पाकिस्तान में एक बार फिर अहमदी समुदाय पर गाज गिरी है और वह भी रमजान के महीने में, जिसे मुस्लिम ‘पाक’ मानते हैं। वहां सुन्नी मौलवियों के उकसावे पर पुलिस ने चिढ़कर अहमदी समुदाय की एक इबादतगाह की मीनारें ध्वस्त कर दीं। इस अहमदी मस्जिद को इस तरह तोड़ा जाना एक बार फिर से उस इस्लामी देश में अल्पसंख्यकों पर सरकार और पुलिस प्रशासन की कथित शह पर सुन्नी मजहबी उन्मादियों के अत्याचार उजगार हुए हैं।
यह घटना पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में लाहौर से लगभग 150 किलोमीटर दूर जिला गुजरात के कालरा कलां की है। यहां अहमदी समुदाय की 70 साल पुरानी एक मस्जिद है जो इलाके में बसे अहमदी समुदाय में बहुत मशहूर है। 26 मार्च को स्थानीय पुलिस ने इसी मस्जिद को अपनी नफरत का निशाना बनाया और उसकी कई मीनारें देखते ही देखते ध्वस्त कर दीं।
एक स्थानीय अहमदी नेता के अनुसार, पुलिस ने मस्जिद की मीनारों को तोड़ने की यह कार्रवाई कथित कट्टरपंथी सुन्नी मौलवियों के उकसावे में आकर की है। रमजान के महीने में इस पुरानी इस मस्जिद मीनारें ध्वस्त होने के बाद स्थानीय अहमदी समुदाय में भय का माहौल है।
अल्पसंख्यक अहमदियों की हालत पाकिस्तान में बहुत खराब है। यही हाल दूसरे अल्पसंख्यक समूहों का है जिनमें हिन्दू, सिख और ईसाई शामिल हैं। इन सबके विरुद्ध सुन्नी मजहबी उन्मादी और कट्टरपंथी मुल्ला-मौलवी पुलिस की कथित मिलीभगत से साजिशें रचते रहते हैं।
कालरा कलां में हुई इस दुखद घटना पर रोष व्यक्त करते हुए जमाते-अहमदिया पाकिस्तान के एक नेता आमिर महमूद का कहना है कि इस कार्रवाई को पंजाब पुलिस के आतंकवाद निरोधी विभाग (सीटीडी) ने अंजाम दिया है। इसी विभाग के एक अधिकारी उक्त अहमदी मस्जिद पर आए और कहने लगे कि विभाग की तरफ से इस मस्जिद की मीनारों को ढहा देने का आदेश है। कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि ‘वजह यह है कि मीनारों से यह मस्जिद जैसी दिखाई देती है जबकि कानून कहता है कि अहमदी लोग अपनी इबादतगाह पर मीनारें नहीं बनवा सकते’। इसके बाद 26 मार्च को कई पुलिस वाले वहां पहुंचे और देखते ही देखते मीनारों को ढहा दिया गया।
महमूद ने बताया कि यह हरकत यहां के मौलवियों के इशारे पर की गई है। हैरानी की बात है कि जिस स्थान पर यह मस्जिद 70 साल से खड़ी है उसे वे मौलवी अपनी बताते हैं। इस जगह पर उनका दावा है। अहमद के अनुसार, एक बड़े पुलिस अफसर ने भी धमकाया था कि ‘अहमदी इबादतगाह वाली यह जगह मुसलमानों की है इसलिए अहमदियों का इस पर जगह पर कोई हक नहीं बनता’।
सब जानते हैं कि अल्पसंख्यक अहमदियों की हालत पाकिस्तान में बहुत खराब है। यही हाल दूसरे अल्पसंख्यक समूहों का है जिनमें हिन्दू, सिख और ईसाई शामिल हैं। इन सबके विरुद्ध सुन्नी मजहबी उन्मादी और कट्टरपंथी मुल्ला-मौलवी पुलिस की कथित मिलीभगत से साजिशें रचते रहते हैं। पाकिस्तान में कभी राज करने वाले पूर्व सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल हक ने तो अहमदियों पर ढेरों जुल्म ढाए थे और उनके खुद को मुसलमान कहने या अपना मजहब इस्लाम बताने तक को कानूनन अपराध घोषित किया था।
इतना ही नहीं, पाकिस्तान की संसद ने तो 1974 में ही अहमदियों को ‘गैर-मुस्लिम’ ठहराने का प्रस्ताव पारित किया था। 1984 के आसपास उन पर ये रोक लगा दी गई कि वे खुद को मुसलमान न कहें।
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग की ही रिपोर्ट बताती है कि पंजाब प्रांत के गुजरांवाला तथा वजीराबाद जिलों में प्रशासन ने ही आगे आकर गत कुछ माह के दौरान कई अहमदी इबादतगाहों पर बनीं मीनारों को गिराया था। ध्यान देने की बात है कि पाकिस्तान की आबादी इस वक्त 22 करोड़ है जिसमें करीब एक करोड़ नागरिक गैर-मुस्लिम हैं। पाकिस्तान में सबसे बड़े पांथिक अल्पसंख्यक हिन्दू हैं जिनकी आबादी 50 लाख बताई जाती है।
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