जलयान पर 39 विदेशी पर्यटकों के साथ उसके कर्मचारी और अन्य अधिकारी सवार हैं। 51 दिन के लिए एक यात्री का खर्च लगभग 25 लाख रुपये है। इसके बावजूद मार्च, 2024 तक इस जलयान के सारे कमरे आरक्षित हो चुके हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस जलयान को लेकर पर्यटकों में कैसी दीवानगी है। इसमें सभी तरह की आधुनिक सुविधाएं हैं।
इस समय देश में उस गंगा विलास जलयान की बड़ी चर्चा हो रही है, जो वाराणसी से चलकर डिब्रूगढ़ की ओर बढ़ रहा है। कुछ लोग, विशेषकर विपक्षी नेता इसे अमीरों का जलयान बताकर इसका विरोध कर रहे हैं। लेकिन जलयान पर सवार विदेशी पर्यटकों का जिस तरह गरीब लोग ही स्वागत कर रहे हैं, वह बहुत कुछ संकेत कर रहा है। अभी पिछले दिनों यह जलयान सुल्तानगंज (बिहार) में था। इस पर सवार पर्यटक वहां की एक पहाड़ी पर स्थित प्रसिद्ध अजगैबीनाथ मंदिर पहुंचे तो उनका स्वागत भगवा पटका देकर और तिलक लगाकर किया गया। ये विदेशी पर्यटक पहाड़ी पर उत्कीर्ण चित्रों को देखकर दंग रह गए। इन लोगों ने उन चित्रों के बारे में हर तरह की पूछताछ की। इस दौरान वहां स्थानीय लोगों की भीड़ लगी रही। उस दिन सुल्तानगंज बाजार में अच्छी चहल-पहल रही। स्पष्ट है कि उस दिन इस कस्बाई नगरी की आर्थिक गतिविधि बहुत अच्छी रही। इस जलयान को चलाने का यही उद्देश्य है।
उल्लेखनीय है कि गत 13 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअली हरी झंडी दिखाकर इस जलयान को रवाना किया। इस लेख के लिखे जाने तक यह जलयान मुर्शिदाबाद को पार कर चुका था। यह 51वें दिन डिब्रूगढ़ (असम) पहुंचेगा। यह अपनी तरह का पहला जलयान है, जो विश्व विरासत स्थलों, राष्ट्रीय उद्यानों, नदी घाटों, झारखंड में साहिबगंज, पश्चिम बंगाल में कोलकाता, असम में गुवाहाटी और बांग्लादेश में ढाका जैसे प्रमुख शहरों समेत 50 पर्यटन स्थलों के दर्शन कराएगा।
जलयान पर 39 विदेशी पर्यटकों के साथ उसके कर्मचारी और अन्य अधिकारी सवार हैं। 51 दिन के लिए एक यात्री का खर्च लगभग 25 लाख रुपये है। इसके बावजूद मार्च, 2024 तक इस जलयान के सारे कमरे आरक्षित हो चुके हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस जलयान को लेकर पर्यटकों में कैसी दीवानगी है। इसमें सभी तरह की आधुनिक सुविधाएं हैं।
भारतीय नौवहन का इतिहास
भारत कभी नौवहन में दुनिया का सिरमौर था। सिंधु घाटी सभ्यता और प्राचीन काल से भारत में परिवहन, व्यापार, वाणिज्य और पर्यटन का मूल आधार नदी जलमार्ग ही थे। ब्रिटिश राज के पहले तक भी नदियों के तट व्यापार और वाणिज्य के कारण गुंजायमान रहे। वे आर्थिक गतिविधियों के केंद्र थे। अंग्रेजों ने जान-बूझकर इस क्षेत्र की उपेक्षा की, ताकि भारत आर्थिक रूप से कमजोर हो। उन्होंने स्थानीय उद्योगों और खेती का विनाश करना शुरू किया। इससे नदियों के तट वीरान हो गए, लाखों लोग बेरोजगार हो गए। गरीबी और भुखमरी का सन्नाटा इन तटों पर पसर गया। आजादी के बाद नौवहन और जलमार्गों के विकास के प्रयास शुरू तो हुए, लेकिन दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति के अभाव में उन्हें गति और साकार रूप नहीं मिल पाया। 2014 में नरेंद्र मोेदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद नदी जल मार्गों के विकास को पहली बार गति मिली और देश में एक नहीं, अनेक जलमार्गों को चिन्हित और विकसित करने पर काम शुरू हुआ। इस दिशा में तेजी से काम हो रहा है। आने वाले समय में जल मार्गों से यातायात भी शुरू होने वाला है। जलमार्ग सदैव सस्ता और प्रदूषण से मुक्त रहता है। इसलिए इस क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं।
ऐसे आया विचार
