कृषि विभाग और लोकभारती ने वाराणसी में प्राकृतिक खेती के गुर सिखाने के लिए प्रशिक्षण शिविर लगाया। सुमन देवी ने इसमें हिस्सा लिया। इसके बाद उन्होंने प्राकृतिक खेती शुरू कर दी। गोबर और गोमूत्र की समस्या बनी रही तो उन्होंने मायके से गाय मंगा लिया। पहले साल गाय के चारा-पानी, खाद-बीज, सिंचाई और कीटनाशक पर 10-15 हजार रुपये खर्च हुए।
सुमन देवी उत्तर प्रदेश में वाराणसी जिले के सेवापुरी ब्लॉक के मड़ैयां गांव में रहती हैं और प्राकृतिक खेती करती हैं। किसान परिवार में जन्म लेने के कारण शुरू से ही उनकी रुचि खेती-किसानी में थी। 2011 में विवाह के बाद जब वह ससुराल में आर्इं, तो यहां भी खेती में हाथ बंटाने लगीं। लेकिन खेती से परिवार का गुजारा नहीं चल पा रहा था। आर्थिक तंगी बनी रहती थी।
30 वर्षीया सुमन देवी बताती हैं कि उनके पास ढाई बीघा (एक एकड़) जमीन थी। खेती रासायनिक तरीके से होती थी। इस तरह, खाद, बीज और रासायनिक कीटनाशकों पर ही हर साल 40-50 हजार रुपये खर्च हो जाते थे और कमाई भी लगभग इतनी ही होती थी। इसलिए आर्थिक तंगी बनी रहती थी। वर्ष 2013 में अपने एक पड़ोसी के सुझाव पर उन्होंने अपने पति और ससुर की सहमति से केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा संचालित राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गठित स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं और जैविक तथा प्राकृतिक खेती के गुर सीखने के लिए 7 दिवसीय प्रशिक्षण लिया।
इसके बाद उन्होंने रासायनिक खेती छोड़कर जैविक कृषि शुरू की। हालांकि जैविक कृषि से भूमि की उर्वरा शक्ति तो बढ़ी, लेकिन लागत के हिसाब से अपेक्षित लाभ नहीं मिला। तब उन्होंने छोटे स्तर पर प्राकृतिक खेती का प्रयोग करने की सोची और घर के पीछे की खाली जमीन में इस विधि से शाक-भाजी उगाना शुरू किया। इसके लिए खाद और कीटनाशक के तौर पर उन्होंने पड़ोसी से गाय का गोबर और गोमूत्र लिया। लेकिन यह सब उन्हें मुफ्त में नहीं मिला। इसके एवज में उन्हें पड़ोसी को प्राकृतिक खेती की विधि सिखानी पड़ी।
वर्ष 2013 से पहले रासायनिक खेती में लाभ कम होता था। वर्ष 2013 से 2018 तक जैविक खेती की। इसमें भी कृषि लागत निकाल कर उन्हें सालाना 70-80 हजार रुपये की आय होती थी। बकौल सुमन देवी, वह जिले के प्राकृतिक कृषि विभाग से जुड़ी हैं और दर्जनों गांवों, मिजार्पुर के विन्ध्य गुरुकुल सहित जिले के कई कृषि महाविद्यालयों में अनेक लोगों के प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण दे चुकी हैं। -सुमन
वर्ष 2019 में कृषि विभाग और लोकभारती ने वाराणसी में प्राकृतिक खेती के गुर सिखाने के लिए प्रशिक्षण शिविर लगाया। सुमन देवी ने इसमें हिस्सा लिया। इसके बाद उन्होंने प्राकृतिक खेती शुरू कर दी। गोबर और गोमूत्र की समस्या बनी रही तो उन्होंने मायके से गाय मंगा लिया। पहले साल गाय के चारा-पानी, खाद-बीज, सिंचाई और कीटनाशक पर 10-15 हजार रुपये खर्च हुए।
इस तरह, वर्ष 2019-20 में उनकी शुद्ध सालाना आमदनी 80 हजार रुपये रही। कम लागत में अच्छा लाभ हुआ तो पूरा परिवार बहुत खुश हुआ। इसके बाद उन्होंने अपने एक एकड़ के खेत में गेहूं, गन्ना और सरसों के साथ प्याज, मिर्च, मटर, टमाटर, मूली, गाजर, कद्दू, लौकी, तरोई, पालक और धनिया आदि हरी की मिश्रित खेती शुरू की। वे दो साल से गेहूं, गन्ना और सरसों आदि सूखी फसलें भारत सरकार द्वारा जिले में स्थापित किसान उत्पादन संगठन और सब्जियां थोक मंडी में बेच कर सालाना एक से डेढ़ लाख रुपये की कमाई कर रही हैं।
सुमन बताती हैं कि वर्ष 2013 से पहले रासायनिक खेती में लाभ कम होता था। वर्ष 2013 से 2018 तक जैविक खेती की। इसमें भी कृषि लागत निकाल कर उन्हें सालाना 70-80 हजार रुपये की आय होती थी। बकौल सुमन देवी, वह जिले के प्राकृतिक कृषि विभाग से जुड़ी हैं और दर्जनों गांवों, मिजार्पुर के विन्ध्य गुरुकुल सहित जिले के कई कृषि महाविद्यालयों में अनेक लोगों के प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण दे चुकी हैं।
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