इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्व सांसद बाहुबली अतीक अहमद की याचिका खारिज कर बड़ा झटका दिया है। हाईकोर्ट ने कहा है न्यायिक मजिस्ट्रेट को पुलिस चार्जशीट पर संज्ञान लेने के अपने ही आदेश का पुनर्विलोकन (रिव्यू) करने का क्षेत्राधिकार नहीं है। ऐसा आदेश शुरुआत से शून्य है। कोर्ट ने कहा चार्जशीट पर संज्ञान लेना कोर्ट का अंतिम आदेश है। इसके खिलाफ ऊपरी अदालत को ही विधि अनुसार विचार करने का अधिकार है। इसलिए पुनरीक्षण अदालत द्वारा मजिस्ट्रेट के आदेश को अवैध मान रद्द करना सही है।
यह आदेश न्यायमूर्ति डी के सिंह ने अतीक अहमद की याचिका पर दिया है। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता डी एस मिश्र व अभिषेक मिश्र ने बहस की। इनका कहना था कि 5 जुलाई 2007 को जिला पंचायत इलाहाबाद के सदस्य ओमपाल ने अतीक अहमद व अन्य के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कराई। गिरफ्तारी नहीं हो सकी और न ही अभियुक्त ने अदालत में समर्पण किया। अदालत ने वारंट जारी किया तथा कुर्की कार्यवाही की अनुमति दी। फिर भी गिरफ्तारी या समर्पण न होने पर विवेचना अधिकारी ने धारा 174ए के तहत 26 अगस्त 2008 को एफ आई आर दर्ज कराई। विवेचना अधिकारी ने मजिस्ट्रेट के समक्ष अर्जी देकर चार्जशीट दाखिल करने की अनुमति मांगी। और चार्जशीट पेश की। धारा 195 व 340 भा दंड संहिता में अर्जी दी कि चार्जशीट सक्षम अदालत में भेजी जाय। जिसे तय नहीं किया गया और मजिस्ट्रेट ने चार्जशीट पर संज्ञान लेकर दस्तावेज तैयार करने का आदेश दिया।
मजिस्ट्रेट द्वारा अपने ही आदेश के खिलाफ अपील सुनने जैसी गैर कानूनी कार्यवाही करने पर उसे हटाने की शिकायत की गई। कहा गया मजिस्ट्रेट को संज्ञान लेने का अधिकार नहीं,यह आदेश शून्य है। रिमांड निरस्त कर दी गई। राज्य सरकार ने इस आदेश को चुनौती दी। अपर सत्र अदालत-विशेष अदालत एम पी एम एल ए इलाहाबाद ने मजिस्ट्रेट के आदेश पर कहा आपराधिक मामले में कोर्ट को अपने आदेश का रिव्यू करने का अधिकार नहीं है। मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया। जिसे इस याचिका में चुनौती दी गई थी। इससे पहले याची को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। एक अन्य ने समर्पण किया तो एक फरार है।
याची का कहना था उसे सुनवाई का मौका नहीं दिया गया। नैसर्गिक न्याय का हनन किया गया है। साथ ही धारा 195 की अनुमति नहीं ली गई और चार्जशीट दाखिल कर दी गई। बिना सरकार की अनुमति चार्जशीट दाखिल नहीं की जा सकती। और ऐसी चार्जशीट व उस पर संज्ञान लेन की कार्यवाही शून्य है। इसलिए याची की रिमांड अर्जी निरस्त करना सही है। अपर सत्र अदालत का आदेश निरस्त किया जाय। जबकि सरकार का कहना था कि अपर सत्र अदालत ने नियमानुसार विधिक आदेश दिया है। मजिस्ट्रेट अपने ही आदेश का रिव्यू नहीं कर सकता। कोर्ट ने अपर सत्र अदालत इलाहाबाद के आदेश की वैधता की चुनौती याचिका खारिज कर दी है।
(सौजन्य से सिंडिकेट फीड)
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