पाकिस्तान इस समय दुनिया में इतना बदनाम हो चुका है कि उसके नेताओं की बातों पर कोई भरोसा तक नहीं करना चाहता। कटोरा लेकर घूमने के बावजूद न तो दुनिया की कोई आर्थिक संस्था पाकिस्तानियों को चंदा देने को तैयार नहीं है। कोई देश वहां के किसी मंत्री से बात तक करने को राजी नहीं है। घर में खाने के लाले पड़े हैं, जनता भूखे मरने को मजबूर है। ऐसी स्थितियों में अगर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री दुनिया में शान से शीर्ष नेताओं के साथ बैठकर मंत्रणा करने वाले भारत के नेताओं के आगे घुटने टेकते हैं तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं है। प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के अल अरेबिया चैनल को दिए ताजा साक्षात्कार में कही बातों को इसी तथ्य के प्रकाश में देखना चाहिए।
अपने इस साक्षात्कार में जहां पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने यह माना कि उसने तीन युद्ध (हालांकि युद्ध चार हुए हैं) लड़कर देख लिया है, उससे कुछ हासिल नहीं हुआ। अब उसे अक्ल आ गई है और बातचीत की मेज पर आने को बेचैन हो रहा है। ‘सबक सीख लिया’ का सीधा अर्थ यही निकलता है। एक तरह से शरीफ ने हाथ जोड़कर भारत से ‘शांति के लिए बातचीत’ की गुहार लगाई है। लेकिन यही शरीफ कुछ घंटे बाद अपने कट्टर मजहबी पाकिस्तानियों को ‘तसल्ली’ देते हुए यह भी कहने लगे कि उनका ‘हर मुद्दे पर मत वही है जो पहले रहा है’।
तो उनके अपने कहे के संदर्भ में कितना ‘शरीफ’ माना जाए शरीफ को! अल अरबिया चैनल को दिए उस साक्षात्कार में उन्होंने कश्मीर सहित सभी विषयों पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ पूरी गंभीरता से बात करने की इच्छा जताई। शरीफ बोले कि उनके मुल्क ने भारत के साथ तीन-तीन युद्ध लड़े, जिनसे वे सबक सीख चुके हैं। उन युद्धों से उन्हें ‘गरीबी, बेरोजगारी तथा दिक्कतों के अलावा कुछ हाथ नहीं आया’ है। अब वह ‘शांति’ चाहते हैं।
पाकिस्तान इस समय दुनिया में इतना बदनाम हो चुका है कि उसके नेताओं की बातों पर कोई भरोसा तक नहीं करना चाहता। कटोरा लेकर घूमने के बावजूद न तो दुनिया की कोई आर्थिक संस्था पाकिस्तानियों को चंदा देने को तैयार नहीं है। कोई देश वहां के किसी मंत्री से बात तक करने को राजी नहीं है। घर में खाने के लाले पड़े हैं, जनता भूखे मरने को मजबूर है। ऐसी स्थितियों में अगर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री दुनिया में शान से शीर्ष नेताओं के साथ बैठकर मंत्रणा करने वाले भारत के नेताओं के आगे घुटने टेकते हैं तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं है।
लेकिन शरीफ इतने ‘शरीफ’ कि पाकिस्तान के सरकारी टीवी चैनल पर जैसे ही उनका अरेबिया वाला साक्षात्कार प्रसारित हुआ उसके फौरन बाद ही वहां के पीएम कार्यालय ने बयान जारी करके ‘स्पष्ट’ किया कि शरीफ के कहे को गलत समझ लिया गया है। बयान में ‘साफ’ किया गया कि भारत से बातचीत तभी हो पाएगी जब वह जम्मू-कश्मीर को 5 अगस्त 2019 से पहले वाली स्थिति में लाएगा यानी वहां की ‘स्वायत्तता’ को बहाल करेगा। उससे पहले उसके साथ कैसी भी बात नहीं हो पाएगी।
यानी 16 जनवरी को अरेबिया चैनल का साक्षात्कार हुआ और 17 जनवरी को पाकिस्तान के टेलीविजनों पर दिखने के फौरन बाद ‘स्पष्टीकरण’ जारी करने का अर्थ इतना गहरा भी नहीं है कि थोड़ा मनन करने के बाद समझ न आए। उस साक्षात्कार में पैसा देने वाले अपने आका यूएई का कद बड़ा दिखाने की गरज से शरीफ बोले कि दोनों पक्षों के बीच उस ‘बातचीत’ में यूएई बड़ा किरदार निभा सकता है, क्योंकि उसके भारत के साथ भी ‘संबंध सुहाने हैं’। शरीफ के शब्द थे कि ‘भारतीय नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मेरा मैसेज यही है कि आइए, टेबल पर बैठकर कश्मीर जैसे संजीदा मुद्दों को सुलझाने के लिए गंभीरता और ईमानदारी के साथ बात करें’।
इधर शरीफ भी जानते हैं और पाकिस्तानी फौज के आला जनरलों को भी पता है कि भारत तब तक बात नहीं करेगा, जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को प्रयोजित करना बंद नहीं करेगा। हालांकि शरीफ के इस ताजा साक्षात्कार को लेकर भारत ने कोई फौरी प्रतिक्रिया नहीं दी। है। रही बात जम्मू-कश्मीर की, तो ‘तीन युद्धों से सबक सीख चुके’ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को यह सबक भी ध्यान रहना चाहिए था कि प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई वाला भारत अब 1994 के भारतीय संसद के प्रस्ताव के अनुसार, जम्मू-कश्मीर को अखंड बनाने की बात करता है। शरीफ जान लें कि अप्रैल 2014 के बाद से झेलम में काफी पानी बह चुका है।
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