गंगा विलास जलयान का निर्माण ‘अंतरा लग्जरी रिवर क्रूज कंपनी’ ने किया है। राज सिंह इस कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और संस्थापक हैं। इस नाते वही गंगा विलास जलयान के मालिक हैं। वे राजस्थान के भरतपुर जिले के प्रसिद्ध उद्योगपति हैं। वे पिछले 15 साल से जलयान बनाने का कारोबार कर रहे हैं। अब तक उनकी कंपनी 9 आधुनिक जलयान बना चुकी है। कुछ समय पहले मुम्बई में आयोजित एक कार्यक्रम में राज सिंह को एक सरकारी कार्यक्रम में वक्ता के नाते बुलाया गया था जिसमें केंद्रीय जहाजरानी और आयुष मंत्री सोनोवाल भी उपस्थित थे। कार्यक्रम में राज सिंह ने कहा कि हमें जल पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिए।
सोनोवाल को यह विचार बहुत पसंद आया और उन्होंने इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी से बात की। प्रधानमंत्री को भी यह विचार पसंद आया। फिर क्या था, हो गई गंगा विलास जलयान की शुरुआत। प्रधानमंत्री की सहमति के बाद इस पर तेजी से काम हुआ। जहाजरानी मंत्रालय ने मार्ग तय करने और दस्तावेजी कार्यों को फटाफट निपटाया। योजना के अनुसार जलयान को डेढ़ साल में तैयार करना था, लेकिन कोरोना के कारण तीन साल का समय लग गया। इस जलयान का संचालन एक निजी कंपनी के पास है। उसे भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (यह संस्था पत्तन, पोत परिवहन और जल मार्ग मंत्रालय, के तहत है) का समर्थन प्राप्त है।
गंगा विलास जलयान का निर्माण ‘अंतरा लग्जरी रिवर क्रूज कंपनी’ ने किया है। राज सिंह इस कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और संस्थापक हैं। इस नाते वही गंगा विलास जलयान के मालिक हैं। वे राजस्थान के भरतपुर जिले के प्रसिद्ध उद्योगपति हैं। वे पिछले 15 साल से जलयान बनाने का कारोबार कर रहे हैं। अब तक उनकी कंपनी 9 आधुनिक जलयान बना चुकी है।
पूरी तरह स्वदेशी
गंगा विलास जलयान की लंबाई 62 मीटर है और यह पूरी तरह स्वदेशी है। यह जलयान 68 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुआ है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि यह जलयान विदेश में तैयार होता तो इसका खर्च दोगुना हो जाता।
मांसाहार और शराब नहीं
जलयान में यात्रियों को केवल शाकाहारी भारतीय व्यंजन और गैर-मादक पेय ही परोसे जाते हैं। पर्यटकों को स्थानीय भोजन और मौसमी सब्जियां भी परोसी जा रही हैं। जहाज पर कोई भी मांसाहारी भोजन या शराब नहीं दी जाती।
27 नदियों का सफर
यह जलयान उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश और असम की 27 नदियों से होकर गुजरेगा। यह भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन का हिस्सा है। यह जलयान पूरी तरह से प्रदूषणमुक्त है। इसका अपना ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट’ है। यानी जलयान की गंदगी गंगा में नहीं जाती है। इसकी सुरक्षा की अच्छी व्यवस्था की गई है।
क्रूज पर कसरत
जलयान में तमाम सुविधाएं उपलब्ध हैं। पर्यटकों के मनोरंजन के लिए म्यूजिकल नाइट्स, सांस्कृतिक कार्यक्रम, संगीत आदि की व्यवस्था है। यहां जिम, स्पा, ओपन गार्डन, स्पेस बॉल्कनी की सुविधा है। यह 51 दिन में 3,200 किमी की यात्रा तय करेगा। तीन मंजिले गंगा विलास जलयान में अत्याधुनिक वस्तुओं से सुसज्जित 18 कमरे हैं। इन कमरों में सुविधाजनक बिस्तर, वातानुकूलित यंत्र, सोफा, एलईडी टीवी, शौचालय, स्नानगृह आदि हैं।
कैसे होगी कमाई
इस महंगे जलयान को अपने खर्च का 70 प्रतिशत हिस्सा टिकटों से और बाकी का 30 प्रतिशत हिस्सा जलयान पर मौजूद ‘सर्विस आॅपरेटर्स’ से प्राप्त होगा।
आंतरिक सजावट
