‘‘भारत सुई की नोक जितनी जमीन पर भी अतिक्रमण स्वीकार नहीं करेगा।’’ उनकी इस बात को हालिया चीनी गतिविधियों के परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है। गृह मंत्री के इस दौरे को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताते हुए चीन ने धमकी दी थी कि यह दौरा शांति के लिए खतरा पैदा कर सकता है। बीजिंग में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक प्रेस वार्ता में दावा किया
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह 10 अप्रैल को दो दिवसीय दौरे पर अरुणाचल प्रदेश गए थे। वहां एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, ‘‘भारत सुई की नोक जितनी जमीन पर भी अतिक्रमण स्वीकार नहीं करेगा।’’ उनकी इस बात को हालिया चीनी गतिविधियों के परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है। गृह मंत्री के इस दौरे को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताते हुए चीन ने धमकी दी थी कि यह दौरा शांति के लिए खतरा पैदा कर सकता है। बीजिंग में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक प्रेस वार्ता में दावा किया कि ‘अरुणाचल चीन का हिस्सा है और वहां भारत के किसी अधिकारी और नेता का दौरा हमारी संप्रभुता का उल्लंघन है’। चीन के इस बयान के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, ‘‘अरुणाचल भारत का अटूट अंग था, है और रहेगा।’’
कड़े जवाब के अलावा भारत ने चीन और पाकिस्तान को चुभने वाली दो और घोषणाएं की हैं। आगामी 26 से 28 अप्रैल को लद्दाख की राजधानी लेह में यूथ-20 और 22 से 24 मई को जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में जी-20 से जुड़े दो कार्यक्रम होंगे। यूथ-20 से जुड़ा एक कार्यक्रम अरुणाचल की राजधानी ईटानगर में 26 मार्च को हो चुका है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 की वापसी के बाद यह बहुत महत्वपूर्ण गतिविधि है। चीन और पाकिस्तान इन बैठकों के आयोजन का विरोध कर रहे हैं। दोनों देश इन क्षेत्रों को विवादास्पद मानते हैं। दूसरी तरफ, वे जिस आर्थिक सहयोग के गलियारे (सीपीईसी) पर काम कर रहे हैं, वह जम्मू-कश्मीर के पाकिस्तान अधिक्रांत क्षेत्र (पीओजेके) से होकर गुजरता है। इस इलाके में चीनी सेना भी तैनात है।
जी-20 की चुप्पी
पाकिस्तान जी-20 का सदस्य नहीं है और उसे इन बैठकों में विशेष अतिथि के रूप में आने का निमंत्रण भी नहीं दिया गया है, पर चीन जी-20 का सदस्य है। गत 26 मार्च को ईटानगर में हुए यूथ-20 समारोह में चीन ने भाग नहीं लिया। संभावना यह भी है कि वह लेह और श्रीनगर के कार्यक्रमों में हिस्सा नहीं लेगा। हालांकि पाकिस्तान और चीन पिछले एक साल से इन कार्यक्रमों को लेकर टिप्पणियां करते रहे हैं, पर जी-20 के सदस्य देशों ने अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है।
जी-20 के सदस्य देशों में से तीन तुर्की, सऊदी अरब और इंडोनेशिया इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के सदस्य भी हैं। कश्मीर से अनुच्छेद-370 की वापसी के बाद ओआईसी ने भारतीय निर्णय की आलोचना की थी। पिछले एक साल में पाकिस्तान ने दूसरे देशों के अलावा इन तीन देशों में भी जाकर श्रीनगर की बैठक का विरोध किया है। हालांकि इन कार्यक्रमों के निमंत्रण जनवरी में ही भेज दिए गए थे, पर ये देश अपने प्रतिनिधि भेजेंगे या नहीं, यह अब देखना है। पर्यवेक्षकों का अनुमान है कि चूंकि अगले महीने तुर्की में चुनाव हो रहे हैं, इसलिए संभव है कि इस बहाने वह अनुपस्थित रहे। उधर इंडोनेशिया और सऊदी अरब ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है।
