भोपाल। मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा सागर जिले में एक मिशनरी स्कूल के औचक निरीक्षण के दौरान पाए गए भ्रूण की सच्चाई सामने आ गई है। जिस भ्रूण को लेकर स्कूल स्टॉफ आयोग के सदस्यों को यह कहकर गुमराह करना चाह रहा था कि ये प्लास्टिक का फीटस है, फॉरेंसिक रिपोर्ट में वह असली मानव भ्रूण होना पाया गया है।
दरअसल, यहां बीना स्थित ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित निर्मल ज्योति कान्वेंट स्कूल की जीव विज्ञान प्रयोगशाला के एक जार में राज्य बाल आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा ने मानव भ्रूण रखा पाया था। वह एवं उनके अन्य सहयोगी सदस्य ओंकार सिंह एक बच्चे की शिकायत आने पर सामान्य जांच करने इस विद्यालय में पहुंचे थे। दोनों ने ही फीटस के पाए जाने पर तत्काल पुलिस को जानकारी देकर भ्रूण जब्त कराते हुए मामले की जांच करने के लिए कहा था ।
जांच के लिए भ्रूण भेजा गया था सागर स्थित एफएसएल (लैब) में
पुलिस ने बीते सोमवार (10 अप्रैल) को भ्रूण जाँच के लिए सागर स्थित एफएसएल को भेज दिया था। जिसकी फॉरेंसिक रिपोर्ट 13 अप्रैल गुरुवार को आ गई है। इस मामले में बीना पुलिस थाना प्रभारी कमल निगवाल ने बताया कि आयोग से मिले प्रतिवेदन के आधार पर संपूर्ण प्रकरण की गहराई से जांच चालू है। पुलिस ने मानव भ्रूण की सत्यता को जांचने के लिए फॉरेंसिक प्रयोगशाला में भेजा था, यहां से रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। यानी कि यह असली मानव भ्रूण ही है।
ये है पूरा मामला
इस पूरे मामले पर गौर करें तो यह प्रकरण छह अप्रैल का है, जब मध्य प्रदेश राज्य बाल संरक्षण आयोग की दो सदस्यीय टीम एक शिकायत आने पर औचक निरीक्षण करने ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित निर्मल ज्योति कान्वेंट स्कूल पहुंची थी। कागजों में सबकुछ अच्छा रखनेवाले इस विद्यालय की जब फिजिकल जांच होने लगी तो एक के बाद एक अनेक गल्तियां सामने आईं। जिसमें सबसे बड़ा कानून का उल्लंघन ये है कि वर्षों पुराना फीटस स्कूल की जीवविज्ञान प्रयोगशाला में रखा हुआ था।
स्कूल प्रबंधन को नहीं पता कहां से आया मानव भ्रूण
भ्रूण कहां से और कब लैब में आया, इसको लेकर स्कूल प्रबंधन कोई जवाब नहीं दे सका। वहां जांच में दौरान साथ रहीं प्राचार्या सिस्टर ग्रेस भी कुछ नहीं बता पाईं बल्कि उनका कहना बार-बार यही था कि वे कुछ समय पहले ही यहां पदस्थ हुई हैं। ऐसे में उनका दावा था कि यह मानव भ्रूण पहले से ही यहां रखा हुआ है। जब विद्यालय में आयोग की इस बारे में पूछताछ चल ही रही थी तभी कुछ स्कूल सदस्यों ने यह दावा किया कि ये भ्रूण प्लास्टिक का है। लेकिन आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा ने जोर देकर पूछा कि वैसे तो अन्य जीवों की जैविक प्रजातियां फॉर्मेलिन की कमी से सूख रहे हैं और सड़ रहे हैं, उनको ठीक से प्रिजर्व करने के लिए आपके पास पर्याप्ति फॉर्मेलिन, स्प्रिट, ग्लिसरीन और कार्बोलिक एसिड का मिश्रण नहीं, दूसरी ओर इस जार में जरूरत से ज्यातदा फॉर्मेलिन भरा हुआ है, ऐसा क्यों किया गया है तो स्कूल प्रबंधन इसका कोई भी जवाब नहीं दे सका।
स्कूली पढ़ाई में प्रतिबंधित है भ्रूण का सीधा प्रयोग, कोर्स का हिस्सा भी नहीं
डॉ. निवेदिता शर्मा का कहना है कि जब हम स्कूल की जीवविज्ञान प्रयोगशाला में गए तो यह देखकर स्तब्ध रह गए कि बच्चों को जोकि 12वीं तक की पढ़ाई कर रहे हैं, हम उन्हें क्या दिखा रहे हैं। जबकि यह उनके कोर्स का हिस्सा ही नहीं । फिर सबसे बड़ी बात यह है कि यह फीटस स्कूल में आया कहां से? किसका भ्रूण है यह, वास्तव में जांच का विषय है। कानूनी तौर पर भी आप किसी मानव भ्रूण को इस तरह से किसी विद्यालय की प्रयोगशाला में नहीं रख सकते हैं। जबकि यहां जैसा कि अन्य शिक्षिका ने बताया वर्षों से यह फीटस रखा हुआ है।
बच्चों के वायरस की चपेट में आने का बना हुआ है सीधा खतरा
