमले हुए। इसमें भी एक हिंदू को अपनी जान गवानी पड़ी। मुजफ्फरपुर, गया और भागलपुर के नवगछिया में भी शरारती तत्वों की हिंदू श्रद्धालुओं के साथ झड़प हुई। जब कार्रवाई की बात आई तो चुन-चुनकर हिंदुओं को कसूरवार ठहराया गया। बिहार शरीफ हंगामे का सूत्रधार बजरंग दल के जिला संयोजक कुंदन कुमार को बताया गया। इस मामले में 5 और हिंदुओं मनीष कुमार, तुषार कुमार तांती, धर्मेंद्र मेहता, भूपेंद्र सिंह राणा उर्फ चंदन सिंह और निरंजन सिंह को भी गिरफ्तार किया गया। बिहार में इस घटना के विरोध में सभी जिला मुख्यालयों पर हिंदुओं ने धरने दिए और पुलिस द्वारा एकतरफा की गई कार्रवाई को गलत बताया गया।
पटना में जुम्मे की नमाज के बाद अपराधी माफिया अतीक अहमद के समर्थन में मुसलमानों ने लगाए नारे।
"अतीक अहमद अमर रहे" के नारे लगे।
"योगी-मोदी मुर्दाबाद" के भी लगे नारे। pic.twitter.com/mUKZ24z1ie
— Panchjanya (@epanchjanya) April 21, 2023
बिहार में राजनैतिक दलों द्वारा मुस्लिम वोटरों को रिझाने के लिए लगातार इफ्तार पार्टी का दौर देखने को मिला। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा 07 अप्रैल को इफ्तार पार्टी का जो सिलसिला प्रारंभ हुआ वो लगातार जारी रहा। एक अनुमान के अनुसार बिहार में 500 से अधिक इफ्तार का आयोजन महागठबंधन के नेताओं द्वारा किया गया। पटना में मुख्यमंत्री ने 07 अप्रैल को अपने आवास पर और जदयू द्वारा 08 अप्रैल को हज भवन में इफ्तार पार्टी का आयोजन किया गया। राजद द्वारा 09 अप्रैल को पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर इफ्तार का आयोजन किया गया। पहले तो कांग्रेस ने इफ्तार पार्टी का विरोध किया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आजमी बारी ने सोशल मीडिया पर विरोध करते हुए लिखा कि मुसलमानों के जख्म पर नमक रखने की जरूरत है न कि इफ्तार की। देश की एक बड़ी संस्था इमारत सरिया ने भी मुख्यमंत्री की इफ्तार पार्टी का विरोध किया। लेकिन बाद में कांग्रेस पार्टी और मुस्लिम संस्थाओं द्वारा भी इफ्तार पार्टी दी गई। 19 अप्रैल को पटना के सदाकत आश्रम में प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह द्वारा दावत-ए-इफ्तार का आयोजन किया गया। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी इफ्तार पार्टी का आयोजन किया। भाजपा ने इफ्तार पार्टी का जमकर विरोध किया। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता निखिल आनंद ने कहा कि बिहार दंगों की आग में झुलस रहा है और नीतीश कुमार मौलाना टोपी पहनकर इफ्तार पार्टी का आयोजन कर रहे हैं। यह पूरी तरह अंधेर नगरी चैपट राजा की कहावत को दर्शाता है।
बिहार में तुष्टिकरण की चरम सीमा अलविदा जुम्मा को देखने को मिली। पटना रेलवे जंक्शन के समीप स्थित जामा मस्जिद में नमाज के बाद कुछ लोगों ने अतीक के समर्थन में नारेबाजी की। जब कुछ यू-ट्युबर्स ने उत्तर प्रदेश के आतंकी अतीक अहमद और असरफ के शूटआउट पर राय मांगी तो कुछ लोग अतीक अहमद अमर रहे के नारे लगाने लगे। कुछ लोगों ने मोदी-योगी मुर्दाबाद के नारे भी लगाए। इस संदर्भ में भाजपा के वरिष्ठ नेता और अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष तुफैल अहमद कादरी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि आज बिहार की धरती पर अतीक के नाम पर जो नारे लग रहे हैं, वह कहीं न कहीं महागठबंधन और नेतृत्व कर्ता की अक्षमता को दिखाता है। जब तक बिहार के अगुआ एनडीए में थे तबतक बिहार में इस तरह के नारे नहीं लगे। आखिर अब इनकी क्या मजबूरी है ? क्या बिहार की राजनीति महागठबंधन के कब्जे से बाहर चीन, पाकिस्तान और राष्ट्रविरोधी वामपंथियों के हवाले है।
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