विदेश-नीति की भूमिका
जी-20 के कार्यक्रम केवल अरुणाचल और कश्मीर या लद्दाख में ही नहीं हो रहे हैं, बल्कि देश के 28 राज्यों में कोई न कोई कार्यक्रम हो रहा है। जी-20 की अध्यक्षता के साथ भारतीय विदेश-नीति की दो तरह की भूमिकाएं उजागर हो रही हैं। एक, वैश्विक-राजनीति में बढ़ते मतभेदों को दूर करने की कोशिश, और दूसरे अपने स्वतंत्र दृष्टिकोण को व्यक्त करना। यह बात रेखांकित हो रही है कि भारत अब किसी की धौंस में आने वाला देश नहीं है।
ईटानगर के बाद अब 26 से 28 अप्रैल तक लेह और उसके बाद श्रीनगर में जी-20 की बैठक कराने की घोषणा से चीन और पाकिस्तान, दोनों देशों में तिलमिलाहट है। श्रीनगर में 22 से 24 मई को आयोजित होने वाला कार्यक्रम काफी विशाल होगा, जिसका कूटनीतिक असर भी होगा। यह ऐसा मौका है, जब भारत दुनिया के सामने बदले हुए कश्मीर को प्रस्तुत करेगा। साथ ही, दुष्प्रचार के उस गुब्बारे की हवा निकालेगा, जिसमें अरसे से हवा भरी जा रही है कि ‘कश्मीर में हालात खराब हैं’। यह चीन और पाकिस्तान के दावों को खारिज करने का एक मौका है। लेह की बैठक खासतौर से उस चीन को एक करारा जवाब है, जिसने पूर्वी लद्दाख में गतिरोध बनाकर रखा है।
भारत का पक्ष दमदार
अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 की वापसी के बाद ही नहीं, स्वतंत्रता के बाद जम्मू-कश्मीर में होने वाला यह सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय आयोजन है। श्रीनगर की बैठक को रोकने के लिए पाकिस्तान लगातार जी-20 में शामिल अपने सहयोगी देशों जैसे सऊदी अरब, तुर्की और चीन के साथ दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। शायद चीनी प्रतिक्रिया देखने के लिए ही ईटानगर के कार्यक्रम की मीडिया कवरेज नहीं हुई। चीनी प्रतिनिधि उस बैठक में शामिल नहीं हुए। साथ ही, उस बैठक के एक हफ्ते बाद चीन ने अरुणाचल के 11 स्थानों के ‘नए नामों’ की घोषणा की।
चीन की इस हरकत के बाद भारत ने 7 अप्रैल को जी-20 कैलेंडर को अपडेट करके घोषणा की कि श्रीनगर और लेह में तय तारीखों में ही यूथ-20 की बैठक होगी। जाहिर है कि अरुणाचल की तरह चीन इन बैठकों से भी दूरी बनाएगा। उम्मीद है कि ईटानगर के विपरीत श्रीनगर और लेह के कार्यक्रमों की मीडिया कवरेज जोरदार होगी ताकि दुनिया के सामने संदेश जाए। ईटानगर की बैठक में लगभग 50 प्रतिनिधि शामिल हुए थे, जबकि श्रीनगर में उनकी संख्या अधिक होगी। लेह में लगभग 80 प्रतिनिधियों के शामिल होने की संभावना है।
जी-20 की अध्यक्षता के साथ भारतीय विदेश-नीति की दो भूमिकाएं उजागर हो रही हैं। वैश्विक राजनीति में बढ़ते मतभेदों को दूर करने की कोशिश और अपने स्वतंत्र दृष्टिकोण को व्यक्त करना
विदेशियों की यात्राएं
पर्यवेक्षकों का अनुमान है कि श्रीनगर की बैठक जम्मू-कश्मीर को राजनीतिक मानचित्र पर प्रतिष्ठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसके पहले कई देशों के नेता और प्रतिनिधि यहां की यात्राए कर चुके हैं। इनमें अमेरिका के विशेष दूत रॉबर्ट ब्लैकविल की श्रीनगर यात्रा उल्लेखनीय है। वे सियाचिन भी गए थे। लेकिन उन्होंने काफी पहले दिसंबर 2002 में श्रीनगर की यात्रा की थी।
अनुच्छेद-370 के हटने के बाद यूरोपीय संघ (ईयू) के 23 सांसदों का प्रतिनिधिमंडल भी कश्मीर के दो दिन के दौरे पर आया था। वह दौरा देश की आंतरिक राजनीति का भी शिकार हुआ। कुछ विरोधी दलों ने कहा कि ज्यादातर यूरोपीय सांसद दक्षिणपंथी पार्टियों के प्रतिनिधि हैं। वे व्यक्तिगत आधार पर आए थे, ईयू या अपने देश के प्रतिनिधि के रूप में नहीं। अब जो होने जा रहा है, वह आधिकारिक कार्यक्रम है, जिसका आयोजन बड़े स्तर पर किया जा रहा है। इतने बड़े स्तर पर कोई कार्यक्रम पहली बार हो रहा है। इतना ही नहीं, पिछले महीने अमेरिका ने औपचारिक रूप से कहा था कि भारत और चीन के बीच मैकमोहन रेखा को हम अंतरराष्ट्रीय सीमा मानते हैं।