डॉ. निवेदिता ने कहा कि हम इस विषय में गहन जांच करने के लिए शासन को लिखेंगे। उन्होंने बताया कि स्कूल परिसर में कई खामियां पाई गईं जैसे कि गेस्ट रूम बना हुआ है, जोकि अंदर नहीं होना चाहिए। आयोग के सदस्यों और अधिकारियों को उस गेस्ट रूम में जाने तक नहीं दिया गया। स्टाफ का पुलिस वेरिफिकेशन नहीं मिला। जमीन का डायवर्सन अन्य व्यवसाय के लिए कराया जाना पाया गया जोकि नियमविरुद्ध है। फीस को लेकर बच्चों पर लगातार स्कूल प्रबंधन दबाब बनाता है जोकि पूरी तरह से गलत है, क्योंकि इसके कारण से बच्चे मानसिक प्रेशर में आते हैं और उससे कई बार बहुत नकारात्मतक प्रभाव सामने आते हुए देखे भी जा चुके हैं। प्रयोगशाला में जीवों के पुराने नमूने रखे हुए हैं, जो सड़ गए हैं। केमिकल से इन्हें सही ढंग से संरक्षित नहीं किया गया। यह सीधे बच्चों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है। ऐसे में अनेक वायरस की चपेट में बच्चों के आने का खतरा सदा बना रहता है।
जब उनसे पूछा गया कि अब जब इसकी रिपोर्ट आ गई है और फॉरेंसिक रिपोर्ट में भी यह मानव भ्रूण होना पाया गया है, ऐसे में आपका अगला कदम क्या होगा? इस पर उनका कहना यही रहा कि अभी यह रिपोर्ट उन तक नहीं पहुंची है, जब आ जाएगी तब फिर आगे इस पर कड़ा एक्शन लिया जाएगा।
शिकायत पर आयोग गया था सामान्य जांच करने
राज्य बाल आयोग (एसीपीसीआर) के दूसरे सदस्य ओंकार सिंह ने कहा कि बीना में स्थित स्कूल के खिलाफ उसके छात्रों की कुछ लंबित शिकायतों को लेकर आयोग का दो सदस्यीय दल छह अप्रैल को स्कूल का औचक निरीक्षण करने पहुंचा था। उन्होंने बताया कि फीस नहीं भरने पर निर्मल ज्योति कान्वेंट स्कूल की प्राचार्य द्वारा एक छात्र को स्कूल से निष्कासित कर दिया गया था। जिसकी शिकायत फरवरी में छात्र के पिता ने मध्य प्रदेश बाल संरक्षण आयोग की थी। इसलिए हम लोग सामान्य जांच के लिए ही विद्यालय पहुंचे थे। वहां जाकर जब विद्यालय की जांच की गई तो एक नहीं अनेक कमियां आयोग को मिली हैं।
स्कूल परिसर में रहती हैं नन, बड़े बच्चों तक के शौचालय ऊपर से खुले हुए
जांच के दौरान विद्यालय की जीव विज्ञान की प्रयोगशाला में कांच की बोतल में करीब तीन-पांच माह का मानव भ्रूण रखा पाया गया। पहले तो सभी आश्चर्य में पड़ गए कि यह स्कूल में कहां से आया, फिर वहां कुछ लोगों ने बताया कि यह बहुत पहले से यहां पर है। परिसर में एक भवन है, जिसके संबंध में प्राचार्य ने बताया कि वहां नन रहती हैं और जब सदस्यों ने अंदर जाने की बात कही, तो महिला सदस्य और महिला अधिकारियों को भी अंदर जाने से मना कर दिया गया। स्कूल में बच्चों की संख्या के अनुसार शौचालय नहीं है। एक बड़े हॉल को दो भागों में बांटकर लड़का और लड़कियों के शौचालय बनाए गए हैं, जो ऊपर से खुले हुए हैं।
अन्य कमियां भी पाई गई हैं
इसके साथ ही इस ईसाई मिशनरी के विद्यालय में निरीक्षण के दौरान स्टाफ और बस चालकों के वेरिफिकेशन की जानकारी मांगी, तो प्रबंधन नहीं दे सका। साथ ही भवन, परिसर के दस्तावेज मांगे गए थे, तो उमसे डायवर्सन न होने की बात सामने आई। गरीब बच्चों के लिए स्कूल में कोई फंड नहीं मिला, जबकि बीआरसीसी के अनुसार 25 लाख रुपए फंड होना चाहिए।
बीना में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का प्रदर्शन, स्कूल की मान्यता रद्द करने की मांग
मानव भ्रूण मिलने समेत अनेक अनियमितताओं के चलते अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने इस स्कूल की मान्यता रद्द करने और स्कूल सील करने की मांग करते हुए बीना में प्रदर्शन किया है। यहां स्कूल के गेट के सामने प्रदर्शन कर स्कूल शिक्षा मंत्री के नाम नायब तहसीलदार ऋतु सिंघई को ज्ञापन भी सौंपा गया।
रोका जाता है हिन्दू बच्चों को टीका लगाने और कवाला पहनने से
परिषद के कार्यकर्ताओं ने कहा कि एससीपीसीआर से इसी स्कूल के छात्र के पिता द्वारा स्कूमल परिसर में अपने धर्म का पालन करने से रोकने और जबरन ईसाई मत की प्रार्थना करवाए जाने की शिकायत दर्ज कराई गई थी, जिसे बाल आयोग ने संज्ञान में लिया और वह जांच में सही पाया गया। इस विद्यार्थी के अलावा भी अनेक छात्र-छात्राएं हैं, जिनकी समय-समय पर इसी प्रकार की शिकायत होना सामने आता रहा है। संस्था उन्हें माथे पर तिलक लगाने, कलावा बांधने से रोकती रही है, जब कोई विरोध करता तो उसे स्कूल से निकाल दिया जाता। इस विद्यालय का प्रत्येक कक्ष मत विशेष फोटो से छाया हुआ है। यह भारतीय संविधान के विरोध में है कि यहां एक मत विशेष को ही जबरन मानने या उस पर विश्वास करने के लिए बाध्य किया जाए। विद्यार्थी परिषद ऐसे किसी भी कृत्य का विरोध करती है।
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