मैं अपने पुरस्कार की खबर से अभिभूत था। यह मेरे काम का एक बड़ा सम्मान और मान्यता है मैं इसके लिए केंद्र सरकार को धन्यवाद देता हूं। इसे मैंने सभी जमातिया लोगों की ओर से स्वीकार किया है। — बिक्रम बहादुर जमातिया
त्रिपुरा में उग्रवाद के विरुद्ध जनजातीय समुदाय के आंदोलन को बढ़ावा देने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले बिक्रम बहादुर जमातिया को सामाजिक कार्य क्षेत्र में पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया है। दशकों से जनजातीय आस्था, संस्कृति और विरासत को बढ़ावा देने वाले जमातिया ने त्रिपुरा के पहाड़ी इलाकों में मिशनरियों द्वारा जनजातीय समुदाय का कन्वर्जन किए जाने के खिलाफ भी अहम भूमिका निभाई थी।
अस्सी के दशक के आखिर में त्रिपुरा जनजातीय उग्रवादी समूहों द्वारा प्रारंभ उग्रवाद की चपेट में आ गया। खोवाई जिले के तेलियामुरा अनुमंडल के गांव मोहरचर्रा निवासी 86 वर्षीय बिक्रम बहादुर जमातिया एक सरकारी कर्मचारी थे। बिक्रम बहादुर जमातिया को लगा कि यदि जनजातीय समुदायों में उग्रवाद ने गहरी जड़ें जमा लीं तो सर्वाधिक नुकसान जनजातीय समुदायों का ही होगा।
तब उन्होंने जनजातीय इलाकों में उग्रवाद के विरुद्ध सघन अभियान प्रारंभ किया। इस पर उग्रवादी समूहों ने जमातिया को हत्या की धमकी दी परंतु जमातिया अपने संकल्प से डिगे नहीं। धीरे-धीरे जनजातीय समुदाय के लोगों को समझ में आना प्रारंभ हुआ और वे जमातिया के अभियान का समर्थन करने लगे।
बिक्रम बहादुर जमातिया को लगा कि यदि जनजातीय समुदायों में उग्रवाद ने गहरी जड़ें जमा लीं तो सर्वाधिक नुकसान जनजातीय समुदायों का ही होगा।
उग्रवाद के दौर में ईसाई मिशनरियों ने अपनी गतिविधियां बढ़ा दीं। उनके उग्रवादी समूहों से भी रिश्ते थे। उग्रवादी गरीब जनजातीय लोगों को ईसाई बनने के लिए प्रोत्साहित करने लगे। तब बिक्रम बहादुर जमातिया ने उग्रवाद के विरोध के आंदोलन के साथ ईसाइयत के प्रसार के विरुद्ध भी आंदोलन प्रांरभ कर दिया। इससे जमातिया समुदाय की शीर्ष संस्था जमातिया हुडा के सर्वोच्च नेता भी साथ आए और चर्च को अपनी गतिविधियां बंद करनी पड़ीं।
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