राज सिंह ने बताया कि जलयान की डिजाइनिंग और आंतरिक सजावट बेंगलूरू निवासी और प्रसिद्ध कला इतिहासकार डॉ. अन्नपूर्णा गनीमाला ने की है। इसे भारतीय संस्कृति और यहां की परपराओं को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया है। जलयान की डिजाइन में रंगों का जबरदस्त इस्तेमाल हुआ है। कलाकृतियां भी भारतीय संस्कृति को ध्यान में रखकर तय की गई हैं। जलयान को सजाने में ‘मेक इन इंडिया’ और भारतीयता का पूरा ध्यान रखा गया है।
अर्थव्यवस्था को मिलेगी गति
जल पर्यटन विदेशी पर्यटकों से विदेशी मुद्रा लाएगा। भारत के पर्यटन राजस्व में वृद्धि करेगा। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करके स्थानीय अर्थव्यवस्था का विकास करेगा। आधुनिक सुख-सुविधाओं और बुनियादी ढांचों के विकास में योगदान देगा। रेस्तरां, होटल जैसी सहायक सेवाओं के विकास से स्थानीय समुदाय के लिए राजस्व उत्पन्न करेगा। इससे स्थानीय कुटीर उद्योग/कलाकृतियां/हस्तशिल्प, पर्यटन गाइड, स्थानीय व्यंजनों, सस्ते और प्रदूषण रहित नौपरिवहन और सांस्कृतिक कलाकारों के लिए नए अवसर भी मिलेंगे।
पूरे देश में एक नए प्रकार की अवकाश गतिविधि का अनूठा अनुभव होगा, जो अभी तक देश के बहुत ही सीमित हिस्से में उपलब्ध थी और आमतौर पर केवल विलासिता की वस्तु के रूप में उपलब्ध थी। आने वाले समय में सस्ता जल परिवहन विकसित होने से भारत की जनता को नए अवसर मिलेंगे। यह नदी पर्यटन स्थानीय/तटीय/नदी तटीय समुदायों के प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करेगा और इसमें योगदान करने के लिए उनके कौशल को भी बढ़ाएगा।
इस जलयान के परिचालन के बाद दुनिया की प्राचीनतम सांस्कृतिक नगरी काशी से लेकर असम के सुदूर डिब्रूगढ़ तक के जल मार्ग पर पड़ने वाले कितने ही विख्यात और अज्ञात स्थानों का कायाकल्प होने वाला है। श्रीराम की धर्मस्थली बक्सर, अतीत के गौरवशाली पाटलिपुत्र, रेशम नगरी भागलुपर, योग केंद्र मुंगेर, प्राचीन विक्रमशिला विवि, बटेश्वरधाम, पूर्वी भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगरी कोलकाता, मुर्शिदाबाद (जंगीपुर, प्लासी युद्ध का मैदान), मलमल नगरी ढाका, मां कामाख्या की नगरी गुवाहाटी, धुबरी, ग्वालपाड़ा दुनिया का विशालतम नदी द्वीप माजुली, बोगीबील नदी सेतु और एक सींग वाले दुर्लभ गैंडों के लिए विख्यात काजीरंगा के वन्यजीव अभयारण्य सहित अनेक स्थलों मेें पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी।
यह जलयात्रा 16 दिन बांग्लादेश के जल क्षेत्र में होगी। इससे भी उत्साहजनक पहलू यह है कि अब तक बने जलमार्ग पर विकसित ढांचे की देखभाल और उपयोग दोनों ही सुनिश्चित होगा जिससे उसमें और सुधार होने की पूरी संभावना है। वह दिन जल्दी आएगा, जब विश्व के सबसे व्यस्त वायुक्षेत्र देश के जलमार्ग पर छोटे, मंझोले और बडेÞ जलपोत, मोटरबोट और नावें भी तैरती दिखाई देंगी। इससे पर्यटन, नौवहन, व्यापार, वाणिज्य के विकास के साथ-साथ देश की सांस्कृतिक धरोहरों, अति समृद्ध विरासत, खानपान, रहन-सहन और हमारी अद्भुत विविधता से देश-दुनिया के लोग परिचित हो सकेंगे।
पर्यटकों को पूरे देश में एक नए प्रकार की अवकाश गतिविधि का अनूठा अनुभव होगा, जो अभी तक देश के बहुत ही सीमित हिस्से में उपलब्ध थी और आमतौर पर केवल विलासिता की वस्तु के रूप में उपलब्ध थी। आने वाले समय में सस्ता जल परिवहन विकसित होने से भारत की जनता को नए अवसर मिलेंगे। यह नदी पर्यटन स्थानीय/तटीय/नदी तटीय समुदायों के प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करेगा और इसमें योगदान करने के लिए उनके कौशल को भी बढ़ाएगा।
अब वह दिन समीप है जब आजादी के अमृतकाल में नदियों के तट फिर से गुलजार और आबाद होंगे और ये क्षेत्र भारत में व्यापार, वाणिज्य और पर्यटन की अपार संभावनाओं के नए प्रवेश द्वार खोलेंगे।
(लेखक जहाजरानी और आयुष मंत्रालय में वरिष्ठ परामर्शदाता हैं)
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