उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान एक अक्टूबर 1994 की मध्य रात्रि में दिल्ली जा रहे राज्य आंदोलनकारियों पर पुलिस द्वारा गोली चलाने, लाठीचार्ज करने और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने की घटना के जख्म आज भी उत्तराखंड के लोगों में भरे नहीं हैं। इस मामले की सुनवाई यहां फास्ट ट्रैक कोर्ट में अब तेजी से हो रही है।
कोर्ट ने मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे में ड्यूटी कर रहे तत्कालीन थाना प्रभारी राजवीर सिंह पर आरोप तय कर दिए हैं। राजवीर सिंह उस वक्त छपार थाने के इंचार्ज थे, जिन्होंने दिल्ली जा रही आंदोलनकारियों की बसों को बैरिकेडिंग लगाकर रोक लिया था। उसके बाद पुलिस वालों ने राज्य आंदोलनकारियों पर गोलियां चला दी थी। जिसमें 7 लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना की सीबीआई ने जांच की थी और सात मुकदमों में चार्जशीट दाखिल की थी।
थाना प्रभारी पर दो मामले अलग से दर्ज हुए थे। इन पर साक्ष्य मिटाने, जीडी फाड़ने जैसे आरोप भी लगाए गए थे। अदालत में सुनवाई के दौरान राजवीर सिंह बीमार अवस्था में कोर्ट में पेश भी हुए। मुलायम सिंह के कार्यकाल में हुई इस हृदयविदारक घटना ने उत्तराखंड में आंदोलन की आग को और तेज किया था।
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