भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में वायनाड के कुरिच्या जनजातियों का योगदान अद्वितीय और अविस्मरणीय रहा है। इतिहास के इस स्वर्णिम पृष्ठ को जोड़ने में केरल के पड़सी राजा के साथ योगदान दिया था वीर वनवासी सेनानी तलक्कल चंदू ने।
दरअसल ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने वायनाड के किसानों की कृषि उपज पर एक बहुत मोटा लगान तय कर दिया था। वैसे भी जनजाति समुदाय स्वभाव से स्वतंत्र रहना पसंद करता है, ऐसे में अंग्रेजों की ज्यादती पर विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। पड़सी राजा ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई का रास्ता चुना। जनजाति समाज से आने वाले तलक्कल चंदू के नेतृत्व में वनवासी वीरों ने पनमरम किले पर धावा बोला। किले में कमांडिंग अधिकारी कैप्टन डिकिंसन और लेफ्टिनेंट मैक्सवेल के साथ अत्याधुनिक हथियारों से लैस अंग्रेजों की पूरी बटालियन थी। बावजूद इसके वीर और अद्भुत शौर्यवान चंदू ने अंग्रेजों को परास्त कर पनमरम किले को अधिकार में लिया।
इस युद्ध में कमांडिंग अधिकारी कैप्टन डिकिंसन, लेफ्टिनेंट मैक्सवेल अंग्रेज सैनिकों की पूरी बटालियन को वनवासी वीरों ने मार डाला और किले पर अधिकार कर लिया। इसके बाद चंदू अंग्रेजों की आंखों की किरकिरी बन गए। अंग्रेज उन्हें कभी पकड़ नहीं पाए। उन पर उस समय अंग्रेजों ने ढाई हजार रुपए का इनाम भी घोषित किया, लेकिन गुरिल्ला युद्ध में माहिर चंदू वनवासी वीरों के साथ अंग्रेजों पर लगातार हमले करते रहे। आखिर अंग्रेजों ने फिर से वही चाल चली और उनके एक साथी को लालच देकर अपने साथ मिला लिया। लालच में उसने अंग्रेजों उनकी खबर दे दी। 15 नवम्बर 1805 को अंग्रेज धोखे से चंदू पकड़ने में कामयाब हो गए और उन्हें खुलेआम एक पेड़ से लटकाकर फांसी दे दी गई।
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