ठक्कर बापा का जन्म 29 नवंबर, 1869 को गुजरात के भावनगर जिले में हुआ था। उनकी सेवा-भावना का स्मरण करके ही डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था- “जब-जब नि:स्वार्थ सेवकों की याद आएगी ठक्कर बापा की तस्वीर आंखों के सामने आकर खड़ी हो जाएगी। देश की स्वाधीनता के बाद ठक्कर बापा कुछ समय तक संसद के भी सदस्य रहे थे। उनका मूल नाम अमृतलाल ठक्कर था। बाद में सेवा-कार्य में प्रसिद्धि के बाद ही वे ठक्कर बापा कहलाए।
ठक्कर बापा ने पुणे से इंजीनियरिंग की थी। कुछ समय तक शोलापुर और भावनगर में रेलवे की नौकरी की, लेकिन अधिक समय तक इसमें नहीं रहे सके। 1914 में वह नौकरी से त्यागपत्र देकर ‘सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसायटी’ से जुड़े। गोपाल कृष्ण गोखले ने उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से करवाई। 1922 -23 के अकाल में गुजरात में भीलों के बीच राहत कार्य करते हुए आपने ‘भील सेवा मंडल’ स्थापित किया था। 1930 में सिविल अवज्ञा आंदोलन दौरान गिरफ्तार हुए और 40 दिनों तक जेल में रहे। 1944 में उन्होंने गोंड सेवक संघ’ (वनवासी सेवा मंडल) की स्थापना की थी।
ठक्कर बापा जीवनभर सेवा कार्यों में लगे रहे। 1946-47 में नोआखली में जबरदस्त दंगे भड़के थे, ठक्कर बापा वहां भी गांधी जी के साथ गए और लोगों के बीच काम किया। स्वतंत्रता के बाद संविधान सभा के लिए चुने गए थे। निर्लिप्त भाव से जीवनभर सेवाकार्य करने वाले ठक्कर बापा का 20 जनवरी 1951 को देहावसान हो गया।
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