अमेरिकी सीनेट में लाए गए एक प्रस्ताव में अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न हिस्सा बताते हुए चीन की आक्रामकता के खिलाफ भारत को समर्थन दोहराया गया। इस प्रस्ताव को दोनों प्रमुख दलों डेमोक्रेट व रिपब्लिकन का समर्थन हासिल था। केवल अमेरिका की बात नहीं है। इस मामले में पाकिस्तान को पश्चिम एशिया के देशों का समर्थन भी नहीं मिल पाया है। इन देशों के कारोबारी, पर्यटक और राजनयिक लगातार कश्मीर यात्रा पर आ रहे हैं। यूएई के कुछ निवेशकों ने यहां विकास कार्य भी शुरू कर दिया है।
इन बैठकों का जितना सांस्कृतिक महत्व है, उससे ज्यादा इनका कूटनीतिक असर होगा। सुरक्षा के लिहाज से कुछ चुनौतियां भी हैं। कुछ समूहों की इच्छा रंग में भंग डालने की भी होगी। उन्हें मुंहतोड़ जवाब मिलना चाहिए। इतने देशों तथा संगठनों के प्रतिनिधियों के सामने प्रकारांतर से भारत को जम्मू-कश्मीर के सकारात्मक पक्ष को रखने का मौका मिलेगा। यूथ-20 और सिविल-20 कार्यक्रमों की मेजबानी के लिए चुने गए देश के 15 संस्थानों में कश्मीर विश्वविद्यालय भी एक है। लैंगिक समानता और विकलांगता विषय पर सी-20 वर्किंग ग्रुप की बैठक कश्मीर विश्वविद्यालय में हो चुकी है। जी-20 का एक आधिकारिक जुड़ाव समूह है सी-20। यूथ-20 कार्यक्रम जून 2023 में वाराणसी में होने वाले यूथ-20 समिट के लिए गठित ‘एंगेजमेंट ग्रुप’ न है।
चीन की भूमिका
अगस्त 2019 में अनुच्छेद-370 के सिलसिले में भारत सरकार के फैसले के बाद पाकिस्तान ने चीन की मदद से राजनयिक गतिविधियों को आगे बढ़ाया था। इसमें उसे सफलता तो नहीं मिली, पर कहानी खत्म भी नहीं हुई। 16 अगस्त, 2019 को हुई सुरक्षा परिषद की एक बैठक में कोई औपचारिक प्रस्ताव जारी नहीं हुआ। पाकिस्तान की कोशिशें यहां भी खत्म नहीं हुईं। इस बैठक को भी पाकिस्तान अपनी उपलब्धि मानता है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय जगत में उसकी सुनवाई हुई। बैठक में उपस्थित ज्यादातर देशों ने इसे दोनों देशों के बीच का मामला बताया। वह बैठक अनौपचारिक थी और इसमें हुए विचार का कोई औपचारिक दस्तावेज जारी नहीं हुआ। यह पाकिस्तानी कूटनीति की पराजय थी, पर इतना स्पष्ट है कि बैठक चीनी पहल पर हुई थी। पाकिस्तान के पक्ष में हाल के वर्षों में चीन सक्रिय भूमिका निभा रहा है। बैठक खत्म होने के बाद चीनी दूत ने अपनी प्रेस वार्ता में पाकिस्तान का पक्ष लेते हुए ऐसा जताने का प्रयास किया कि भारतीय कार्रवाई से विश्व समुदाय चिंतित है। यह चीन सरकार का अपना नजरिया था। जी-20 की बैठकें चीन के इस दृष्टिकोण का खंडन करेंगी।
चीन ने पिछले साल श्रीनगर में बैठक के प्रस्ताव पर यह कहते हुए नाराजगी जाहिर की थी कि ‘संबंधित पक्षों’ को किसी भी एकतरफा कदम से स्थिति की जटिलता को बढ़ाना नहीं चाहिए। इन बैठकों से आपसी रिश्तों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह भी कुछ समय बाद दिखाई पड़ने लगेगा। भारत और चीन के बीच अगले कुछ महीनों में उच्चस्तरीय वाताएं होंगी। चीन के रक्षा और विदेश मंत्रियों के जल्द ही शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के लिए भारत आने की आशा है। हालांकि इन बैठकों की तारीखें अभी तय नहीं हैं, पर इनमें पाकिस्तानी मंत्रियों को भी निमंत्रण दिया गया है। वे आएंगे या नहीं, अभी स्पष्ट नहीं है।
लेखक-वरिष्ठ पत्रकार
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