आसपास के गांवों के किसान उनसे खेती और बागवानी की तकनीक सीखने के लिए आते हैं
झारखंड की सीमा से सटे बिहार के बांका जिले की सांगा पंचायत में एक गांव है-तेलिया कुरा। यहां के 52 वर्षीय मेघलाल यादव क्षेत्र के किसानों के प्रेरणास्रोत हैं। 2011 से 2016 तक सरपंच रहे मेघलाल ने 1991 में 3 एकड़ बंजर भूमि में टमाटर की खेती से शुरुआत की थी। शुरू में उन्होंने 200-400 रुपये के टमाटर के सामान्य बीज से 20-25 हजार रुपये की फसल उगाई। धीरे-धीरे उनकी कमाई बढ़ती गई। 32 वर्ष की अथक मेहनत से उन्होंने अपनी बागवानी और नर्सरी भी विकसित कर ली है और अब क्षेत्र के किसानों को आत्मनिर्भरता और स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
स्कूली शिक्षा-दीक्षा पाने के बाद मेघलाल यादव के मन में आर्थिक तंगी से मुक्ति पाने के लिए कुछ कर गुजरने की तीव्र इच्छा थी। फर्रुखाबाद की एक कंपनी द्वारा किसानों के लिए प्रकाशित किताब पढ़ने के बाद उन्होंने खेती करने की ठानी। इसके लिए उन्होंने गैर सरकारी संगठन वर्ल्ड विजन संस्था से तकनीकी खेती का ज्ञान लिया। फिर अपनी बंजर जमीन में खेती शुरू की। सिंचाई के लिए तालाब खुदवाए और बोरिंग की व्यवस्था की।
रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं की जगह गोबर और गोमूत्र का उपयोग किया। शुरुआती दौर में पत्नी निर्मला ने भरपूर सहयोग किया। अभी मेघलाल 8-9 एकड़ में नर्सरी-बागवानी कर रहे हैं, जो निर्मला दीदी बागवानी के नाम से क्षेत्र में प्रसिद्ध है।
मेघलाल यादव
मेघलाल अपने उत्पाद पड़ोसी राज्य झारखंड के सीमाई बाजारों में बेच कर सालाना 4 से 5 लाख रुपये कमा रहे हैं। वे कहते हैं कि जब खेती शुरू की तो कभी प्राकृतिक आपदा और कभी आर्थिक तंगी बाधा बनी, लेकिन न तो उन्होंने हिम्मत हारी और न ही मेहनत करना छोड़ा।
आज बांका जिला ही नहीं, बल्कि दूर-दूर के इलाकों में उनकी गिनती सफल किसानों में होती है। उनकी नर्सरी में सागवान, गम्हार, महोगनी, आम, कटहल, जामुन, केला, करेला, भिंडी, कद्दू, पपीता आदि के पौधे उपलब्ध होते हैं, जिन्हें वन विभाग भी खरीदता है। उसके अलावा, वे गेहूं, धान, मकई, मिर्ची, प्याज तथा अन्य फसलें भी उगाते हैं। जिला और राज्य स्तर पर उन्हें ‘कृषि श्री’ पुरस्कार भी मिल चुका है। उनके बगीचे में लाल रेडी किस्म के 4 किलो वजन वाले पपीते को कृषि प्रदर्शनी पटना एवं किसान मेला बांका में प्रथम पुरस्कार मिल चुका है।
अपनी उपलब्धि पर वह कहते हैं कि उन्होंने गांव में रह कर हरियाली मिशन को अपना अभियान बनाया और स्वरोजगार व आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में मजबूती से कदम बढ़ाया। तकनीक अपनाने के साथ मेहनत से अपने उद्देश्य को पाने के लिए जुटे रहे। आसपास के गांवों के किसान उनसे खेती और बागवानी की तकनीक सीखने के लिए आते हैं।
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