साल 2020 की 5 मई को गलवान में भारतीय सीमा में घुस आए चीनी सैनिकों को भारतीय फौजियों द्वारा जबरदस्त पिटाई लगाने के बाद से, 16 दौर की सीमा वार्ता हो चुकी है। कल पहली बार बीजिंग में दोनों पक्षों के बीच 17वें दौर की बात तो हुई लेकिन विस्तारवादी चीन के अड़ियल रवैए के चलते, चर्चा से कोई ठोस नतीजा निकलकर नहीं आया। सहमति बनी तो बस इस बात पर कि जल्दी ही 18वें दौर की बातचीज आयोजित की जाएगी।
यह पहली बार था जब भारत तथा चीन आमने सामने की बात के लिए बीजिंग में मिले थे। सीमा पर अपने अपने स्थान से पीछे हटने से लेकर, सीमोलंघन के मुद्दे तक चर्चा में आए, लेकिन समाधान के नाम पर कुछ नहीं निकला। द्विपक्षीय चर्चा के पहले के 16 दौरों में भी सौहार्द बनाए रखने की बातें खूब हुई थीं, लेकिन चीन की तरफ से रह—रहकर पेंच फंसाए जाते रहे हैं, सीमा पर घुसपैठ की और सैन्य तंत्र में बढ़ोतरी करने के साथ ही ढांचागत निर्माण करने की खबरें भी मिलती रही हैं। इतना ही नहीं, गलवान संघर्ष को लेकर चीन ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को बेकसूर दिखाने की भरसक कोशिश की, लेकिन सच सब जानते हैं।
बहरहाल, बीजिंग में भी चर्चा चली पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मौजूद टकराव की जगहों से दोनों ओर के सैनिकों के पीछे हटाने को लेकर। यह चर्चा ‘खुली एवं रचनात्मक’ बताई गई, लेकिन नतीजा तब भी संशय के घेरे में ही रहा।
भारत के विदेश मंत्रालय ने इस पर जो बयान जारी किया है, उसे देखें तो यही एक बात उभरकर आती है कि दोनों पक्ष वर्तमान समझौते तथा प्रोटोकॉल के अंतर्गत उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु जल्दी ही तारीख तय करके 18वें दौर की सैन्य कमांडरों के स्तर की बातचीत करेंगे।
भारत के विदेश मंत्रालय ने इस पर जो बयान जारी किया है, उसे देखें तो यही एक बात उभरकर आती है कि दोनों पक्ष वर्तमान समझौते तथा प्रोटोकॉल के अंतर्गत इस उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु जल्दी ही तारीख तय करके 18वें दौर की सैन्य कमांडरों के स्तर की बातचीत करेंगे।
उधर बीजिंग में, चीन के विदेश मंत्रालय ने भी एक बयान जारी किया है। इसमें कहा गया है कि ‘दोनों पक्षों ने सबसे पहले, चीन-भारत सीमा विवाद को लेकर जो ‘सकारात्मक प्रगति’ हुई है उस पर चर्चा की। गलवान घाटी सहित चार और जगहों से दोनों देशों के सैनिकों के पीछे हटने के परिणाम का समर्थन किया गया’।
उल्लेखनीय है कि भारत और चीन के सीमाई इलाकों में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए चर्चा और समन्वय की दृष्टि से साल 2012 में यह वार्ता तंत्र डब्ल्यूएमसीसी बनाया गया था। भारत के विदेश मंत्रालय का बयान बताता है कि दोनों पक्षों ने पश्चिमी सेक्टर में भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थिति की समीक्षा की है। जहां टकराव है उन बचे स्थानों से सैनिकों को पीछे हटाने के प्रस्तावों पर भी खुले तथा रचनात्मक तरीके से बात हुई। यह इसलिए ताकि द्विपक्षीय संबंधों में स्थिति को दोबारा सामान्य करने के लिए एक माहौल बन सके। मंत्रालय के बयान के अनुसार, दोनों पक्ष सैन्य और कूटनीतिक तरीकों से वार्ता को आगे चलाए रखने पर सहमत हुए।
दिलचस्प बात है कि चीन के विदेश मंत्रालय का बयान कहता है कि दोनों पक्ष सीमा पर स्थिति को और ज्यादा स्थिर करने को लेकर दोनों देशों के नेताओं के बीच जो खास सहमति बनी है उसका तत्परता से क्रियान्वयन करने के लिए सहमत हुए हैं! दोनों पक्षों ने सीमा पर तनाव आगे घटाते रहने पर बात की, सीमा पर स्थिति को एक सामान्य करने का माहौल बनाने के लिए काम करने पर राजी हुए हैं।
इस महत्वपूर्ण बैठक में भारतीय दल विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (पूर्वी एशिया) शिलपक अंबुले के नेतृत्व में शामिल हुआ था तो चीनी दल चीन के विदेश मंत्रालय में सीमा एवं समुद्री मामले विभाग के महानिदेशक होंग लियांग के नेतृत्व में। इस मौके पर अंबुले ने चीन की सहायक विदेश मंत्री हुआ चुनयिंग से भी शिष्टाचार भेंट की।
वार्ता के इस दौर से पहले, 17वें दौर की सैन्य कमांडर स्तर की चर्चा गत 20 दिसंबर को आयोजित हुई थी। लेकिन उसमें भी समाधान की तरफ बढ़ने जैसा कुछ ठोस नहीं दिखा था। उल्लेखनीय है कि कल हुई डब्ल्यूएमसीसी की बीजिंग बैठक के एक सप्ताह बाद ही, दिल्ली में जी—20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक होने जा रही है। इसमें चीन के विदेश मंत्री किन गांग के भी भाग लेने की उम्मीद जताई जा रही है।
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