उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में मिहींपुरवा ब्लॉक है। इसी ब्लॉक के नौनिहां गांव में 53 वर्षीय किसान राम प्रवेश मौर्य रहते हैं। किसान परिवार में जन्मे राम प्रवेश प्राकृतिक खेती करते हैं। उनके पिताजी के समय तक परिवार संयुक्त था। तब 8 एकड़ जमीन थी, जिसमें रासायिक विधि से खेती होती थी। लेकिन खेती से इतनी आय नहीं होती थी कि परिवार खुशहाल रहे। आर्थिक तंगी हमेशा बनी रहती थी।
राम प्रवेश बताते हैं कि वर्ष 2008 में उनके हिस्से में 2 एकड़ जमीन आई तो वह भी पारंपरिक तरीके से रासायनिक खेती करने लगे। उस समय प्रति एकड़ खाद, पानी और बिजली पर 35-40 हजार रुपये की लागत आती थी, लेकिन सालाना आमदनी 50-60 हजार रुपये ही होती थी।
भरपूर मेहनत के बाद भी घर-परिवार के खर्च पूरे नहीं हो पा रहे थे। सबसे बड़ी समस्या यह थी कि रासायनिक उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी खत्म होने लगी थी। इसलिए हाड़तोड़ मेहनत के बावजूद लाभ बढ़ने के बजाय घटता जा रहा था। उनके लिए खेती घाटे का सौदा साबित हो रही थी। इससे वह बहुत परेशान रहने लगे थे। इसी दौरान उनकी मुलाकात ‘लोकभारती’ संस्था से जुड़े क्षेत्र के एक प्राकृतिक कृषक शिव शंकर सिंह से हुई। उन्होंने राम प्रवेश को झांसी में सुभाष पालेकर के शिविर में जाने की सलाह दी।
देशवासियों की सेहत को बचाने का एकमात्र उपाय प्राकृतिक खेती ही है, क्योंकि रासायनिक खेती के दुष्प्रभाव अब सभी के सामने आ चुके हैं। इसका जीता जागता उदाहरण पंजाब है। इस राज्य में कैंसर के बढ़ते मामलों का एक बड़ा कारण रासायनिक खेती को माना जा रहा है। -राम प्रवेश
वर्ष 2019 में उन्होंने शिविर में 7 दिवसीय प्रशिक्षण लिया। यहां उन्होंने प्राकृतिक खेती की बारीकियां सीखीं। इसके बाद राम प्रवेश ने रासायनिक खेती छोड़ कर प्राकृतिक तरीके से खेती करने लगे। प्रयोग के तौर पर पहले वर्ष उन्होंने एक एकड़ में प्राकृतिक खेती की। इसमें 10-15 हजार रुपये की लागत आई और लाभ दोगुना हुआ। इससे उत्साहित होकर उन्होंने दोबारा भरतपुर (राजस्थान) में प्राकृतिक खेती पर आयोजित शिविर में हिस्सा लिया। यहां उन्होंने कुछ और बारीकियां सीखीं। इसके बाद पूरी लगन से दो एकड़ में प्राकृतिक खेती शुरू कर दी।
राम प्रवेश बताते हैं कि गेहूं और धान के साथ उन्होंने आलू, टमाटर, गोभी, मटर, परवल, मूली, गाजर, पालक, धनिया आदि भी भी लगाए। फसल तैयार हुई तो घर में खाने लायक गेहूं और चावल का उत्पादन हुआ। वहीं सब्जियां बेचने पर अच्छी कमाई हुई। इस तरह उन्होंने मिश्रित खेती का एक मॉडल अपनाया। आगे चलकर प्रयोग के तौर पर बरसात में उन्होंने प्याज की फसल लगाई। फसल इतनी अच्छी हुई कि जिले के कृषि विभाग के अधिकारी और कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक बी.पी. शाही उनकी खूब प्रशंसा की। उन्हें राज्यपाल आनंदीबेन से सम्मानित भी कराया। बकौल राम प्रवेश, वे अपने कृषि उत्पाद मंडी में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती का बैनर लगाकर बेचते हैं और एक एकड़ से ढाई लाख रुपये की सालना आय अर्जित कर हैं।
राम प्रवेश का कहना है कि देशवासियों की सेहत को बचाने का एकमात्र उपाय प्राकृतिक खेती ही है, क्योंकि रासायनिक खेती के दुष्प्रभाव अब सभी के सामने आ चुके हैं। इसका जीता जागता उदाहरण पंजाब है। इस राज्य में कैंसर के बढ़ते मामलों का एक बड़ा कारण रासायनिक खेती को माना जा रहा है।
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