सेवा भारती के कार्यकर्ताओं ने कुछ वर्ष पहले संकल्प लिया था कि आतंकवाद से प्रभावित औैर गरीबी से पीड़ित बच्चों और महिलाओं को सम्माजनक जिंदगी जीने योग्य बनाया जाएगा। आज वह संकल्प साकार हो रहा है। सैकड़ों महिलाएं स्वावलंबी बन कर अपनी घर-गृहस्थी को आगे बढ़ा रही हैं।
कहते हैं कि संकल्प के सामने कोई समस्या नहीं टिकती। कुछ ऐसा ही जम्मू-कश्मीर में हो रहा है। यहां सेवा भारती के कार्यकर्ताओं ने कुछ वर्ष पहले संकल्प लिया था कि आतंकवाद से प्रभावित औैर गरीबी से पीड़ित बच्चों और महिलाओं को सम्माजनक जिंदगी जीने योग्य बनाया जाएगा। आज वह संकल्प साकार हो रहा है। सैकड़ों महिलाएं स्वावलंबी बन कर अपनी घर-गृहस्थी को आगे बढ़ा रही हैं।
ऐसे ही अनेक बच्चे पढ़-लिखकर अपने बुजुर्गों का सहारा बन रहे हैं। बता दें कि सेवा भारती ने गरीब महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए नगरोटा के जगती में ‘अथरूट’ नाम से एक प्रकल्प चलाया है। ‘अथरूट’ का अर्थ होता है-किसी का हाथ पकड़कर चलना। इस प्रकल्प में महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई के अलावा मसाले, अचार, सेनेट्री पैड आदि बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। यहां सौन्दर्य से जुड़े कामकाज (ब्यूटी पार्लर) की भी अच्छी शिक्षा दी जाती है।
सेवा भारती, जम्मू के कार्यालय मंत्री सूरज शर्मा ने बताया, ‘‘अथरूट प्रकल्प लगभग 10 वर्ष से चल रहा है। अब तक सैकड़ों महिलाओं को अनेक प्रकार के प्रशिक्षण देकर स्वावलंबी बनाया गया है।’’ उन्होंने यह भी बताया कि ये महिलाएं जो भी बनाती हैं, उन्हें बेचने में सेवा भारती के कार्यकर्ता सहयोग करते हैं। इसलिए उनके उत्पादों के लिए अलग से बाजार खोजने की जरूरत नहीं पड़ती।
लगभग 13 वर्ष पहले कटरा में छात्रावास शुरू किया। इसके बाद जैसे-जैसे और जहां जरूरत हुई वहां छात्रावास चलाए गए। सेवा भारती का चिकित्सा क्षेत्र में भी काम है। जम्मू में दो एवं डोडा और किश्तवाड़ में एक-एक चिकित्सा वाहन चलाए जा रहे हैं। इन वाहनों का प्रयोग रोगियों को अस्पताल ले जाने और लाने में किया जाता है। इसके लिए न्यूनतम शुल्क लिया जाता है, ताकि यह व्यवस्था अच्छी तरह चलती रहे।
जम्मू-कश्मीर की सेवा भारती गरीब और आतंकवाद से पीड़ित बच्चों के लिए भी पांच छात्रावासों का संचालन करती है। इनमें से एक बालिकाओं के लिए है। यह छात्रावास जम्मू में है। बाकी तीन लड़कों के लिए डोडा, राजौरी और कटरा में हैं। सूरज शर्मा के अनुसार इन सभी छात्रावासों में लगभग 100 छात्र रहते हैं। इन छात्रावासों में छठी कक्षा के बच्चों को प्रवेश दिया जाता है। इनके वस्त्रों से लेकर रहने, खाने और पढ़ने तक का पूरा खर्च सेवा भारती वहन करती है। ये बच्चे अपने छात्रावास के पास के किसी सरकारी विद्यालय में नियमित शिक्षा लेते हैं।
अब तक सैकड़ों बच्चे इन छात्रावासों में रहकर पढ़ चुके हैं। इनमें से कई बच्चे सरकारी सेवा में गए हैं, तो कई अपना व्यवसाय कर रहे हैं। कई उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। सूरज शर्मा कहते हैं कि यदि इन बच्चों को सेवा भारती का संरक्षण नहीं मिलता तो शायद आज जहां वे हैं, वहां नहीं पहुंचते। इनमें से कुछ बच्चों के पिता नहीं हैं, तो कुछ की मां नहीं है। कुछ तो बिल्कुल अनाथ हैं। आतंकवादियों ने इनके माता-पिता को मार दिया था। ऐसे में इनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था।
इसलिए सेवा भारती ने इनके लिए लगभग 13 वर्ष पहले कटरा में छात्रावास शुरू किया। इसके बाद जैसे-जैसे और जहां जरूरत हुई वहां छात्रावास चलाए गए।
सेवा भारती का चिकित्सा क्षेत्र में भी काम है। जम्मू में दो एवं डोडा और किश्तवाड़ में एक-एक चिकित्सा वाहन चलाए जा रहे हैं। इन वाहनों का प्रयोग रोगियों को अस्पताल ले जाने और लाने में किया जाता है। इसके लिए न्यूनतम शुल्क लिया जाता है, ताकि यह व्यवस्था अच्छी तरह चलती रहे।
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