राम हमारे देश के, हमारी संस्कृति के, हमारे धर्म के आधार हैं। हर वो बात जो नैतिक है, मर्यादापूर्ण है, सात्विक है, उन सभी के बुनियाद राम हैं। राम मात्र अवतार नहीं अपितु जीवन जीने की कला को सिखाने के स्रोत हैं, आदर्श हैं। आज के संदर्भ में वह सुशासन और जनतांत्रिक मूल्यों के प्रतीक हैं।
भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्रीराम के मंदिर का निर्माण हमारे देश के इतिहास में एक नया अध्याय है। राम मंदिर निर्माण के पीछे जो सोच है वो भी अलौकिक है, राम मंदिर आंदोलन से लेकर आज जिस तरह से शालिग्राम के पत्थर का चुनाव भगवान के बाल रूप की मूर्ति बनाने के लिए किया गया वह संयोग नहीं, बल्कि हरि इच्छा है। नेपाल से 30 टन की दो शालिग्राम शिलाएं अयोध्या पहुंची हैं। भगवान राम ने मानों मंदिर को साकार रूप देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को माध्यम चुना।
पहले पौराणिक कथा से शालिग्राम के महत्व को समझते हैं। पद्म पुराण के अनुसार – एक दैत्यराज, जिसका नाम जालंधर था, वह बहुत बलशाली और अनेक वरदान प्राप्त राक्षस था। उसकी उत्पत्ति भगवान शिव के तीसरे नेत्र की ज्वाला से हुई थी। उसकी पत्नी का नाम वृंदा था। उस राक्षस को ये वरदान भी प्राप्त था की जब तक पत्नी का तपोबल है तब तक उसे कोई हरा नहीं सकता, वो अजेय रहेगा। जब उसका उत्पात चरम पर पहुंच गया तो भगवान शिव ने उसके साथ युद्ध किया परंतु उसके बहुत से वरदान के कारण वो उसको हरा नहीं पा रहे थे। उधर जालंधर भी हराने के रास्ते ढूंढने लगा। उसने छल से भगवान शिव का रूप धारण किया और पार्वती जी के पास पहुंच गया। पार्वती जी ने उसकी आंखो में कामुकता देख समझ गई कि ये शिव नही हैं और क्रोध में उन्होंने उसको श्राप देकर वहीं स्थिर कर दिया। उसके बाद मां पार्वती भगवान विष्णु के पास गई और उनसे वृंदा के तपोबल को भंग करने का निवेदन किया जिससे जालंधर को उचित अंत दिया जा सके।
भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण किया और वृंदा के पास पहुंचे। इसके बाद वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया की तुम शैल बन जाओ। भगवान विष्णु ने ये बात स्वीकार कर ली। यही शालिग्राम भगवान विष्णु का ही निर्विकार और विग्रह रूप है। हर पूजा पाठ में शालिग्राम की पूजा होती है, रखा जाता है। कार्तिक शुक्ल एकादशी को शालिग्राम और तुलसी का विवाह होता है।
ये शिलाएं गंडकी नदी से आती हैं जो समुद्र तल से लगभग छह हजार फीट की ऊंचाई पर है। दामोदर कुंड से शुरू हुआ, ये झरना इसको स्वरूप देता है। वहीं सालग्राम नाम से भगवान विष्णु का मंदिर है, जिसके नाम से इस शैल का पत्थर का नाम “शालिग्राम” पड़ा। पुराणों के अनुसार इन शालिग्राम में अलौकिक गुण होते हैं और इनके आकार भगवान विष्णु के अवतार स्वरूप होते हैं। ये निराकार और विग्रह रूप है और इसी रूप में इसकी पूजा होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से ये एक जीवाश्म शिला है यानी fossil stone है।
नेपाल से जब इसकी यात्रा शुरू हुई तो पूरे रास्ते मानो नागरिकों ने पुष्प बिछा दिए हों, कहीं आरती, कहीं पुष्पांजलि, कहीं टीका, कहीं मंत्रोचार। भावना के समुद्र उमड़ पड़े थे। ये अद्भुत है और ठीक वैसे ही प्रतीत हो रहा था जैसे भगवान राम वनवास उपरांत अपने घर वापस आए हैं। ये बात और भी दिव्य है कि भगवान विष्णु अपने सातवें अवतार भगवान राम से मिलने के लिए अयोध्या आए हैं।
ये बात साधारण सी प्रतीत होती है पर पौराणिक दृष्टि से इसको सहेजा जाए तो कितनी करुणामयी है। एक विशेष आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व है। भगवान राम के बाल रूप और मां सीता की मूर्ति किसी और पत्थर से भी बनाई जा सकती थी पर भारत की पौराणिक धार्मिक मान्यताएं, आधुनिकता और वैज्ञानिकता का मिश्रण है।
ये राम मंदिर निर्माण हमारी संस्कृति के पुनर्जागरण का उद्घोष है। भारत के विश्व गुरु बनने में एक बढ़ता कदम है और नए वर्ष में जब इसकी शुरुआत होगी तो पूरे विश्व की नजर उस भव्य समारोह, उत्साह और भावनाओं के समुद्र पर होगी।
“जय श्री राम”
(लेखक राष्ट्रवादी फिल्मकार हैं )
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