रानी गाइदिन्ल्यू का जन्म 26 जनवरी 1915 को मणिपुर के तमेंगलोंग ज़िले के नुंगकाओ गांव में नागा जनजाति में हुआ था। मात्र 13 साल की उम्र में ही स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़ीं। वे अपने भाई कोसिन व हायपोउ जदोनांग के साथ हेराका आंदोलन से जुड़ीं। इस आंदोलन का लक्ष्य क्षेत्र में दोबारा नागा राज स्थापित करना और अंग्रेज़ों को अपनी मिट्टी से खदेड़ना था। उनके आहवान पर लोग ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए अमानवीय कर और नियमों के ख़िलाफ एकजुट होने लगे। लोगों ने अंग्रेजों को किसी भी तरह का कर देने से मना कर दिया।
17 साल की उम्र में उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया और भूमिगत हो गई। अंग्रेज उनकी लोकप्रियता से घबराए हुए थे, इस पर उन्होंने गुरिल्ला युद्ध शुरू करके अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। अंग्रेज दिन रात उनकी तलाश में जुटे थे आखिर 17 अक्टूबर, 1932 को गाइदिनल्यू को गिरफ्तार कर लिया गया। यहां से गाइदिनल्यू को कोहिमा फिर इम्फाल ले जाया गया। यहां पर उन्हें हत्या, हत्या की साजिश का आरोप लगाकर उम्रकैद की सजा सुना दी गई।
वहीं, उनके ज़्यादातर साथियों को या तो मौत की सजा हुई या फिर उन्हें जेल में डाल दिया गया। 14 साल जेल में रहने के बाद जब भारत आजाद हुआ तब वह जेल से बाहर आईं। रानी गाइदिन्ल्यू को 1982 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 17 फरवरी, 1993 को उनका निधन हो गया।
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