नई दिल्ली। चुनाव आयोग से उद्धव ठाकरे गुट को बड़ा झटका लगा है। ठाकरे गुट के हाथ से शिवसेना निकल गई है। एकनाथ शिंदे गुट के पास पार्टी का नाम शिवसेना, धनुष और तीर चुनाव चिह्न रहेगा। चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना के गुट को असली शिवसेना माना है। आयोग ने शुक्रवार को एकनाथ शिंदे गुट को पार्टी का नाम शिवसेना और चुनाव चिह्न तीर-धनुष सौंप दिया। इसके बाद अब उन्हें पहले से दिए गए बालासाहेबंची शिवसेना और दो तलवार एवं ढाल के साथ दिए गए चुनाव चिह्न को फ्रीज कर दिया गया है। वहीं महाराष्ट्र में चिंचवड़ और कस्बा पेठ विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव तक के लिए उद्धव ठाकरे गुट आयोग की ओर से दिये गये नाम शिवसेना (उधव बालसाहेब ठाकरे) और जलती मशाल चुनाव चिह्न का इस्तेमाल कर सकता है।
चुनाव आयोग ने अपने निर्देश में पाया है कि 2018 में संशोधित शिवसेना का संविधान आयोग की जानकारी में नहीं है। चुनाव आयोग के आग्रह पर स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे द्वारा लाए गए 1999 के पार्टी संविधान में लोकतांत्रिक मानदंडों को पेश करने के कार्य को संशोधनों ने पूर्ववत कर दिया था। यह पार्टी को जागीर जैसा बना रहा है। आयोग ने कहा है कि आवेदनकर्ता (शिंदे गुट) को जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान 29ए तहत 2018 के संविधान में संशोधन करना होगा ताकि आंतरिक लोकतंत्र तैयार किया जा सके। आयोग ने संसद, महाराष्ट्र विधानमंडल में दोनों गुटों के सांसदों एवं विधायकों के मिले समर्थन का विश्लेषण कर पाया कि शिंदे गुट के साथ अधिक लोकप्रतिनिधि हैं। इसका मतलब है शिवसेना को प्राप्त वोटों में शिंदे गुट के पास अधिक मतदाताओं का समर्थन है। शिंदे का समर्थन करने वाले 40 विधायकों ने पार्टी को मिले कुल 47,82440 वोटों में से 36,57327 वोट हासिल किए। यह 2019 के चुनावों में 55 विजयी विधायकों के पक्ष में पड़े वोटों का 76 प्रतिशत बनता है। वहीं उद्धव गुट को 15 विधायकों का समर्थन है जिन्हें 11,25113 वोट मिले थे।
आयोग के अनुसार पार्टी के पास 2019 के लोकसभा चुनावों में 18 सांसद जीते थे। इनमें से 13 शिंदे गुट और पांच उद्धव गुट के साथ हैं। हालांकि उद्धव के समर्थन में चार का ही हलफनामा मिला है। इसका अर्थ है कि शिंदे गुट के पास पार्टी के 73 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन है।
आयोग ने पाया कि शिवसेना पार्टी का वर्तमान संविधान अलोकतांत्रिक है। बिना किसी चुनाव के पदाधिकारियों के रूप में एक गुट के लोगों को अलोकतांत्रिक रूप से नियुक्त किया गया है। इस तरह से पार्टी विश्वास बनाए रखने में असफल रहती है।
चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को सलाह दी है कि वे पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र के सिद्धांतों पर चलें और अपनी संबंधित वेबसाइट पर नियमित रूप से कामकाज के बिंदुओं का खुलासा करें, जैसे कि संगठन का विवरण, चुनाव कराना, संविधान की प्रति और पदाधिकारियों की सूची। राजनीतिक दलों के गठन में पदाधिकारियों के पदों के लिए स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव और आंतरिक विवादों के समाधान के लिए एक और स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रक्रिया का प्रावधान होना चाहिए।
शिंदे गुट के पास शिवसेना आने से उसके समर्थकों में जश्न का माहौल है। महाराष्ट्र में लोगों ने पटाखे फोड़कर खुशी का इजहार किया। वहीं उद्धव गुट के नेता संजय राउत ने चुनाव आयोग के फैसले से नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि ये लोकतंत्र की हत्या है। हमें फिक्र करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि जनता हमारे साथ है। हम नया चिह्न लेकर जाएंगे और फिर एक बार यही शिवसेना खड़ी करके दिखाएंगे।
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