दिल्ली के होटल अशोक में “पाञ्चजन्य” अपनी यात्रा के 75वर्ष पूर्ण कर मकर संक्रांति के दिन रविवार को अपनी “हीरक जयंती” मना रहा है। इस दौरान केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने उद्घाटन सत्र में विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रवादी विचारधारा से ओतप्रोत यह पत्रिका 75 वर्ष पूरे कर रही है तो मैं इसे एक बड़ी घटना मानता हूं। उन्होंने कहा कि आजादी के समय पत्रकारिता एक मिशन थी। जागृत और जोश पैदा कर रही थी। इसलिए अकबर इलाहाबादी ने कहा था कि… जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो। पत्रकारिता सबसे उद्देश्यपरक शक्ति है। सत्ता के ताकत के दुरुपयोग को रोकती है तो किसी विचार का निषेध भी करती है। उन्नत होते समाज का प्राण है। यह मनोरंजन नहीं है यह सच्चाई भी समझनी चाहिए। राष्ट्र निर्माण का साधन है।
केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि पत्रकारिता सभ्य मानव जीवन की प्राण वायु है। आजादी के बाद लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में अपना दायित्व निभा रही है। पत्रकारिता ने सामाजिक जागरूकता फैलाने का काम किया। राजा राम मोहन राय मूल रूप से समाज सुधारक थे, लेकिन पत्रकारिता में भी उनका योगदान है। संविधान का चौथा स्तंभ कहा जाने लगा। समाज के सच को निरंतर उजागर करती है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी इस दिशा में पूरे संकल्प के साथ काम कर रहे हैं। उनका मानना है कि भारतीय प्रतिभा और उनकी रचनात्मकता का समुचित विकास भारतीय भाषाओं में ही संभव है। आज जब देश अमृतकाल के दौरान एक आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी भारत की दिशा में काफी आगे बढ़ चुका है मीडिया को इस दिशा में भी सहयोग करने की जरूरत है। मैं यह नहीं कहता कि मीडिया को आलोचना नहीं करनी चाहिए, मगर जहां देशहित का सवाल हो वहां आलोचना के लिए आलोचना ठीक नहीं है।
‘भारत की बात’ भारतीय भाषाओं में ही होगी
केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आप कल्पना करें जब भारतवासी अपनी उन मातृ भाषाओं में विचार करेंगे जिस भाषा में वे सांस लेते हैं, तो देश की रचनात्मक शक्ति में कितनी भारी वृद्धि होगी। भारत की आजादी के अमृतकाल में तो भारतीय भाषाओं का महत्व और बढ़ने वाला है क्योंकि देश अब औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर निकलने का संकल्प ले चुका है। इसलिए आने वाले समय में ‘भारत की बात’ भारतीय भाषाओं में ही होगी। राजनीति में अधिक सक्रिय होने के बावजूद अटलजी का ‘पाञ्चजन्य’ और हिंदी पत्रकारिता से जुड़ाव हमेशा बना रहा। मुझे जानकारी दी गई है कि 1998 में जब ‘पाञ्चजन्य’ ने अपनी स्वर्ण जयंती वर्ष मनाई थी तो वे मुख्य अतिथि के रूप में आप लोगों के बीच आए थे। इसलिए आज जब ‘पाञ्चजन्य’ अपनी स्थापना के 75 वर्ष मना रहा है तो मैं इस कार्यक्रम में आकार अनुगृहीत महसूस करता हूं।
राष्ट्रवादी विचार की अभिव्यक्ति है पाञ्चजन्य
पाञ्चजन्य केवल समाचार-विचार का माध्यम मात्र नहीं है, बल्कि राष्ट्रवादी विचार का दर्शन और अभिव्यक्ति भी है। लोग कर्इ बार पूछते हैं कि राष्ट्रवादी पत्रकारिता क्या होती है और उसकी क्या क्रेडिबिलिटी है। ऐसे लोगों को तो मैं यही कहना चाहूंगा कि उन्हें दीनदयालजी द्वारा ‘पाञ्चजन्य’ में लिखे गए ‘विचार वीथी’ स्तम्भ और ‘ऑर्गनाइज़र’ में लिखे गए ‘पोलिटिकल डायरी’ कालम को जरूर पढ़ना चाहिए
नए समाज का होता है सृजन
केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि जैसे शिव जी का तीसरा नेत्र खुलने पर प्रलय होता है। उसी प्रकार पत्रकारिता की तीसरी आंख खुलने पर नए समाज का सृजन होता है। पेशे से न दीनदयाल जी पत्रकार थे न ही अटल जी पत्रकार थे। लेकिन विचार से प्रेरित होकर दोनों पत्रकारिता में आए और पाञ्चजन्य की नींव रखी। दोनों ने मिलकर पत्रकारिता को नया तेवर और कलेवर दिया।
भारत को पुन: विश्वगुरू के पद पर आसीन करेंगे
केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आज हमारे सामने अवसर है, क्षमता भी है, हमारा संकल्प भी है कि हम भारत को पुन: विश्वगुरू के पद पर आसीन करेंगे। पाञ्चजन्य की आधारशिला भी इसी धरातल पर रखी गई थी। अमृतकाल उस संकल्प की सिद्धि का अवसर है। हमें उसी दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है। इस देश को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाना, रक्षा की जरूरतों की पूर्ति के मामले में आत्मनिर्भर बनना और यहां तक कि भारत को एक परमाणु शक्ति बनाने का सपना तो दीनदयाल जी का ही सपना था। जिसके बारे में उन्होंने अनेक अवसरों पर पाञ्चजन्य में भी लिखा था। देश का रक्षामंत्री होने के नाते मैं आपको यह भरोसा देना चाहता हूं कि हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आज भारत उसी दिशा में बढ़ चला है जिसकी कल्पना 75 साल पहले पंडित दीनदयाल उपाध्याय, डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी और बाद में अटलजी जैसी महान विभूतियों ने की थी।
समाज में पत्रकार का भी वही स्थान होता है जो एक शिक्षक का
केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि समाज में पत्रकार का भी वही स्थान होता है जो एक शिक्षक का होता है। जो समाचार के साथ छेड़छाड़ करता है वह पत्रकार नहीं हो सकता है। समाचार चयन में पक्षपात नही होना चाहिए। पाञ्चजन्य में कई बार अपने लेखों में दीनदयाल जी सरकार की आलोचना करते थे मगर उनके मन में किसी के प्रति अपमान का या कटुता का भाव नहीं था। राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए अपनी बात मजबूती से रखना ही स्वस्थ पत्रकारिता है। मीडिया इस देश और समाज का अभिन्न अंग है। हाल के वर्षों में हमने देखा है कि मीडिया ने काफी सकारात्मक और रचनात्मक भूमिका भी निभार्इ है। कोरोना के संकट के समय पत्रकारों ने कर्मयोगियों की तरह काम किया और यहां तक कि स्वच्छ भारत अभियान की सफलता में उनकी भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
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